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Friday, 22 November, 2024
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‘देवसहायम पिल्लई को धर्मांतरण के लिए नहीं मारा गया’ – राजघरानों के पास मौजूद हैं इसके सबूत

मई में देवसहायम पिल्लई को संत घोषित किया गया है. संत का दर्जा पाने वाले वह पहले सामान्य भारतीय व्यक्ति हैं. तत्कालीन शाही परिवार ने पोप को लिखे पत्र में दावा किया कि उन्हें महाराजा मार्तंड वर्मा ने 'देशद्रोह' के लिए 'दंडित' किया था.

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नई दिल्ली: 18वीं सदी के कैथोलिक धर्मांतरित और जातिवाद जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले देवसहायम पिल्लई को मई में वेटिकन में पोप फ्रांसिस द्वारा संत की उपाधि दी गई. संत का दर्जा पाने वाले वह पहले सामान्य भारतीय व्यक्ति हैं. त्रावणकोर की पूर्ववर्ती रियासत के नाममात्र शाही परिवार के सदस्यों ने पोप फ्रांसिस को 5 जून को लिखे पत्र में दावा किया कि उनकी हत्या उनके हिंदू धर्म से ईसाई धर्म में जाने के कारण नहीं, बल्कि इसलिए की गई क्योंकि उनके खिलाफ राजद्रोह समेत अन्य आरोप लगे थे.

माना जाता है कि देवसहायम या लेजारूस धर्मांतरण करने से पहले नीलकंठ पिल्लई के नाम से जाने जाने वाले एक दरबारी थे. उन्हें महाराजा अनीझम थिरुनल मार्तंड वर्मा के आदेश के तहत धार्मिक कारणों से सताया गया था और गोली मार दी गई थी. मार्तंड त्रावणकोर ने दक्षिणी राज्य – वर्तमान में केरल में कोच्चि से लेकर तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले तक — 1729 से 1758 तक पर शासन किया था.

परिवार की तरफ से गौरी पार्वती बाई और गौरी लक्ष्मी बाई ने इस कहानी को चुनौती देते हुए पोप को पत्र में लिखा, ‘हमारे पूर्वजों के खिलाफ निरंतर चलाया जाने वाला अभियान … देवसहायम पिल्लई के संत घोषित करने के संदर्भ में’ अपनी ‘पीड़ा’ व्यक्त करते हुए.

दिप्रिंट से विशेष रूप से बात करते हुए गौरी लक्ष्मी बाई ने कहा कि देवसहायम को संत की उपाधि दिए जाने से परिवार को ‘कोई समस्या नहीं’ है, उन्होंने महाराजा मार्तंड वर्मा के चरित्र चित्रण पर आपत्ति जताई है.

लक्ष्मी बाई ने कहा, ‘हमने पत्र में अपने पूर्वजों के खिलाफ प्रचारित कुछ झूठी कहानियों की सच्चाई को उजागर किया है.’ वह बताती हैं, ‘देवसहायम को कई अन्य कारणों की वजह से दंडित किया गया था, न कि धर्मांतरण के लिए. इसे साबित करने के लिए हमारे पास ऐतिहासिक दस्तावेज और सबूत हैं. दरअसल, ऐतिहासिक मंच ने कल तिरुवनंतपुरम में एक बैठक की थी और उन्होंने देवसहायम और उनके आचरण के खिलाफ कई बातें भी कही. हमें प्रक्रिया या फैसले के बारे में कुछ नहीं कहना है… हम नहीं चाहते कि हमारे पूर्वजों को बदनाम किया जाए.’

लक्ष्मी बाई ने कहा कि त्रावणकोर के शासक ईसाई धर्म सहित ‘सभी धर्मों के प्रति दयालु’ थे.

उन्होंने दावा किया, ‘ हमारे पूर्वजों ने चर्च बनाने में काफी योगदान दिया था. उसमें कन्याकुमारी और त्रावणकोर में चर्च बनाने के लिए मिशनरियों को कर-मुक्त भूमि देना भी शामिल था.’

हिंदू राजाओं के चित्रण को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े कुछ निकायों में भी असंतोष है. आरएसएस द्वारा समर्थित केरल स्थित सामाजिक-राजनीतिक थिंक टैंक, भारतीय विचार केंद्रम के निदेशक आर. संजयन ने दिप्रिंट को बताया कि त्रावणकोर के हिंदू शासकों को असहिष्णु के रूप में चित्रित करना ‘देश के सभ्यतागत लोकाचार पर हमला है.’

देवसहयम को संत की उपाधि देने की प्रक्रिया फरवरी 2020 में पूरी हो गई थी और 15 मई उन्हें संत घोषित किया गया था.


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परस्पर विरोधी नैरेटिव

अपने पत्र में पूर्व शाही परिवार ने देवसहायम के बारे में ‘रिकॉर्ड सही करने’ और ‘हमारे पूर्वजों के खिलाफ नकारात्मक अनुमान’ के लिए पोप के हस्तक्षेप की मांग की है. इसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है.

परिवार ने पत्र में लिखा, ‘यह कहानी कि नीलकंठ पिल्लई उर्फ देवसहायम पिल्लई को ईसाई धर्म अपनाने के कारण फांसी दी गई थी, पूरी तरह से निराधार है.’

वेटिकन न्यूज, होली सी के मीडिया पोर्टल में एक लेख में देवसहायम को एक ‘भारतीय शहीद’ के रूप में वर्णित किया गया है. जिनका धर्म परिवर्तन करना ‘उनके मूल धर्म के प्रमुखों’ को अच्छा नहीं लगा था.

लेख में कहा गया, ‘कहानी यह है कि शासक इतने नाराज थे कि उन्होंने न केवल उन्हें शाही प्रशासन में अपने पद से हटा दिया, बल्कि उनके खिलाफ ‘देशद्रोह और जासूसी के झूठे आरोप’ लगाए गए. उन्हें कैद में ले लिया गया और यातनाएं दी गई थीं. 14 जनवरी, 1752 को कैथोलिक बनने के ठीक सात वर्ष बाद अरलवाइमोझी जंगल में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.’

पोप को त्रावणकोर परिवार का पत्र एक अलग कहानी सामने रखता है, जिसमें दावा किया गया है कि देवसहायम को ‘उच्च राजद्रोह’ के लिए दंडित किया गया था.

परिवार ने पत्र में लिखा, ‘डच जैसे त्रावणकोर के दुश्मनों के साथ उनके संबंध और देश के प्रति राजद्रोह को कभी माफ नहीं किया जा सकता था. देवसहायम के खिलाफ, गंभीर प्रकृति के अन्य आरोप थे, जिन्हें हम जानबूझकर नजरअंदाज कर रहे हैं.’

तत्कालीन महाराजा को ‘कट्टरपंथी’ के रूप में चित्रण का विरोध करते हुए, पत्र उनके और अन्य शासकों की ईसाइयों के प्रति उनकी ‘उदारता’ की बात कहता है.

पत्र में कहा गया है, ‘हालांकि महाराजा मार्तंड वर्मा और उनके उत्तराधिकारियों ने त्रावणकोर पर देवता (श्री पद्मनाभ स्वामी) के दास के रूप में शासन किया था. लेकिन उन्होंने कभी भी अन्य धर्मों से के साथ भेदभाव नहीं किया. ईसाई वास्तव में उनकी उदारता के लाभार्थी थे.’

पत्र में आगे लिखा था, ‘मार्तंडा वर्मा ने वरपुझा चर्च को ‘कर-मुक्त जमीन’ दी, उनके तत्काल उत्तराधिकारी, कार्तिका थिरुनल राम वर्मा ने, ‘डे लैनॉय के अनुरोध पर उदयगिरि चर्च के निर्माण के खर्चों को पूरा किया और एक सौ फैनम का वेतन दिया.’

पत्र में बताया गया है कि यूस्टाचियस डी लैनॉय एक डच नौसेना अधिकारी थे, जो त्रावणकोर सेना के कमांडर के रूप में सेवा करने के लिए आए थे. ऐसा माना जाता है कि देवसहायम पिल्लई ने डचमैन से प्रभावित होकर ईसाई धर्म ग्रहण किया था.

इसके अलावा, पत्र में दावा किया गया कि एक पोप त्रावणकोर के शासकों से काफी प्रभावित थे. पोप क्लेमेंट XIV ने 1774 में महाराजा को ‘त्रावणकोर में अपने चर्च के निवासियों के प्रति उनकी दया के लिए’ धन्यवाद दिया था, जबकि बेनेडिक्ट XV, जो 1914 से 1922 तक पोप थे, ने तत्कालीन शासक की ‘महान समानता और परोपकार’ की सराहना की थी.

पत्र में कहा गया है, ‘हमें यकीन है कि देवसहायम के बारे में बनाए गए नैरेटिव को लेकर, निष्पक्षता से और ऐतिहासिक न्याय को ध्यान में रखकर उपयुक्त पोप कार्रवाई की जाएगी.’

देवसहायम के संत होने का प्रस्ताव कोट्टार सूबा, तमिलनाडु बिशप परिषद और भारत के कैथोलिक बिशपों के सम्मेलन द्वारा भेजा गया था.

द प्रिंट से बात करते हुए पं. कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) के उप महासचिव जर्विस डिसूजा ने कहा, ‘हमने कोट्टार डायोसीज और टीएन बिशप काउंसिल से जांच की है. हमें या इनमें से किसी भी संगठन को पोप को लिखे गए इस तरह के किसी भी पत्र की जानकारी नहीं है. इसलिए हम अभी इस पर टिप्पणी नहीं कर पाएंगे.’

दिप्रिंट ने विवाद पर टिप्पणी के लिए पोप के कार्यालय को ई-मेल किया, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई जवाब नहीं मिला था.

‘हिंदू राजाओं के खिलाफ अभियान’

आरएसएस से जुड़े कुछ निकायों के अनुसार, देवसहायम के बारे में बनाई गई कहानियां हिंदू राजाओं की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए एक व्यापक अभियान का हिस्सा हैं.

केरल स्थित आरएसएस से जुड़े थिंक-टैंक भारतीय विचार केंद्रम के निदेशक आर. संजयन ने आरोप लगाते हुए कहा, ‘हिंदू राजाओं के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण अभियान 2014 में शुरू हुआ था. वे (मिशनरी) लोगों को बता रहे हैं कि केरल के हिंदू राजा असहिष्णु थे और उन्होंने ईसाई धर्म में परिवर्तित होने के लिए अपने अधिकारियों को मार डाला. यह एक झूठा आरोप है जो बिना किसी ऐतिहासिक साक्ष्य या दस्तावेजों के लगातार लगाया जाता रहा है.”

द प्रिंट से बात करते हुए सी.आई. इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च (ICHR) के एक सदस्य, इस्साक ने यह भी आरोप लगाया कि ‘पौराणिक नायक देवसहायम के समर्थक’ जानबूझकर त्रावणकोर के हिंदू समाज, विशेष रूप से ब्राह्मणों और नायरों को बदनाम करने के लिए कहानियों को ‘लोकप्रिय’ कर रहे हैं.’

इस बात पर जोर देते हुए कि वह देवसहायम के संत बनाने के खिलाफ नहीं हैं, इस्साक ने कहा कि उन्हें आपत्ति चर्च की ‘कहानियों’ पर हैं.

‘इंटरनेट, प्रिंट और विजुअल मीडिया के जरिए पौराणिक नायक के धर्मांतरण और उनके अंतिम समय के बारे में चर्च द्वारा फैलाई जा रही कहानियां, देश की महान हिंदू परंपरा के लिए अपमानजनक हैं.’ इस्साक ने दोहराया कि खुद एक ईसाई होने के बावजूद वह दुर्भावनापूर्ण इरादे से किए गए इस काम की निंदा करते हैं जो ‘शाही परिवार इमेज को गलत तरीके से पेश करने का प्रयास करता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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