अगरतला, 21 अगस्त (भाषा) आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच (एएआरएम) ने भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त को पत्र लिखकर देश में होने वाली आगामी जनगणना में एक कॉलम के तहत आदिवासी धार्मिक आस्था को शामिल करने का आग्रह किया है।
मंच के अध्यक्ष जितेंद्र चौधरी ने पत्र में लिखा चूंकि विभिन्न आदिवासी समुदायों की अपनी-अपनी मान्यताएं व प्रथाएं हैं इसलिए जनगणना में ‘अनुसूचित जाति/जनजाति/आदिवासी धार्मिक आस्था’ शीर्षक से एक कॉलम शामिल करना उचित व न्यायसंगत होगा।
उन्होंने लिखा, “जनगणना डिजिटल लाइब्रेरी के कॉलम सी-01 के विवरण में धार्मिक समुदाय के अनुसार जनसंख्या की गणना छह प्रमुख धार्मिक समुदायों के आंकड़ों के रूप में वर्णित है।”
त्रिपुरा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष चौधरी ने बुधवार को लिखे पत्र में कहा, “इस तालिका में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों को शामिल किया गया है।”
चौधरी ने कहा, “अन्य धर्म और मत श्रेणी में शामिल अन्य सभी धर्मों की संयुक्त जनसंख्या को भी इस तालिका में शामिल किया गया है।”
उन्होंने कहा कि 2011 की जनगणना में अनुसूचित जाति/जनजाति/आदिवासी जनसंख्या कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत बताई गई थी।
चौधरी ने कहा कि अधिकांश आबादी की अपनी धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताएं व पहचान हैं।
उन्होंने कहा कि संख्यात्मक रूप से यह जनसंख्या ऊपर दिए गए विवरण में ‘प्रमुख’ बताए गए कई धार्मिक समुदायों से भी अधिक है।
चौधरी ने कहा, “पूरे भारत में आदिवासी समुदाय यह मांग करते रहे हैं कि उनकी विशिष्ट आस्थाओं को ‘ओआरपी’ की सामान्य श्रेणी में शामिल करने के बजाय जनगणना में विशिष्ट तौर पर उल्लेख किया जाना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि इस मांग की वैधता को स्वीकार करते हुए झारखंड विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें यह अनुरोध किया गया कि जनगणना में आदिवासी आस्थाओं के पंजीकरण के लिए एक अलग कॉलम शामिल किया जाए। चौधरी ने कहा चूंकि विभिन्न आदिवासी समुदायों की अपनी-अपनी आस्थाएं व प्रथाएं हैं, इसलिए ‘अनुसूचित जाति/जनजाति/आदिवासी आस्थाएं’ शीर्षक वाला एक कॉलम शामिल करना उचित व न्यायसंगत होगा।
भाषा जितेंद्र पवनेश
पवनेश
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