(कुणाल दत्त)
नयी दिल्ली, 15 फरवरी (भाषा) आज से ठीक एक सदी पहले प्रिंस ऑफ वेल्स ने पुरानी दिल्ली में एक खूबसूरत बगीचे में भव्य स्मारक के रूप में किंग एडवर्ड सप्तम की एक ऐतिहासिक प्रतिमा का लोकार्पण किया था। हालांकि स्वतंत्रता के बाद इस विरासत पार्क का नाम और भाग्य बदल गया, लेकिन इसकी किंवदंतियां अब भी शेष हैं।
घोड़े पर सवार ब्रिटिश सम्राट की पांच टन की कांस्य प्रतिमा को 1910 में उनके निधन के बाद स्थापित किया गया था। प्रतिमा को प्रसिद्ध कलाकार सर थॉमस ब्रॉक ने बनाया था और इसे इंग्लैंड से जहाज के जरिये भारत भेजा गया था।
अभिलेखीय रिकॉर्ड के अनुसार 15 फरवरी, 1922 को, एक हरे-भरे बगीचे के बीचों-बीच तत्कालीन प्रिंस ऑफ वेल्स ने प्रतिमा का अनावरण किया था। इस दौरान नजदीकी सलीमगढ़ किले में 101 तोपों की सलामी दी गई थी।
भारत यात्रा के दौरान प्रिंस ऑफ वेल्स ने स्मारक का उद्घाटन किया था।
यहां काफी समय से आ रहे लोगों का कहना है कि मुगल काल के लाल किले और 17वीं सदी की जामा मस्जिद के आसपास पांच एकड़ में फैला यह विशाल पार्क विभिन्न फूलों, पौधों और झाड़ियों से समृद्ध है, लेकिन यहां आने वाले लोगों के लिए हमेश केंद्रीय आकर्षण ‘घोड़ा और राजा’ ही होता था। प्रतिमा को 1968 में हटाने के बाद कनाड़ा के टोरंटो भेज दिया गया था।
पुरानी दिल्ली के निवासी मोहम्मद यूसुफ (66) अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहते हैं, ”बचपन में हम पार्क में जाया करते थे । उन दिनों पार्क में फूल महकते थे और ऐसा नजारा होता था कि पार्क से जाने का मन नहीं करता था। वहां से जामा मस्जिद का भी शानदार नजारा दिखाई देता था।”
जामा मस्जिद के सामने एक पुरानी ‘पान’ की दुकान चलाने वाले एक अन्य स्थानीय निवासी मोहम्मद इदरीस (65) ने कहा कि कई लोग, विशेष रूप से बुजुर्ग अभी भी इसे ”घोड़े वाले बाग” के रूप में जानते हैं।
स्वतंत्रता के बाद, 1950 के दशक में, पार्क का नाम स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर रखने और एडवर्ड की जगह बोस की प्रतिमा लगाने की मांग उठी। जिसके बाद 23 जनवरी 1975 को एडवर्ड पार्क का नाम बदलकर बोस के नाम पर रखा गया और तत्कालीन उपराष्ट्रति बी.डी. जत्ती ने पार्क में बोस की प्रतिमा का अनावरण किया। इस तरह पूरे पार्क को आजादी के बाद की राष्ट्रीय पहचान में ढाल दिया गया।
भाषा
जोहेब पवनेश
पवनेश
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