नयी दिल्ली, दो नवंबर (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने उस महिला की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने एक व्यक्ति पर बार-बार यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की थी। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अदालत का रुख करने से पहले अनिवार्य कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
अदालत ने कहा कि महिला ने अर्जी दाखिल करने से पहले अनिवार्य कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नेहा मित्तल एक महिला द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिसमें उसने शादी का झूठा वादा करके बार-बार यौन उत्पीड़न, आपराधिक धमकी, ताक-झांक, पीछा करना, धोखाधड़ी, प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया था।
मजिस्ट्रेट ने एक नवंबर के आदेश में कहा, ‘‘आवेदन और उसके साथ संलग्न हलफनामे के अवलोकन से ज्ञात होता है कि शिकायतकर्ता ने कहीं भी यह नहीं कहा है कि संबंधित थाना प्रभारी (एसएचओ) के कार्रवाई नहीं करने के बाद, उसने अपनी शिकायत के साथ पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) से संपर्क किया।’’
मजिस्ट्रेट ने कहा, ‘‘इस अदालत का मानना है कि आवेदक/शिकायतकर्ता ने बीएनएसएस की धारा 173(4) के अनिवार्य प्रावधान का अनुपालन नहीं किया है।’’
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 173(4) यह प्रावधान करती है कि यदि कोई पुलिस अधिकारी संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट दर्ज करने से इनकार करता है, तो व्यक्ति के पास कानूनी उपाय उपलब्ध है।
यह प्रक्रिया पीड़ित व्यक्ति को वरिष्ठ अधिकारी को सूचित करने की अनुमति देती है।
अदालत ने कहा कि एसएचओ के कार्रवाई नहीं करने के बाद शिकायतकर्ता ने संबंधित डीसीपी से संपर्क नहीं किया, इसलिए बीएनएसएस के कानूनी प्रावधान का पालन नहीं किया गया।
महिला ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने 2021 में दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास एक होटल में उसे शादी का झूठा वादा करके उसका यौन उत्पीड़न किया और बाद में उसका पीछा किया, धमकी दी और उत्पीड़न किया।
भाषा धीरज दिलीप
दिलीप
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