नई दिल्ली: एक दुबला-पतला सामान्य वज़न, पर अस्वास्थ्यकर जीवनशैली वाला व्यक्ति. एक वज़नी 20 वर्ष से ऊपर की महिला जिसके परिवार में मधुमेह का अतीत नहीं है. उम्र की 60वीं दहाई के उत्तरार्द्ध में एक सेवानिवृत्त व्यक्ति: यदि इनमें से तीनों को टाइप-2 मधुमेह से पीड़ित पाया जाता है, तो क्या तीनों में ही बीमारी की प्रकृति और गंभीरता एक जैसी होगी?
डॉक्टरों का मानना है कि ऐसा शायद ना हो. कुछ विशेषज्ञों का तो ये तक कहना है कि टाइप-2 मधुमेह से पीड़ित भारतीय मरीजों में डायबिटीज के सात अलग-अलग प्रकार पाए जा सकते हैं, जिन्हें कि इस समय एक ही जैसा डायग्नोस किया जाता है.
यह भी पढ़ेंः भारतीय कर रहे हैं हेरोइन, कोकीन और गांजे का ऑनलाइन धंधा, संयुक्तराष्ट्र चिंतित
स्वीडन में एक ऐतिहासिक अध्ययन में मधुमेह के वर्गीकरण को मौजूदा दो समूहों – टाइप-1 और टाइप-2 – से बढ़ाकर पांच में करने की अनुशंसा किए जाने के साल भर बाद भारतीय विशेषज्ञों ने मधुमेह को अतिरिक्त उपसमूहों में बांटने के उद्देश्य से जनवरी में एक भारत-केंद्रित परीक्षण कार्यक्रम आरंभ किया है.
पुणे के केईएम अस्पताल में स्वीडिश मेडिकल रिसर्च काउंसिल के सहयोग से आरंभ यह परियोजना स्वीडन के ही अध्ययन – एनडिस – का विस्तार है, जिसके तहत दक्षिणी स्वीडन में मिले मधुमेह के सभी करीब 14,00 नए रोगियों को शामिल किया गया था. स्वीडिश अध्ययन की रिपोर्ट पिछले साल मार्च में लांसेट डायबिटीज़ एंड एंडोक्राइनोलॉजी जर्नल में छपी थी.
मधुमेह एक असाध्य रोग है जिसमें शरीर या तो रक्त शर्करा नियंत्रित करने वाले हार्मोन इंसुलिन के निर्माण में अक्षम हो जाता है, या इसका कुशलता से इस्तेमाल नहीं कर पाता है. 2017 के आंकड़ों के अनुसार तब भारत में मधुमेह के कुल करीब 7.2 करोड़ रोगी थे. इस संख्या के 2025 तक बढ़कर 13.4 करोड़ होने की आशंका जताई जाती है.
चिकित्सा विशेषज्ञों को उम्मीद है कि नए अध्ययन से मधुमेह के गंभीर रोगियों को एक लक्षित और ज़्यादा असरदार इलाज़ उपलब्ध कराना संभव हो सकेगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार यह बीमारी अपने चरम रूप में ज़्यादा ज़ोखिम वाले मरीजों में अंधेपन, गुर्दा नाकाम होने, दिल का दौरा पड़ने, लकवा तथा अंग-विच्छेदन का कारण बन सकती है.
भारत मधुमेह को सार्वजनिक स्वास्थ्य की अहम चुनौती के रूप में देखता है. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, मधुमेह भारत में सर्वाधिक तेज़ी से फैलने वाली बीमारी है. इस समय दुनिया के सारे मधुमेह रोगियों का लगभग आधा हिस्सा अकेले भारत में है.
रोगी विशेष के लिए अलग इलाज
नया अध्ययन केईएम अस्तपाल की मधुमेह इकाई के प्रमुख डॉ. चितरंजन एस. याग्निक की अगुवाई में किया जा रहा है. परियोजना के पहले चरण में केईएम अस्पताल में पिछले 15 वर्षों में एकत्रित मधुमेह के करीब 3,000 मरीजों के रिकॉर्ड को शामिल किया गया है.
अध्ययन में शामिल डेटा में मरीजों की आयु, उनके बॉडी-मास-इंडेक्स, रक्त में शर्करा की मात्रा और अग्नाशय की कोशिकाओं (जो इंसुलिन पैदा करती हैं) को हुए नुकसान से संबंधित सूचनाएं सम्मिलित रहेंगी. स्वीडन में हुआ अध्ययन भी समान मानकों पर आधारित था.
परियोजना के बारे में डॉ. याज्ञनिक ने दिप्रिंट को बताया, ‘इन मानकों के आधार पर पहले चरण के अध्ययन का उद्देश्य है भारत में मधुमेह के उप प्रकारों को चिन्हित करना. यह काम तीन से छह महीने में पूरा हो जाने की संभावना है.’
उन्होंने कहा, ‘दूसरे चरण में हम हर उप प्रकार के लिए इलाज ढूंढ़ने का प्रयास करेंगे. अगर अध्ययन सफल रहा तो हर प्रकार के मधुमेह रोगियों के लिए अलग तरह के इलाज के विकल्प उपलब्ध हो सकेंगे.’
डॉ. याज्ञनिक ने कहा, ‘खून में ग्लूकोज़ के स्तर की माप के आधार पर एक जैसा इलाज देने की बजाय, रोगियों के नए वर्गीकरण से डॉक्टरों को रोग की जटिलता का अनुमान लगाने, उसी के अनुरूप दवाइयां तय करने और इलाज के पहले ही दिन से अपनाए जा सकने वाले ऐहतियाती उपाय सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी.’
नया अध्ययन भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और स्वीडन की सबसे बड़ी अनुसंधान सहायता संस्था स्वीडिश रिसर्च काउंसिल द्वारा वित्तपोषित है. स्वीडन में 2018 का अध्ययन भी इसी संस्था के वित्तीय समर्थन से संचालित किया गया था.
कई उपसमूह
इस समय मधुमेह की पहचान सिर्फ दो समूहों – टाइप-1 और टाइप-2 – के अंतर्गत की जाती है. जहां टाइप-1 के रोग का मुख्य लक्षण शरीर में इंसुलिन का निर्माण रुकना है, वहीं टाइप-2 मधुमेह शरीर में इंसुलिन का इस्तेमाल कुशलता से नहीं होने के कारण होता है.
स्वीडिश अध्ययन में मधुमेह को पांच वर्गों में बांटा गया है— गंभीर ऑटोइम्युन मधुमेह, गंभीर इंसुलिन-अल्पता वाला मधुमेह, गंभीर इंसुलिन-प्रतिरोधी मधुमेह, सामान्य मोटापा-संबद्ध मधुमेह और सामान्य उम्र-संबद्ध मधुमेह. डॉक्टरों का मानना है कि भारतीय मरीजों के लिए मधुमेह के इन उपसमूहों की संख्या और बढ़ सकती है.
फोर्टिस सीडॉक सेंटर ऑफ एक्सलेंस फॉर डायबिटीज़ के चेयरमैन डॉ. अनूप मिश्रा के अनुसार, ‘भारत में स्थिति अलग दिख सकती है और हमारे यहां अधिक संख्या में उपसमूह चिन्हित किए जाने की संभावना है. एक ऐसा उपसमूह हम टाइप-2 मधुमेह से पीड़ित दुबले मरीजों का (आमतौर पर मिलने वाले मोटे मरीजों के विपरीत) देखते हैं, जिनके लिए कुछ दवाओं पर अलग तरह से ज़ोर देने की ज़रूरत है.’
बेंगलुरू के एस्टर सीएमआई अस्पताल में एंडोक्राइनोलॉजी के विशेषज्ञ डॉ. महेश डीएम का मानना है कि अध्ययन में मधुमेह के पांच या उससे भी अधिक प्रकारों को चिन्हित किए जाने की संभावना है.
उन्होंने बताया, ‘मधुमेह को टाइप-1 और टाइप-2 के अलावा, अनौपचारिक रूप से, पहले से ही वंशानुगत, अग्नाशय संबंधी, जीवनशैली संबंधी और कई अन्य द्वितीयक प्रकारों में विभाजित किया जा चुका है. किसी व्यक्ति को मधुमेह क्यों है, इसके पीछे 20 से अधिक कारण हो सकते हैं. इसलिए नए अध्ययन में पांच या अधिक प्रकार के मधुमेह चिन्हित किए जाने की उम्मीद की जा सकती है.’
दिल्ली में द्वारका स्थित मणिपाल हॉस्पिटल्स में मधुमेह एवं एंडोक्राइनोलॉजी के चिकित्सक डॉ. विनीत कुमार सुराना ने बताया कि स्वीडन के मुकाबले भारत का अध्ययन एक बिल्कुल ही अलग आनुवंशिक पृष्ठभूमि वाली आबादी के बीच किया जा रहा है. साथ ही स्वीडन में खान-पान का पैटर्न भी भारत से बिल्कुल जुदा है. इसलिए इन कारणों से भी भारत में मधुमेह के उप प्रकारों की सूची व्यापक हो सकती है.
यह भी पढ़ेंः पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भुगतान के लिए अंतहीन इंतज़ार मोदीकेयर को प्रभावहीन बना सकता है
डॉ. सुराना ने कहा, ‘हमारे आहार का आधा से ज़्यादा कार्बोहाइड्रेट्स से पूर्ण है, और ये बात स्वीडन की आबादी के संबंध में नहीं कही जा सकती है. इसलिए यदि हम भारत में मधुमेह को पुनर्वर्गीकृत करने के लिए विश्वसनीय डेटा का इस्तेमाल कर सके, तो इस बात की पूरी संभावना है कि यहां बीमारी के पांच से अधिक उप प्रकार चिन्हित किए जाएंगे.’
भारत में अध्ययन से जुड़े शीर्ष डॉक्टर याज्ञनिक मधुमेह के संभावित उप प्रकारों की संख्या का अनुमान लगाने से बचते हैं, पर उन्होंने इतना ज़रूर कहा कि उन्हें ‘भारत और स्वीडन की आबादी के जीनों में अंतर होने के कारण अलग तरह का परिणाम मिलने की उम्मीद है.’ उन्होंने कहा, ‘भारत के लोग कम उम्र में और कम बॉडी-मास-इंडेक्स के रहते मधुमेह के चपेट में आ रहे हैं, जो कि अलग परिणाम के कारक साबित हो सकते हैं.’
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)