नई दिल्ली: आज 1 मई है. यानी विश्व मजदूर दिवस. दुनिया भर में आज से करीब 150 साल पहले दुनिया के ताकतवर देशों के मजदूरों ने अपने साथ हो रहे शोषण के खिलाफ, कम वेतन, मनमाने तरीके से काम कराए जाने के कारण अपने मालिकों को खिलाफ विद्रोह प्रदर्शन किया था. लेकिन इतने साल बीत जाने के बाद भी मजदूरों की बदहाली का आलम आज भी जारी है.
‘मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी में पिछले 10 साल से काम कर रही हूं. लेकिन अब मुझे यहां नई कंपनी को ठेका मिलने से हटाया जा रहा है. आज मजदूर दिवस के दिन मैं बेरोजगार हो गई हूं. मेरे पति को हार्ट की बीमारी है. मेरी चार लड़कियां हैं और दो लड़के. पैसे की तंगी के चलते लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी थी. लड़के भी अभी पढ़ाई कर रहे हैं. अब ब्याज पर पैसे लेकर कितने दिन तक गुजारा चलाऊं.’
ये कहानी है दिल्ली युनिवर्सिटी में पिछले 13 सालों से काम करने वालीं शांति की. वे राजस्थान से पलायन करके दिल्ली आई हैं. ताकि उन्हें मजदूरी की सही कीमत और बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके. लेकिन अब उन्हें एक वक्त की रोटी के लाले पड़े हैं. कारण, उन्हें आज के दिन बेरोजगार कर दिया गया.
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मामला क्या है
दिल्ली यूनिवर्सिटी के सफाईकर्मी पिछले 10-15 सालों से विश्वविद्यालय में काम करते हुए इसे साफ रखने का काम कर रहे हैं. 2005 से सुलभ इण्टरनेशनल के तहत उन्हें ठेके पर काम कराया जा रहा था. इस दौरान उन्हें पीएफ ईएसआई की सुविधा भी नहीं दी जाती थी. 10-15 सालों से लगातार काम करने के बाद अचानक एक सप्ताह पहले उन्हें बताया गया कि सुलभ का ठेका खत्म होने के कारण 1 मई से उन्हें काम से हटा दिया जाएगा.
पिछले 15 सालों से डीयू में बतौर सफाई कर्मचारी काम कर रहे और दिल्ली के वजीराबाद में रहने वाले राजेंद्र का कहना है कि हमारे साथ सुलभ के साथ काम करने के दौरान कई तरह का दुर्व्यवहार होता था. जैसे हमें वेतन समय पर नहीं मिलता था. हमसे बाद में आए कर्मचारियों को हमसे ऊपर का पद दे दिया गया. उन्हें हमारा सुपरवाइजर बना दिया गया. और वे हमसे तू-तड़ाक करके बात करते हैं. इसके अलावा यहां कागज पर कुल 300 कर्मचारी काम करते हैं लेकिन असल में यहां 200 से ज्यादे कर्मचारियों ने कभी काम ही नहीं किया. इसमें विश्वविद्यालय प्रशासन और सुलभ की मिलीभगत थी.
वह कहते हैं, ‘इन सब बातों से आहत होकर हम और हमारे कुछ साथियों ने अपनी हक की लड़ाई के लिए सुलभ इंटरनेशनल के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में केस कर दिया. इसके पहले भी हम 6 महीने धरने पर बैठे थे. जिसका वेतन हमें ठीक से नहीं दिया गया.’
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आरोपों पर क्या बोला सुलभ इंटरनेशनल
इन आरोपों पर जब हमने सुलभ इंटरनेशनल से पूछा तो वहां काम करने वाले प्रवीण चक्रवर्ती ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमें 24 अप्रैल को एक नोटिस आया कि हमारा टेंडर पूरा हुआ और अब किसी नई कंपनी को इसका टेंडर दिया जा रहा है. हमें 1 मई से पहले यहां से अपना काम समेटने का आदेश दिया गया. और जहां तक सफाईकर्मियों के आरोपों की बात है तो ये सब बेफिजूल की बातें हैं. हर कर्मचारी का बॉयोमैट्रिक होता है और वहां के कर्मचारी रोज सुबह अटेंडेंस लेते हैं.’
फिलहाल, अब यह देखने वाली बात होगी कि बेरोजगार हो चुके इन मजदूरों की समस्या का निदान कब और कैसे निकल कर आता है.