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Friday, 26 April, 2024
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भुगतान के लिए अंतहीन इंतज़ार मोदीकेयर को प्रभावहीन बना सकता है

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के निजी व सरकारी दोनों ही वर्ग के अस्पतालों को चिकित्सा सामग्री खरीदने और कर्मचारियों को वेतन के लिए धन की कमी का सामना करना पड़ रहा है.

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ग़ाज़ियाबाद: उत्तर प्रदेश के शामली में एक किराना स्टोर में हेल्पर का काम करने वाले 53 वर्षीय राजकुमार बंसल ने अपनी दिल की बीमारी के इलाज की उम्मीद छोड़ दी थी. पर यह तब की बात है जब तक उन्होंने मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य बीमा योजना आयुष्मान भारत में अपना नाम नहीं लिखवाया था.

अब दिल की बाईपास सर्जरी कराने के बाद बंसल राहत महसूस कर रहे हैं, क्योंकि अपनी 7,000 रुपये की पगार और उसी पर पांच सदस्यों के परिवार के आश्रित होने के कारण उन्हें अपनी बीमारी का इलाज करा सकने की उम्मीद नहीं थी. वह बताते हैं, ‘मैं किसी प्राइवेट अस्पताल में महंगी सर्जरी कराने की सोच भी नहीं सकता था. मैंने तो अपनी बीमारी के साथ ज़िंदगी बिताना तय कर लिया था.’

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बंसल जैसे मरीजों के लिए प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (आयुष्मान भारत के रूप में लोकप्रिय) वरदान की तरह है. इस योजना के तहत लाभार्थी निजी और सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज करा सकते हैं, और बाद में अस्पतालों को इसकी एवज में सरकार से पैसे मिल जाते हैं. परंतु अस्तपाल प्रबंधकों में इसे लेकर अभी ज़्यादा उत्साह नहीं है. कई अस्पतालों की, जिनमें निजी और सरकारी दोनों हैं, शिकायत है कि उन्हें इलाज पर खर्च किए गए पैसे समय पर वापस नहीं मिलते हैं.

ग़ाज़ियाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार गत सितंबर में योजना के लागू होने के बाद से ग़ाज़ियाबाद ज़िले में कुल 58 लाख रुपये के 655 क्लेम जमा किए गए, और इनमें से 33 लाख रुपये के 401 क्लेम इस 4 फरवरी तक लंबित पड़े थे. अस्पतालों को आशंका है कि वे विलंबित भुगतान के दुष्चक्र में फंस सकते हैं.

हालांकि, आयुष्मान भारत के सीईओ इंदु भूषण का कहना है कि अस्पतालों को बकाया पैसे का शीघ्र भुगतान किया जाएगा. भुगतान में देरी के कारणों पर प्रकाश डाले बिना उन्होंने कहा, ‘हमने बैंकों को पैसे जारी करने के निर्देश जारी कर दिए हैं और जल्दी ही अस्पतालों को बकाया राशि का भुगतान किया जाएगा.’

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पिछले साल योजना में शामिल होने से इनकार करते हुए कई अस्पतालों ने इसी विलंबित भुगतान व्यवस्था का डर जताया था. तब इन अस्पतालों ने पहले से ही लागू एक अन्य बीमा आधारित स्वास्थ्य योजना – द सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (सीजीएचएस) – में अपने पैसे फंसे होने की बात की थी.

एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स के अनुसार सीजीएचएस के तहत अस्पतालों के 400 करोड़ रुपये सरकार पर बकाया हैं. कुल 2,500 स्पेशियलिटी अस्पताल और 8,000 छोटे अस्पताल इस अखिल भारतीय संगठन के सदस्य हैं.

सरकारी अस्पतालों को भी भुगतान नहीं

ग़ाज़ियाबाद स्थित एक सरकारी अस्पताल एमएमजी हॉस्पिटल के सीएमओ रवींद्र सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि वह जमा किए जा चुके क्लेम्स के भुगतान की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘हम पिछले तीन महीनों में क्लेम्स जमा कराते रहे हैं, पर अभी तक हमें एक भी पैसे का भुगतान नहीं किया गया है.’ उन्होंने कहा, ‘यदि हमारे क्लेम्स का समय से भुगतान नहीं किया जाता है तो वैसी स्थिति में हम इलाज करना जारी नहीं रख सकते. मुझे नहीं पता अगले सप्ताह हम इंप्लांट्स कैसे मंगाएंगे, क्योंकि हमारे पैसे खत्म होने के कगार पर हैं.’

ज़िले के संजय नगर स्थित एक अन्य अस्पताल के चिकित्सक डॉ. नरेश विज ने सवाल किया, ‘हम मरीजों की सहायता के लिए आय़ुष्मान भारत के तहत नियुक्त आरोग्य मित्रों (चिकित्सा सहायक) के वेतन कहां से लाएंगे? योजना को संचालित रखने के लिए हमें पैसे की सतत आपूर्ति की ज़रूरत है.’

ग़ाज़ियाबाद के एकमात्र सरकारी महिला अस्पताल की भी यही स्थिति है. अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक दीपा त्यागी कहती हैं, ‘हमने सितंबर से कुल 27 दावे दायर किए हैं. और 4 फरवरी तक उनमें से मात्र एक क्लेम का भुगतान हुआ है. दो अन्य दावों की प्रॉसेसिंग हो गई बताई जा रही है, हालांकि हमारे खाते में अभी इनके पैसे नहीं आए हैं.’

पड़ोस के बिजनौर ज़िले में सरकारी अस्पतालों की भी यही शिकायत है कि क्लेम्स का भुगतान नहीं होने के कारण उन्हें नकदी के संकट का सामना करना पड़ रहा है. योजना के लिए ज़िले की नोडल अधिकारी डॉ. नताशा ने बताया, ‘जमा कराए गए कुल 171 दावों में से हमें मात्र 21 के पैसे प्राप्त हुए हैं.’

सरकारी अस्पताल अपनी सुविधाएं बढ़ाने के लिए राज्य सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के रोगी कल्याण समिति (आरकेएस) के कोष से आवंटित पैसे का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस कार्यक्रम के तहत राज्य सरकारें सालाना अधिकतम 5 लाख रुपये अस्पतालों के खाते में हस्तांतरित करती हैं.

शामली के अस्पतालों ने भुगतान में देरी की शिकायत तो नहीं की, पर यहां योजना के कार्यान्वयन से जुड़े अधिकारियों को पैसे की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. आयुष्मान भारत योजना से संबद्ध एक छोटी टीम को कंप्यूटर और मेज-कुर्सी खरीदने के लिए पैसे जारी किए जाने का इंतज़ार है.

तीन अधिकारियों की टीम में शामिल एक अधिकारी ने अपना नाम नहीं दिए जाने की शर्त पर कहा, ‘हम अपने खुद के लैपटॉप, डेटा कार्ड और प्रिंटरों का इस्तेमाल कर रहे हैं. यहां तक कि हमारे कक्ष में रखी टेबल-कुर्सियां भी इस कार्यालय के दूसरे विभागों की हैं.’

निजी अस्पताल भुगत रहे हैं खामियाज़ा

ग़ाज़ियाबाद के निजी अस्पतालों का कहना है कि योजना के कारण वे आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं. संजय नगर स्थित एक निजी अस्पताल के अधिकारी पन्नालाल श्यामलाल पूछते हैं, ‘सरकार हमसे मुफ्त इलाज करने की उम्मीद कैसे कर सकती है यदि हमें समय से पैसों का भुगतान नहीं किया जाता हो? हमारे लिए अपना काम करते रहना मुश्किल होता जा रहा है. हम एनएचए टीम को नियमित रूप से रिमाइंडर भेज रहे हैं.’ एनएचए से उनका आशय नेशनल हेल्थ ऑथिरिटी से है, जो कि आयुष्मान भारत के कार्यान्वयन पर नज़र रखने वाली संस्था है.

अस्पताल में आयुष्मान मित्र के रूप में तैनात सुनीता कुमारी ने पुष्टि की कि अभी तक जमा दावों में से किसी का भुगतान नहीं किया गया है. केंद्र सरकार द्वारा उनकी तरह मित्र पदनाम वाले कर्मचारी अस्पतालों और मरीजों को योजना से संबंधित मदद के लिए तैनात किए गए हैं.

ग़ाज़ियाबाद में ही योजना से जुड़े एक अन्य अस्पताल यशोदा हॉस्पिटल के अधिकारियों ने बताया कि उन्हें जितने की उम्मीद थी उससे कम राशि का भुगतान किया गया है. इस अस्पताल की आयुष्मान मित्र प्रिया खान ने बताया, ‘हम ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि हमें दो क्लेम्स में दर्ज राशि से कम का भुगतान क्यों किया गया है. हम इस बारे में अधिकारियों को पत्र लिखने की सोच रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘दावों के भुगतान में विलंब हुआ तो है, पर मेरे पास पूरे आंकड़े नहीं हैं, क्योंकि क्लेम्स का काम करने वाला लेखा कर्मचारी छुट्टी पर है.’

कई निजी अस्पताल योजना के तहत अपने क्लेम्स की स्थिति पर खुलकर बातचीत नहीं करना चाहते पर उन सबने इस शिकायत से सहमति जताई कि योजना की शुरुआत के समय से ही सरकार की तरफ से दावों के भुगतान में देरी हो रही है.

ग़ाज़ियाबाद स्थिति अटलांटा मेडिवर्ल्ड के एक अधिकारी ने कहा, ‘हमने पांच क्लेम्स जमा कराए हैं और उनकी स्टेटस रिपोर्ट में पैसे बैंक को भेजे जाने की बात दिखती है, पर हमारे खाते में अभी तक पैसा नहीं आया है.’ अधिकारी के अनुसार यह 4 फरवरी तक की स्थिति थी.

ग़ाज़ियाबाद ज़िले के लिए आयुष्मान भारत के आईटी मैनेजर अजय रावल ने दो दिनों बाद पुष्टि की कि अटलांटा मेडिवर्ल्ड के क्लेम्स लंबित हैं. रावल ने यह भी कहा कि दावों का लंबित होना ही ज़िले में योजना से संबंधित एकमात्र समस्या है.

विलंबित भुगतान से प्रभावित अस्पताल देरी के कारणों पर भी सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि वे योजना के तहत अभी ज़्यादा बड़ी संख्या में मरीजों को देख भी नहीं रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि योजना के तहत संभावित लाभार्थियों की सबसे बड़ी संख्या – 118.04 लाख परिवार और करीब 6 करोड़ व्यक्ति – उत्तर प्रदेश में ही हैं. पर अभी तक, करीब 15 लाख लोग ही योजना से जुड़ पाए हैं, यानि चिन्हित लाभार्थियों में से मात्र 2.5 प्रतिशत.

चिकित्सकों की कमी

आयुष्मान भारत के सफल कार्यान्वयन की राह में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक और अवरोध है – डॉक्टरों की कमी.

शामली ज़िले में अधिकारियों ने छह में से तीन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) को योजना से अलग करने के लिए आवेदन किया है, क्योंकि इन केंद्रों में पर्याप्त संख्या में विशेषज्ञ चिकित्सक उपलब्ध नहीं हैं.

शामली ज़िले के अतिरिक्त मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. केपी सिंह कहते हैं, ‘इन तीन सीएचसी में मरीजों की सेवा के लिए हमारे पास सर्जन या विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं हैं. वे इस योजना के तहत इलाज सुविधा नहीं दे पा रहे थे, इसलिए हमने उन्हें योजना से हटाने के लिए आवेदन करने का फैसला किया.’

इसी तरह मुज़फ़्फ़रनगर के नौ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में से चार ने चिकित्सकों की कमी के कारण योजना से नहीं जुड़ने का फैसला किया.

मुज़फ़्फ़रनगर के सीएमओ पीएस मिश्रा ने इस बारे में बताया, ‘इस ज़िले के कोने-कोने में अस्पताल हैं, पर हमने उन अस्पतालों को ही योजना से जोड़ा जहां पर डॉक्टर उपलब्ध हैं. इस प्रकार हमने कुल 18 अस्पतालों – 11 निजी और 7 सरकारी – को योजना से जोड़ा है. उन अस्पतालों को योजना से जोड़ने का कोई मतलब नहीं है जहां मरीजों के इलाज के लिए पर्याप्त संख्या में चिकित्सक नहीं हैं.’

मरीजों के लिए वरदान

कार्यान्वयन से जुड़ी शुरुआती समस्याओं के बावजूद लाभार्थी इस योजना का गुणगान करते हैं.

56 वर्षीय भंवर सिंह शामली ज़िले के अमृत हॉस्पिटल में इलाज कराने के लिए उत्तराखंड से चलकर आए. जहां रक्त प्रवाह में अवरोध के उपचार के लिए उनकी धमनियों में स्टेंट लगाए जा रहे हैं.

सिंह ने बताया, ‘मेरे एक रिश्तेदार ने यहां इलाज कराया था. जब हम उसे यहां लेकर आए थे तो उसकी हालत बहुत गंभीर थी. पर अब उसे कोई तकलीफ नहीं है. इसलिए, इस अस्पताल पर मेरा विश्वास था पर मेरे पास यहां इलाज कराने के लायक पैसे नहीं थे.’

उन्होंने आगे बताया, ‘जैसे ही मुझे आयुष्मान भारत योजना की जानकारी मिली, मैंने उत्तराखंड के एक अस्पताल में पता किया कि क्या मैं अपना इलाज शामली में करा सकता हूं.’ सिंह ने कहा कि स्वतंत्र रूप से किसी निजी अस्पताल में इस इलाज में उनके डेढ़ से दो लाख रुपये खर्च होते.

अपने 5,000 रुपये के वेतन से चार-सदस्यीय परिवार को संभाल रहे शिवदत्त शर्मा ग़ाज़ियाबाद के सरकारी अस्पताल एमएमजी हॉस्पिटल में हर्निया का इलाज करा रहे हैं.

उन्होंने बताया, ‘करीब दो वर्षों से मैं दर्द सहन कर रहा था. यह जानकारी मिलने पर कि मैं इस योजना के तहत लाभार्थी बनने का पात्र हूं, मैंने आखिरकार इलाज कराने का फैसला किया. पहले तो अस्पताल मुझे (सर्जरी के लिए) तीन महीने आगे का डेट दे रहा था. लेकिन इस योजना के चलते एक सप्ताह के भीतर मुझे भर्ती कर मेरी सर्जरी कर दी गई.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

 

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