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Friday, 22 November, 2024
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बेंगलुरु में प्राइवेट ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर गए हड़ताल पर तो CM सिद्धारमैया बोले- उनकी मांगें ‘असंभव’

ऑटो, निजी बसों, कैब के चालकों ने महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा देने वाली शक्ति योजना के चलते भारी नुकसान का दावा किया है. करीब 36 यूनियनों ने सरकार से करीब 30 मांगें की है.

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बेंगलुरु: कर्नाटक में अपनी पांच चुनावी गारंटियों में से एक के तहत महिलाओं को मुफ्त सार्वजनिक बस यात्रा देने के सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के फैसले के विरोध में निजी परिवहन ऑपरेटर सोमवार को बेंगलुरु की सड़कों पर उतरे.

निजी परिवहन ऑपरेटर के बंद के चलते बेंगलुरु को एक किले में तब्दील कर दिया गया और पूरे शहर में भारी सुरक्षा के प्रावधान किए गए थे. परिवहन विभाग ने शहर से हवाई अड्डे जाने वाले रास्ते के लिए अतिरिक्त बसें तैनात कीं. प्रदर्शनकारियों द्वारा बंद का उल्लंघन करने और यात्रियों को ले जाने वाले पर ऑटो चालकों पर हमला करने की भी खबरें आई. पुलिस ऐसे कम से कम चार मामलों की जांच कर रही है.

10 मई को सत्ता में आने के तुरंत बाद सिद्धारमैया सरकार द्वारा लागू की गई शक्ति योजना के कारण ऑटो रिक्शा, निजी बसों, कैब चालक वित्तीय नुकसान का दावा कर रहे हैं.

शक्ति योजना 11 जून को लागू की गई पांच गारंटियों में से पहली थी, जिसके बाद से सैकड़ों हजारों लोगों को मुफ्त सार्वजनिक बस की सुविधा दी गई थी.

नई सरकार द्वारा मुफ्त बस यात्रा योजना की घोषणा के बाद से ऑटो रिक्शा, कैब और निजी बसों की कम से कम तीन दर्जन प्रमुख यूनियनों और अन्य संगठनों ने सरकार से लगभग 30 मांगें की हैं और सड़कों पर उतरने की धमकी दी है.

फेडरेशन ऑफ कर्नाटक स्टेट प्राइवेट ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष नटराज शर्मा ने संवाददाताओं से कहा, “हमारी सभी मांगें तुरंत पूरी की जानी चाहिए. अगर नहीं तो हमारा संघर्ष और तेज होगा. जब तक हमें लिखित आश्वासन नहीं मिलता, हमारा विरोध जारी रहेगा.”

प्रमुख मांगों में रैपिडो जैसी बाइक-टैक्सियों को बेंगलुरु में संचालित करने की अनुमति नहीं देना, वाणिज्यिक वाहनों पर आजीवन कर लगाने के प्रस्ताव को रद्द करना, एक विकास निगम की स्थापना करना और एग्रीगेटर्स के लिए एक ही दर/टैरिफ लागू करना शामिल है. निजी ड्राइवर यह भी मांग कर रहे हैं कि बेंगलुरु में ‘एक-शहर-एक-दर’ लागू किया जाए, जहां शहर के भीतर या हवाई अड्डे तक खानपान की कीमतें अलग-अलग नहीं हो सकती हैं.

ऑटो रिक्शा चालक व्यवसाय के नुकसान के लिए मुआवजे के रूप में प्रति माह 10,000 रुपये की मांग कर रहे हैं, जबकि निजी बस सेवा प्रदाताओं ने भी नई सरकार से अपने वित्तीय घाटे का हिसाब मांगा है.

परिवहन मंत्री रामलिंगा रेड्डी ने संवाददाताओं से कहा,“राज्य में 3.6 लाख ऑटो चालक हैं, और इससे (उनकी मांग) राज्य को 4,400 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. निजी बसों ने 1,000 करोड़ रुपये मांगे हैं. कुल मिलाकर, हमें 5,500 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी.”

हालांकि, वह इस बात पर कुछ भी नहीं बोले कि सरकार इन मांगों को पूरा करेगी या नहीं.

दूसरी ओर, सिद्धारमैया ने उन मांगों पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिन्हें उन्होंने “असंभव” बताया.

उन्होंने मैसूर में संवाददाताओं से कहा, “अगर वे असंभव मांगें रखते हैं तो हम कुछ नहीं कर सकते. हमने शक्ति योजना लागू की है, जिसके बाद महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा की सुविधा दी गई. उन्होंने (निजी परिवहन प्रदाताओं) कहा है कि इससे उन्हें परेशानी हुई है और कोई भी महिला अब निजी परिवहन का उपयोग नहीं कर रही है. क्या हम उन्हें पैसे दे सकते हैं? निजी बसें मांग कर रही हैं कि हम नुकसान की भरपाई करें क्योंकि महिलाएं उनके वाहनों का उपयोग नहीं कर रही हैं! यह व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है.”


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‘पारंपरिक बनाम विघटनकारी’

सबसे बड़ी मांगों में से एक है बाइक टैक्सी और ऐप-आधारित सामान ले जाने वाले पिकअप वाहनों को बेंगलुरु में संचालित करने के लिए परमिट नहीं देना. यह भारत के स्टार्टअप हब में पारंपरिक सेवा और प्रौद्योगिकी-सक्षम कंपनियों के बीच चल रहे एक बड़े तनाव को दिखाता है.

पिछले साल अक्टूबर में, परिवहन विभाग द्वारा न्यूनतम किराया उल्लंघन की शिकायतों पर कार्रवाई के बाद कर्नाटक सरकार ने ओला, उबर और रैपिडो जैसे ऐप-आधारित एग्रीगेटर्स द्वारा दी जाने वाली ऑटो सेवाओं को “अवैध” घोषित कर दिया था. टैरिफ और कमीशन पर विभिन्न सीमाओं के साथ ऑटो सेवाएं फिर से शुरू हो गई हैं.

बेंगलुरु में बाइक टैक्सी तकनीकी रूप से वैध नहीं हैं, क्योंकि दोपहिया सेवाओं पर दिशानिर्देश तैयार करने के लिए कई प्रस्ताव सरकार के समक्ष लंबित हैं. लेकिन स्पष्ट नियमों के अभाव में कुछ टेक कंपनियों ने ग्राहकों को बाइक टैक्सी सेवाएं देना शुरू कर दिया है.

कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे ने दिप्रिंट को बताया था, “हमारी नीतियां अभी भी प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा रही हैं. बाइक टैक्सियों पर प्रतिबंध है. मोटर वाहन अधिनियम में कार-शेयरिंग या कार-पूलिंग को लेकर कोई नियम नहीं है, और यदि आप भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम के अनुसार चलते हैं, तो आपको ऑप्टिकल-फाइबर केबल बिछाने की भी अनुमति नहीं है.”

बेंगलुरु स्थित एक कंपनी के समर्थन और नंदन नीलेकणि के नेतृत्व वाले गैर-लाभकारी फाउंडेशन फॉर इंटरऑपरेबिलिटी इन डिजिटल इकोनॉमी के समर्थन से ऑटो चालकों ने ‘नम्मा यात्री’ बनाया, जो “हाई कमीशन रेट” को मात देने के लिए पिछले साल लॉन्च की गई एक ऐप-आधारित सेवा है. उबर और ओला जैसी कंपनियां अब इसका इस्तेमाल करती है. यह अब बहुत मांग में हैं.

ड्राइवरों की इस मांग को ध्यान में रखते हुए कि सरकार को ऑटो, टैक्सियों और मालवाहक वाहनों के लिए अपना खुद का ऐप बनाना चाहिए. रेड्डी ने प्रदर्शनकारियों से कहा कि प्रशासन पहले से ही इस दिशा में काम कर रहा है. उन्होंने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ कहा, “यह ऐप बनाकर हम वैसा ही करेंगे जैसे एग्रीगेटर्स आपकी आधी कमाई लूट रहे हैं.”

मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार किसी भी कंपनी को अनुमति देने से इनकार कर देगी जो ई-ऑटो रिक्शा का थोक परिचालन शुरू करना चाहती है. अब केवल व्यक्तिगत परमिट दिए जाएंगे.

शाम को, प्रदर्शनकारियों ने रेड्डी के आश्वासन के बाद अपनी हड़ताल समाप्त कर दी कि सरकार ड्राइवरों की लगभग सभी मांगों को मान लेगी, जिसमें एक बोर्ड स्थापित करना, बाइक-टैक्सियों को सड़क से दूर रखने के लिए कानूनी मदद, एक एग्रीगेटर विकसित करना, ऐप और दूसरों के बीच कम ब्याज वाले ऋण प्रदान करना शामिल है.

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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