scorecardresearch
Friday, 11 October, 2024
होमदेशअर्थजगतडायलिसिस, किराया, EMI- कोविड के बाद आर्थिक तंगी में फंसे भारतीय क्यों गिरवी रख रहे हैं गोल्ड

डायलिसिस, किराया, EMI- कोविड के बाद आर्थिक तंगी में फंसे भारतीय क्यों गिरवी रख रहे हैं गोल्ड

साल 2020 की पहली छमाही में, सोने के आभूषणों के बदले में बैंकों द्वारा दिए गए व्यक्तिगत ऋण की राशि 1.9 लाख करोड़ रुपये थी, जो 2021 की पहली छमाही में बढ़कर 3.54 लाख करोड़ हो गई है.

Text Size:

नई दिल्ली: देहरादून की रहने वाली कांता देवी ने 28 सितंबर को अपनी 32 वर्षीय बेटी की दोनों किडनियां फेल हो जाने के बाद उसके डायलिसिस पर आने वाले खर्च के लिए 2 लाख रुपये के कर्ज के अपने आभूषणों, जिसमें उसके दिवंगत पति द्वारा दिए गए सोने के गहने भी थे, को गिरवी रख कर लिया.

नई दिल्ली में रहने वाली एक ब्यूटीशियन ने पिछले साल (2020) पहले कोविड लॉकडाउन के उपरांत अपने पति की नौकरी चले जाने के बाद साठ-साठ हजार रुपये मूल्य की सोने की चूड़ियों की एक जोड़ी के बदले अपनी बेटी की शिक्षा के लिए 1.2 लाख रुपये का ऋण लिया.

मुंबई में रहने वाली 51 वर्षीय प्रवासी श्रमिक संपूर्णा ने पिछले साल देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान शहर छोड़ने की हड़बड़ी में दो सामान गिरवी रखने वाली दुकानों के पास खुद से जमा किये गए थोड़े से सोने को 20,000 रुपये में गिरवी रख दिया था. अब वह मूलधन और ब्याज का भुगतान नहीं कर सक पाने की वजह से अपने सोने से हाथ धो बैठी है.

ये कोई छिटपुट दिखाई देने वाले मामले नहीं हैं बल्कि कोरोना महामारी और उसके बाद छाए आर्थिक संकट के कारण देशभर में कई लोग अस्पताल के बिलों का भुगतान करने अथवा अपने व्यवसायों को घाटे से उबारने के लिए अपनी पुरानी विरासत वाली चीजों सहित सोने के तमाम आभूषणों को गिरवी रख रहे हैं.

दुनिया में सोने के सबसे बड़े उपभोक्ता के रूप में माने जाने वाले भारत में यह शरीर पर धारण किये जाने योग्य धन की तरह माना जाता है. यहां सोना न केवल अपार भावनात्मक मूल्य रखता है और सामाजिक स्थिति का एक द्योतक है बल्कि तमाम वित्तीय संस्थान भी सोने की मौजूदा कीमत के आधार पर इस परिसंपत्ति के बाजार मूल्य के 75 प्रतिशत तक का ऋण आसानी से दे देते हैं.

साल 2020 की पहली छमाही में सोने के आभूषणों के बदले में बैंकों द्वारा दिए गए व्यक्तिगत ऋण की राशि 1.9 लाख करोड़ रुपये थी, जो 2021 की पहली छमाही में बढ़कर 3.54 लाख करोड़ हो गई है. इस राशि में मुथूट फाइनेंस और असंगठित क्षेत्र, जैसे गैर-बैंकिंग, के वित्तीय संस्थानों द्वारा प्रदान किए गए ऋण शामिल नहीं हैं, जो कि अनुमानतः गोल्ड लोन बाजार का 65 प्रतिशत हिस्सा रखते हैं.

इस बीच एनबीएफसी यानि कि नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां भी गोल्ड लोन की बढ़ती मांग के कारण अपने नेटवर्क का विस्तार कर रही हैं: मुथूट फिनकॉर्प ने 2020-2021 में उत्तर, पूर्व और पश्चिम भारत के ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 100 से अधिक नई शाखाएं खोली है और पुणे में मुख्यालय वाली बजाज फाइनेंस लिमिटेड ने भी पिछले वित्तीय वर्ष में अपनी शाखाओं की संख्या 480 से बढ़ाकर 700 तक कर ली है.

हालांकि आम तौर पर गोल्ड लोन को परिवारों के सामने आने वाले किसी गंभीर संकट को दूर करने के लिए अंतिम उपाय माना जाता है, फिर भी लोन फाइनेंसरों का कहना है कि अब कई लोग ईएमआई चुकाने, किराया देने और फीस का भुगतान करने से लेकर असफल व्यवसायों से होने वाले नुकसान की भरपाई- जो इस महामारी के दौरान आम बात हो गई है- जैसे कई कारणों से भी इस विकल्प को चुन रहे हैं.


यह भी पढ़ें: ममता ने भवानीपुर उपचुनाव 58 हजार से अधिक मतों से जीता, कहा- केंद्र ने हमें सत्ता से हटाने की कोशिश की


अस्पताल के बिल, ईएमआई, किराए आदि के लिए गोल्ड लोन

कांता देवी के अनुसार, मुथूट फाइनेंस के पास अपना सोना गिरवी रखने का निर्णय लेने से पहले उनके परिवार ने उनके नियोक्ताओं सहित अन्य परिचित लोगों से मदद लेने के कई विकल्पों की कोशिश की.

उनहोंने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरे पास अपनी बेटी के इलाज के लिए लगभग 2 लाख रुपये का लोन लेने के लिए अपने गहनों को गिरवी रखने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. मैं अभी यह भी नहीं बता सकती कि क्या हम इसे नीलाम होने से बचा पाएंगे या फिर नहीं.‘

हालांकि, उसका छोटा बेटा अमित इस कर्ज चुकाने के लिए अधिक दृढ़ है. अमित ने कहा, ‘हमारी पहली प्राथमिकता मेरी बहन के इलाज में मदद की है, इसके बाद मैं और मेरा बड़ा भाई यह कर्ज चुकाने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे और समय सीमा समाप्त होने से पहले ही अपनी मां के गहने वापस ले आएंगे.’

बेंगलुरू में, महिलाओं के एक स्वयं सहायता समूह, चेतना स्त्री शक्ति समूह के सदस्यों ने तो 25 लाख रुपये के सामूहिक ऋण का भुगतान करने के लिए अपने मंगलसूत्र को भी बंधक रख दिया है.

यह समूह बेंगलुरू के नगर निगम, बृहत बेंगलुरू महानगर पालिका (बीबीएमपी) के साथ मिलकर कचरा साफ करने और कचरे को अलग-अलग करने के लिए काम करता है.

इसके सदस्यों ने जून 2020 में और अधिक कर्मियों को नियुक्त करने और ऑटो टिपर, जो कचरा इकट्ठा करने वाला वाहन होता है, खरीदने के लिए लोन लिया था. लेकिन पैसे की कमी के कारण नवंबर 2020 से बीबीएमपी द्वारा उनके वेतन और अन्य बिलों का भुगतान नहीं किया गया है और इसी वजह से उन्हें बैंक की ईएमआई का भुगतान कायम रखने के लिए एक-के-बाद-एक गहने गिरवी रखने के लिए मजबूर होना पड़ा.

वे अभी तक अपने किसी भी गहने को छुड़ा नहीं पाए हैं.

इस समूह की सदस्य 58 वर्षीय एच. ललिता ने बताया, ‘पहले हमारे पास घर पर जो भी पैसे होते थे उससे हम हमेशा मजदूरों के साथ-साथ बैंक की ईएमआई का भुगतान करने में भी कामयाब रहते थे और जब बीबीएमपी द्वारा हर तीन महीने में एक बार बिलों का भुगतान किया जाता था, तो इसकी भरपाई कर लेते थे. लेकिन पिछले साल नवंबर से एक भी बिल पास नहीं किया गया है.’

ललिता ने दप्रिंट को बताया, ‘हमारे ऊपर 25 लाख रुपये या उससे भी थोड़े अधिक का सामूहिक ऋण है. मुझे शुक्रवार (24 सितंबर) को मुथूट फाइनेंस, जहां हम सभी ने अपने ऑटो टिपरों की बैंक ईएमआई चुकाने के लिए सोना गिरवी रखा है, से एक संदेश आया है कि अगर हम समय पर ब्याज का भुगतान नहीं करते हैं तो वे हमारे सोने को नीलाम कर देंगे. अकेले ब्याज की राशि ही 35,000 रुपये प्रति माह है. हमने अपने मंगलसूत्र तक गिरवी रख दिए हैं और अब हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है.’

वे बताती हैं कि उन्होंने इस स्वयं सहायता समूह के छोटे से व्यवसाय को चलाये रखने के लिए धन जुटाने हेतु अपने घर में रखे सोने के आभूषण के हर एक टुकड़े को गिरवी रख दिया है.

हालांकि, इस तरह का लोन लेने वाला हर शख्स उसका वापस भुगतान करने में सक्षम नहीं हो पाता है. प्रवासी श्रमिक संपूर्णा जैसे कई लोग अपने ऋणों के भुगतान में चूक जाते हैं और फिर अपना सोना पूरी तरह से गंवा देते हैं.

यदि लोग ऋण के भुगतान में चूक करते हैं, तो फाइनेंसर उनके सोने के आभूषणों की नीलामी कर सकते हैं- और यह चलन पिछले एक साल में बढ़ा ही है. इन फाइनेंसरों ने पिछले साल की पहली छमाही में नीलामी रोक दी थी क्योंकि सोने की बढ़ती कीमतों से उनके पास पर्याप्त अतिरिक्त राशि उपलब्ध थी लेकिन बाद में इसकी कीमतों में गिरावट आने के कारण इन नीलामियों में फिर वृद्धि हुई है.

गोल्ड लोन के क्षेत्र में एक अन्य प्रमुख गैर-बैंकिंग संस्थान मणप्पुरम फाइनेंस जैसी कंपनियों ने इस साल की अप्रैल-जून तिमाही में 1,500 करोड़ रुपये मूल्य के 4.5 टन सोने की नीलामी की जबकि पिछली तिमाही (जनवरी-मार्च) में यह सिर्फ 1 टन था.

संपूर्णआ के अनुसार, उसे अपना सोना छोड़ना पड़ा क्योंकि उसके पास मूल राशि और उस पर जमा ब्याज को चुकाने के लिए पैसा नहीं था.

उसने दिप्रिंट को बताया, ‘गिरवी रखने वाली दुकानों ने मुझे दो बार यह कहने के लिए फोन किया कि मुझे अपनी मूल राशि और ब्याज का भुगतान करना होगा, अन्यथा वे मेरा सोना बेच देंगे. मेरे पास उन्हें भुगतान करने के लिए कोई पैसा था ही नहीं इसलिए मैंने उनके कॉल को अनदेखा करने और उस सोने को भूल जाने का फैसला किया.’

वह कहती हैं, ‘मैंने उनसे यह भी नहीं पूछा कि ब्याज के साथ कितना पैसा बकाया है. पूछने वाली बात ही क्या थी जब मुझे पहले ही पता था कि मेरे पास भुगतान करने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं है?’ वह कहती है उसके कई नियोक्ताओं ने उसे लॉकडाउन के दौरान किसी तरह का भुगतान नहीं किया.’

फाइनेंसरों से मिली जानकारी के अनुसार, 30 प्रतिशत से अधिक लोन लेने वाले लोग निर्धारित समय के भीतर अपने ऋणों को ब्याज सहित वापस करने में असमर्थ रहते हैं.

गोल्ड लोन देने वाली दुकानों की एक श्रृंखला, देहरादून स्थित नेशनल ज्वैलर्स के मालिक मिकी सिंह ने बताया, ‘ऐसे सभी डिफॉल्टर्स (भुगतान न करने वाले) आमतौर पर निम्न आय वर्ग के व्यक्ति होते हैं जो पैसे जुटाने में असमर्थ रहते हैं. ज्यादातर मामलों में हम तीन महीने के लिए ही लोन की पेशकश करते हैं लेकिन यदि वे (लोन लेने वाले) चाहें तो उन्हें एक और तिमाही की छूट दे देते हैं. इसके बाद भी, उन्हें गिरवी रखे हुए आभूषणों की संभावित नीलामी के समय के बारे में सूचित किया जाता है और कर्ज चुकाने हेतु हर संभव अवसर देने की पेशकश की जाती है.’


यह भी पढ़ें: विशेषज्ञों ने कहा- सफल भारतीय विदेश नीति के लिए अगले एक दशक में सामरिक स्वायत्तता जरूरी


कुछ लोग तत्काल नकदी पाने के लिए सोना बेच भी रहे हैं

लोगों का एक अच्छा खासा वर्ग, ज्यादातर वेतनभोगी और व्यवसायी वर्ग, ऐसा भी है जो गिरवी रखने के बजाय अपना सोना बेचने का विकल्प चुन रहे हैं क्योंकि यह आर्थिक तरलता प्राप्त करने का एक त्वरित माध्यम है.

इसके अलावा कम गोल्ड लोन-टू-वैल्यू (सोने के बदले मिलने वाले लोन की राशि) लोगों को अपना सोना गिरवी रखने के बजाय इसे पूरे मूल्य पर बेचने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है क्योंकि उनकी लोन चुकाने की क्षमता महामारी की वजह से प्रभावित हुई है.

मुंबई में मुथूट एक्जिम के शाखा प्रबंधक अमित चौधरी कहते हैं, ‘ज्यादातर, लोग अपने सोने को बेचने का विकल्प अंतिम उपाय के रूप में अपनाते हैं लेकिन लोग अब और अधिक नकद राशि रखना चाहते हैं और ब्याज का भुगतान नहीं करना चाहते हैं, इसलिए वे अपने सोने को गिरवी रखने की तुलना में एकमुश्त बेचना पसंद कर रहे हैं. इनमें ज्यादातर व्यवसायी के साथ-साथ वेतनभोगी लोग भी शामिल हैं.’

चौधरी ने बताया कि पिछले एक वर्ष के दौरान ग्राहकों द्वारा प्रतिदिन लगभग 100-150 ग्राम सोना बेचा गया, जबकि आमतौर पर यह संख्या लगभग 50 से 70 ग्राम थी.

यह बदलाव भी कोविड महामारी के कारण उपजे उस आर्थिक संकट का ही नतीजा है जिसने वेतनभोगी वर्ग को भी करारी चोट दी है. उनके मामले में सोना बेचने की वजह बिल चुकाने से लेकर घरेलू खर्चे तक है.

बेंगलुरू की एक निजी कंपनी में काम करने वाली 28 वर्षीय एक महिला ने पिछले हफ्ते एक पतली सी सोने की चेन 43,000 रुपये में बेची ताकि वह अपना किराया दे सके और महीने के अन्य घरेलू खर्चों का इंतजाम कर सके.

वह एक निजी कंपनी के प्रबंधन विभाग में मध्यम स्तर के पद पर कार्यरत है और जब उसके नियोक्ता ने महामारी के कारण लोगों की छंटनी और वेतन में कटौती शुरू की तो उसने अपना सोना बेचने का ही सहारा लिया. वह कहती हैं, ‘आय कम हो गई है लेकिन बिल तो बढ़ ही रहे हैं.’

बेंगलुरू स्थित फाइनेंसर श्री लक्ष्मी गोल्ड बायर्स के मालिक हेमंत के. ने कहा, ‘छोटे व्यवसायों के मालिक, निम्न मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग के लोग ही सोना बेचने के लिए हमारे पास आते हैं.’

हेमंत ने कहा कि कारोबारियों के लिए सोना बेचना उनके कारोबार को चालू रखने के लिए तत्काल नकदी हासिल करने का एक जरिया है क्योंकि लॉकडाउन ने उन्हें पैसे बचाने या लाभ कमाने का कोई खास मौका नहीं दिया है.

वे कहते हैं, ‘उच्च मध्यम वर्ग के परिवारों से जो लोग हमारे पास आते हैं उनके पास इसकी वजह ईएमआई, कार ऋण या गृह ऋण का भुगतान करना और उनकी जीवनशैली को बनाए रखना आदि होती है. उनमें से बहुत से लोगों ने अपनी नौकरी गंवा दी है और सोने को आसानी से भुनाए जा सकने वाले निवेश या बचत के रूप में ले रहे हैं.’

हालांकि, फाइनेंसरों के लिहाज से ग्राहकों द्वारा सोना बेचने के बजाय उनका सोना गिरवी रखना ज्यादा फायदेमंद हैं क्योंकि वे इस पर ब्याज वसूल सकते हैं.


यह भी पढ़ें: गोरखपुर के होटल के रूम नं. 512 में क्या हुआ था, जहां पुलिस ने UP के कारोबारी की ‘हत्या’ कर दी थी


कर्ज मांगने वाले विभिन्न पृष्ठभूमि से आते हैं

कुमार ज्वैलर्स के मालिक और गोल्ड लोन देने वाले पंकज मेसन, जो देहरादून में दून वैली उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष भी हैं, ने कहा कि 70 प्रतिशत गोल्ड लोन चाहने वाले लोग निम्न आय वर्ग से आते हैं.

उन्होंने कहा, ‘हालांकि, ऐसे लोग भी होते हैं जिन्हें कानूनी औपचारिकताओं का सामना किए बिना अपने व्यवसायों के लिए तुरंत नकदी की आवश्यकता होती है.’

आयातित माल में सोने की हिस्सेदारी बढ़ने के साथ-साथ मार्च 2021 में सोने की खपत में भी 37 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो संभवत: तीसरे लॉकडाउन की आशंका के कारण तेजी से गोल्ड खरीदने का संकेत है.

हेमंत के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान उनके दुकानों में आने-जाने वालों की संख्या काफी कम हुई थी लेकिन लॉकडाउन खत्म होने के बाद ग्राहकों की संख्या में 32 से 38 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई.

वे कहते हैं, ‘हमारे भारत में लोग सोने से भावनात्मक रूप से बहुत अधिक जुड़े हुए हैं और सोना बेचना उनके लिए अंतिम उपाय होता है. वे हमारे पास केवल तभी आते हैं जब उन्होंने अन्य सभी संभव तरीकों से पैसों के प्रबंध करने का प्रयास कर लिया हो. पिछले दो वर्षों में सोना बेचने के लिए हमसे संपर्क करने वाले अधिकांश लोगों ने ईएमआई चुकाने, बिल भरने, किराए, ब्याज आदि का भुगतान करने के लिए ऐसा करने की पेशकश की है.’

(मानसी फडके, पृथ्वीराज सिंह, सोनिया अग्रवाल, निखिल रामपाल और अनुषा रवि के इनपुट्स के साथ)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: अच्छी नींद के लिए TV देखने से भी कहीं अधिक बुरा है सोशल मीडिया और वीडियो गेम- स्टडी


 

share & View comments