नयी दिल्ली, 28 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि सदन या विधानसभा के किसी सदस्य को चालू सत्र की शेष अवधि से ज्यादा के लिये निलंबित करने से कुल मिलाकर लोकतांत्रिक व्यवस्था प्रभावित होगी क्योंकि इससे मामूली बहुमत वाली या गठबंधन सरकार को “अलोकतांत्रिक तरीके से” विपक्षी दलों की संख्या में हेरफेर का अवसर मिल सकता है।
कथित तौर पर पीठासीन अधिकारी से दुर्व्यवहार के कारण महाराष्ट्र विधानसभा से एक साल के लिये निलंबित किए गए 12 भाजपा विधायकों की याचिकाओं पर अपने फैसले में न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि एक साल के लिये निलंबन निष्कासन, अयोग्यता या इस्तीफे से “बद्तर” है।
पीठ ने कहा, ‘‘ हमें इन रिट याचिकाओं को स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं है और जुलाई 2021 में हुए संबंधित मानसून सत्र की शेष अवधि के बाद तक के लिए इन सदस्यों को निलंबित करने वाला प्रस्ताव कानून की नजर में असंवैधानिक, काफी हद तक अवैध और तर्कहीन है।’’
पीठ ने कहा कि अत:, इस प्रस्ताव को “कानून में निष्प्रभावी” घोषित किया जाता है, क्योंकि यह उस सत्र की अवधि के बाद तक के लिए था, जिसमें यह प्रस्ताव पारित हुआ था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता जुलाई 2021 में शेष सत्र की अवधि समाप्त होने पर और उसके बाद विधानसभा के सदस्य होने के सभी लाभों को पाने के हकदार हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि चालू सत्र की शेष अवधि से अधिक के लिए निलंबन के कारण संबंधित सदस्य की अनावश्यक गैरमौजूदगी “बुनियादी लोकतांत्रिक मूल्यों” का उल्लंघन होगी और इससे भी महत्वपूर्ण यह कि विधानसभा में निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं किया जाएगा।
अपने 90 पन्नों के फैसले में पीठ ने कहा, “यह निष्कर्ष के लिये पर्याप्त है कि एक साल का निलंबन ‘निष्कासन’, ‘अयोग्यता’ या ‘इस्तीफा’ से भी बद्तर है – जहां तक सदन/विधानसभा के समक्ष प्रतिनिधित्व करने वाले निर्वाचन क्षेत्र के अधिकार का संबंध है।”
पीठ ने कहा कि विधायिका में अपने सदस्यों को चालू सत्र की अवधि से परे निलंबित करने की शक्ति देने वाले किसी भी स्पष्ट प्रावधान के अभाव में, विधायिका की अंतर्निहित शक्ति को केवल आवश्यक सीमा तक और प्रासंगिक समय पर सदन के कार्यों के उचित अनुपालन के लिए ही लागू किया जा सकता है।
शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र विधानसभा नियमों के नियम 53 का उल्लेख किया, जो सदस्य के निष्कासन का आदेश देने की शक्ति से संबंधित है। पीठ ने कहा कि यह नियम न केवल एक सदस्य के निष्कासन के “कठोर आदेश” को पारित करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के बारे में बताता है, बल्कि क्रमिक तरीके से किए जाने वाले आत्म-सुरक्षा उपायों की पुष्ट आधारवाले अनुशासनात्मक कदम या तर्कसंगतता के बारे में भी बताता है।
पीठ ने कहा, “पूर्व (प्रक्रिया) का अनुपालन या विचलन गैर-न्यायसंगत हो सकता है। हालांकि, अनुशासनात्मक कदम या गलती करने वाले सदस्य पर लगाए गए आत्म-सुरक्षा उपाय की तर्कसंगतता के संबंध में, असंवैधानिक, पूर्ण रूप से अवैध और तर्कहीन या मनमाना होने की कसौटी पर न्यायिक समीक्षा का विकल्प खुला है।”
पीठ ने कहा कि यदि यह सदन में घोर अव्यवस्थित व्यवहार का मामला है, तो अध्यक्ष/सभापति दिन की शेष अवधि की बैठक के दौरान सदस्य को विधानसभा की बैठकों से निष्कासित करने का आदेश देने के लिए तत्काल निर्णय लेने को स्वतंत्र हैं और यदि यह उसी सत्र में बार-बार ऐसे दुर्व्यवहार का मामला है – तो शेष सत्र के लिए भी निष्कासन किया जा सकता है।
पीठ ने कहा, “…यदि सदन द्वारा पारित प्रस्ताव को निर्दिष्ट नियम के तहत निर्धारित अवधि से परे निलंबन प्रदान करना था, तो यह काफी हद तक अवैध, तर्कहीन और असंवैधानिक होगा।”
पीठ ने कहा कि चालू सत्र की शेष अवधि के बाद तक निलंबन करने से “कुल मिलाकर लोकतांत्रिक व्यवस्था प्रभावित होगी क्यों कि इससे मामूली बहुमत वाली (गठबंधन सरकार) को अलोकतांत्रिक तरीके से विपक्षी दलों की संख्या में हेरफेर का अवसर मिल सकता है।”
निलंबित किए गए 12 सदस्य संजय कुटे, आशीष शेलार, अभिमन्यु पवार, गिरीश महाजन, अतुल भातखलकर, पराग अलवानी, हरीश पिंपले, योगेश सागर, जय कुमार रावत, नारायण कुचे, राम सतपुते और बंटी भांगड़िया हैं। इन विधायकों ने इस प्रस्ताव को अदालत ने चुनौती दी है।
राज्य सरकार ने आरोप लगाया था कि विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष में पांच जुलाई, 2021 को पीठासीन अधिकारी भास्कर जाधव के साथ इन 12 विधायकों ने कथित रूप से दुर्व्यवहार किया था। इन विधायकों को निलंबित करने का प्रस्ताव राज्य के संसदीय कार्य मंत्री अनिल परब ने पेश किया था और ध्वनि मत से इसे पारित कर दिया गया था।
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प्रशांत अनूप
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