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Thursday, 21 November, 2024
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सीनियर रेजिडेंट डॉक्टरों के ‘लाभदायक’ पद भरने के लिए क्यों संघर्ष कर रहे हैं दिल्ली के कोविड अस्पताल

दिल्ली के कम से कम चार अस्पताल- एलएनजेपी, जीटीबी, आरएमएल और सफदरजंग- पिछले महीने से विज्ञापित सीनियर रेजिडेंट पदों को भरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: कोविड-19 के बढ़ते ग्राफ के बीच राष्ट्रीय राजधानी के अग्रणी अस्पतालों को सीनियर रेज़िडेंट्स के पद भरने में मुश्किलें पेश आ रही हैं, जो पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए बेहद लाभदायक पोज़ीशन मानी जाती है.

अस्पतालों के अधिकारियों के अनुसार, कम से कम चार अस्पताल- दिल्ली सरकार के लोक नायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल (एलएनजेपी) और गुरु तेग़ बहादुर (जीटीबी) अस्पताल और केंद्र सरकार के राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल और सफदरजंग अस्पताल- पिछले महीने से विज्ञापित पदों को भरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

इन चार में से पहले तीन अस्पताल दिल्ली में नामित कोविड-19 अस्पताल हैं. बृहस्पतिवार तक शहर में 1,04,864 कोविड मामले, और 3,213 मौतें दर्ज हो चुकीं थीं.

एलएनजेपी अस्पताल ने पिछले महीने एनेस्थीसिया और मेडिसिन के लिए 30 पद विज्ञापित किए थे. लेकिन सिर्फ तीन कैंडिडेट पेश हुए. जीटीबी और आरएमएल अस्पतालों में भी यही स्थिति है, जहां पिछले महीने विज्ञापित 27 और 72 पदों के लिए, अभी तक क्रमश: एक और 10 उम्मीदवार आए हैं.

सफदरजंग अस्पताल ने वर्धमान मेडिकल कॉलेज के साथ मिलकर 16 जून को सीनियर रेज़िडेंट्स के लिए 177 पद पोस्ट किए थे. कॉलेज की वेबसाइट के अनुसार अभी तक केवल 41 ख़ाली पद भरे गए हैं. जिनमें दो मेडिसिन में और दस एनेस्थीसिया में हैं.

मेडिसिन और एनेस्थीसिया कोविड-19 केयर के लिए सबसे अहम विभाग होते हैं.

इस स्थिति ने अस्पताल अधिकारियों को आश्चर्य में डाल दिया है, क्योंकि इस पद से जुड़े वेतन, अनुभव और करियर में उन्नति के बेहतर अवसरों की वजह से, सरकारी अस्पतालों में रेज़िडेंसी पोज़ीशन की बहुत मांग रहती है, दिल्ली के अस्पतालों में इस पद के लिए पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल छात्रों को 70,000 से 100,000 रुपए तक वेतन मिलता है और ये पद साल में दो बार निकलते हैं.

अस्पताल अथॉरिटीज़ इन पदों के लिए कम उम्मीदवार आने का कारण कोविड के डर और पोस्ट ग्रेजुएट इम्तिहानों में हुई देरी को मानती हैं. लेकिन पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल छात्रों का कहना है कि कोविड के सामाजिक कलंक और आघात के कारण वो रेज़िडेंसी से दूरी बनाए हुए हैं.

वॉक-इन इंटरव्यू कॉल्स के प्रति ठंडा उत्साह

एलएनजेपी में, जो दिल्ली का सबसे बड़ा कोविड अस्पताल है. वॉक-इन इंटरव्यूज़ के लिए कॉल्स का रेस्पॉन्स बहुत निराशाजनक रहा है. एक मेडिकल ऑफिसर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘भर्ती के लिए 22 और 23 जून की तारीख़ें तय थीं. लेकिन 30 ख़ाली पदों के लिए केवल 3 कैंडिडेट पेश हुए- एनेस्थीसिया विभाग में हमारे पास 19 पद हैं, और मेडिसिन में 11 ख़ाली पद हैं.’

ऑफिसर ने कहा कि पिछले सालों में इंटरव्यूज़ को आमतौर से बेहतर रेस्पॉन्स मिलता था. उन्होंने कहा, ‘हमें आराम से ख़ाली पदों के दोगुने आवेदन मिल जाते थे. लेकिन इस बार एनेस्थीसिया विभाग में 18 ख़ाली पदों के लिए केवल दो कैंडिडेट आए और मेडिसिन विभाग में भी स्थिति कुछ बेहतर नहीं थी. 11 ख़ाली पदों के लिए हमारे पास सिर्फ एक कैंडिडेट आया.’

जीटीबी अस्पताल के एक अधिकारी ने कहा कि मेडिसिन और एनेस्थीसिया के ख़ाली पदों के लिए विज्ञापन दिए गए थे. नाम न बताने की शर्त पर उन्होंने कहा, ’15 दिन हो गए जब हमने 27 पद विज्ञापित किए थे… (हमने) अभी तक मेडिसिन विभाग के लिए सिर्फ एक कैंडिडेट को आते देखा है.’

अस्पताल में सीनियर रेज़िडेंट्स के लिए 253 स्वीकृत पोजीशंस हैं, लेकिन उनमें से 91 ख़ाली हैं.

उन्होंने कहा, ‘ऐसा लगता है कि फिलहाल कैंडिडेट्स उपलब्ध ही नहीं हैं. एनेस्थीसिया विभाग में कंसलटेंट्स के 25 स्वीकृत पदों में से, 14 पद ख़ाली हैं और सीनियर रेज़िडेंट्स के स्तर पर 11 जगह ख़ाली हैं.’

आरएमएल अस्पताल में कोविड और ग़ैर-कोविड मरीज़ों के इलाज के लिए 1,042 बेड्स हैं. लेकिन यहां 108 डॉक्टर्स और 328 नर्सों की कमी है.

आरएमएल अस्पताल की अतिरिक्त मेडिकल सुपरिंटेंडेंट मीनाक्षी भारद्वाज ने बचाया कि अस्पताल में डॉक्टरों की सख़्त ज़रूरत है. अस्पताल ने पदों के लिए विज्ञापन दिया है, लेकिन अभी तक कोई सकारात्मक रेस्पॉन्स नहीं मिला है. उन्होंने कहा, ‘हमारे पास सीनियर रेज़िडेंट डॉक्टरों के 72 पद ख़ाली हैं और विज्ञापन देने के बाद भी केवल दस कैंडिडेट इंटरव्यू के लिए आए थे.’

बृहस्पतिवार को अस्पताल ने फिर से, सीनियर रेज़िडेंट्स के लिए 142 ताज़ा वेकेंसीज़ निकालीं.

कम उम्मीदवारों का कारण कोविड संकट और इम्तिहान में देरी

भारद्वाज के अनुसार, इतने कम कैंडिडेट्स के आने का कारण कोविड-19 संकट है. उन्होंने कहा कि, ‘बीमारी लग जाने का डर इतना हावी है कि डॉक्टर्स उन वॉर्ड्स में काम नहीं करना चाहते.’

अभी तक, आरएमएल अस्पताल से जुड़े 162 स्वास्थ्यकर्मी, कोविड पॉजिटिव निकल चुके हैं.

लेकिन, एलएनजेपी के मेडिकल ऑफिसर ने कहा कि इसके पीछे महामारी ही एक कारण नहीं है. उन्होंने कहा कि पीडियाट्रिक्स, स्किन और दूसरे पैरा-क्लीनिकल पदों के लिए अकसर कम ही कैंडिडेट आते हैं, क्योंकि बहुत कम लोग विशेषज्ञता के लिए इन फील्ड्स के चुनते हैं.

उन्होंने ये भी कहा, ‘महामारी का मतलब ये नहीं है कि डॉक्टर्स अस्पताल आना बंद कर देंगे. हम सब अस्पताल आ रहे हैं और हर रोज़ 12 घंटे काम कर रहे हैं. दूसरी बहुत सी मजबूरियां हैं, जो डॉक्टरों को आवेदन देने से रोक रही हैं. ये कारण उनके पेरेंट्स या बच्चों, या उनका ख़ुद का स्वास्थ्य हो सकता है.’

डीटीबी अस्पताल के अधिकारी ने कहा कि उम्मीदवारों की कमी के पीछे कोविड एक कारण हो सकता है, लेकिन उन्होंने इम्तिहानों में देरी के मुद्दे का भी ज़िक्र किया.

सफदरजंग अस्पताल के अधिकारियों ने कुछ कहने से मना कर दिया.

कोविड के बीच रेज़िडेंसी पर छात्र क्या कहते हैं

पांच में से तीन अस्पतालों की रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के सदस्यों का कहना है कि जो डॉक्टर पहले संक्रमित हो गए थे, कमी की वजह से वो फिर काम पर लौट आए हैं. उन्होंने ये भी कहा कि कोविड के डर से, बहुत से डॉक्टर अपने परिवारों से नहीं मिल रहे हैं.

नाम न बताए जाने की शर्त पर, आरएमएल के एक रेज़िडेंट डॉक्टर ने कहा, ‘शिफ्ट ख़त्म करने के बाद, हम अपने फैमिली मेम्बर्स को नहीं छू सकते और न ही एक कमरे में रह सकते हैं. वो डॉक्टर जो अपने पेरेंट्स या बच्चों के साथ रह रहे हैं, अपने परिवार के साथ समय बिताने के लिए तरसते हैं.’

एम्स के एक आरडीए सदस्य ने दिप्रिंट से कहा, ‘सीनियर रेज़िडेंट्स पर बहुत सारे मरीज़ों का बोझ रहता है, ज़रूरत इस बात की है कि ऐसे अतिरिक्त डॉक्टर्स लाए जाएं, जिन्हें कोविड की ट्रेनिंग मिली हुई हो.’

पोस्ट-ग्रेजुएशन मेडिकल छात्र जो सीनियर रेज़िडेंट पोज़ीशन के आवेदन के पात्र होते हैं, इसके इच्छुक नहीं लग रहे हैं. मरीज़ों का भारी बोझ, जो सामान्य हालात में अनुभव के लिए आकर्षक माना जाता है, वही उन्हें लौटा रहा है.

दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में फिलहाल सीनियर रेज़िडेंट डॉक्टर के तौर पर काम कर रहे, एक मेडिकल छात्र ने कहा, ‘बतौर डॉक्टर्स हम बहुत तनाव में हैं. हम में से अधिकतर, जो हॉस्टल्स में रहते हैं, उनका जीवन मुसीबत भरा होता है, चूंकि कोई बात करने के लिए भी नहीं होता.’

दिल्ली में फर्स्ट-इयर के एक और पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल छात्र ने कहा, ‘जिन डॉक्टरों के परिवार हैं उनका घर जाना मुश्किल होता है. कोई क्यों चाहेगा कि उनका अपना परिवार संक्रमित हो जाए? हम जैसे अविवाहित डॉक्टरों के लिए, मकान मालिकों और पड़ोसियों ने, हमारा अपने घरों में रहना मुश्किल कर दिया है. हम जहां जाते हैं, ये कलंक साथ साथ चलता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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