नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस की इंटेलिजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रैटेजिक ऑपरेशंस (आईएफएसओ) यूनिट ने एक ऐसे ‘मॉड्यूल’ का भंडाफोड़ किया है, जो कथित तौर पर आईटी कंपनियों में करियर संभावनाएं बढ़ाने के उद्देश्य से छात्रों और पेशेवरों की तरफ से ऑनलाइन आईटी सर्टिफिकेशन एग्जाम दे रहा था. मार्क्स के बदले पैसे के इस फर्जीवाड़े के सिलसिले में पुलिस ने अब तक तीन लोगों को गिरफ्तार किया है.
पुलिस के मुताबिक, इस हाई-टेक धोखाधड़ी के रैकेट के पीछे मास्टरमाइंड पिता-पुत्र की जोड़ी राजेश कुमार शाह और दीप शाह हैं, जो गुजरात के अहमदाबाद में एक आईटी कोचिंग संस्थान चलाते हैं. दोनों कथित तौर पर अपने क्लाइंट की जगह रिमोट एग्जाम देने के लिए दिल्ली के एक टेक्निकल एक्सपर्ट अखलाख आलम की सेवाएं लेते हैं.
पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) के.पी.एस. मल्होत्रा ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमें ऐसी खुफिया जानकारी मिली थी कि डार्क वेब पर कई सेवाएं उपलब्ध हैं जिसमें हैकर्स का दावा है कि वह परीक्षा देने वालों का कंप्यूटर हैक करके मनचाहे नंबर दिला सकते हैं. एक अन्य पुलिस सूत्र ने कहा कि आरोपी ने 9,000 से 10,000 रुपये चार्ज किए, और लगभग 200 क्लाइंट के लिए परीक्षा दी.
इन तीनों ने विभिन्न ऑनलाइन टेक सर्टिफिकेशन एग्जाम क्रैक करने में महारत हासिल कर रखी है. डीसीपी मल्होत्रा ने दिप्रिंट को बताया कि इन प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छे अंक हासिल कर लेने से आईटी अभ्यर्थियों के लिए बेहतर प्लेसमेंट की संभावना बढ़ जाती है.
अधिकारी ने कहा, ‘तकनीकी कौशल बढ़ाने के लिए विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रमाणपत्रों में अच्छे स्कोर हासिल करने की जरूरत पड़ती है. ये प्रमाणपत्र कई प्रतिष्ठित संगठनों की तरफ से दिए जा रहे हैं—जिसमें सिस्को, कॉम्पटिया, ईसी-काउंसिल के सर्टिफिकेट शामिल हैं….ये आईटी क्षेत्र के साथ-साथ अन्य उद्योगों में भी किसी उम्मीदवार के चयन और वेतन ग्रेड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.’ उन्होंने कहा कि इन प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छा स्कोर आईटी उम्मीदवारों का करियर आगे बढ़ाने में काफी मददगार हो सकता है.
एक अन्य पुलिस सूत्र ने कहा, ‘ये प्रमाणपत्र दुनियाभर में माइक्रोसॉफ्ट, गूगल आदि जैसी बड़ी आईटी कंपनियों में भी मान्य होते हैं और इसके बलबूते उम्मीदवार अच्छा वेतन पैकेज पा सकते हैं.’
सूत्र ने कहा, ‘ये तीनों यह पूरा फर्जीवाड़ा कोविड-19 महामारी फैलने के बाद से चला रहे हैं, क्योंकि सभी परीक्षाएं ऑनलाइन मोड में शिफ्ट हो गई हैं. हमें जो ताजा खुफिया जानकारी मिली थी, वो पियर्सन आईटी सर्टिफिकेशन (के बारे में) की थी.’
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कैसे की कार्रवाई
खुफिया जानकारी के आधार पर दिल्ली पुलिस की टीम ने अपना जाल बिछाया और एक ऐसे नकली प्रतिभागी की व्यवस्था की जो कॉम्पटिया ए+ सर्टिफिकेशन (कोर 1) एग्जाम में हाई स्कोर हासिल करने के लिए पैसे देने को तैयार था.
पुलिस के मुताबिक, इस नकली प्रतिभागी ने वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल (वीओआईपी) संचार का इस्तेमाल करके हैकर्स से संपर्क साधा और फिर उनके बताए खाते में पैसे ट्रांसफर कर दिए. इसके बाद हैकर ने उम्मीदवार से इपेरियस रिमोट नाम का सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने को कहा.
डीसीपी मल्होत्रा ने बताया, ‘सॉफ्टवेयर के माध्यम से हैकर ने प्रतिभागी के लैपटॉप पर नियंत्रण कर लिया और 25 अक्टूबर को परीक्षा देने का प्रयास किया. इस नकली प्रतिभागी ने 736 अंकों के साथ परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके बाद ही मामला दर्ज किया गया था.’
पुलिस मोबाइल नंबर, बैंक अकाउंट और इंटरनेट आईपी एड्रेस के तकनीकी विश्लेषण के आधार पर सबसे पहले दीप शाह तक पहुंची.
कैसे करते थे फर्जीवाड़ा
पुलिस के अनुसार, दीप और उसके पिता राजेश संभावित क्लाइंट को ऑनलाइन सर्टिफिकेशन परीक्षा पास कराने की ‘शत-प्रतिशत गारंटी’ देते थे. डीसीपी ने कहा, ‘अपने ट्रेनिंग सेंटर के माध्यम से उन्होंने उन आवेदकों से संपर्क साधा जिनके पास आवश्यक ज्ञान और कौशल नहीं था और उन्हें मनचाहा स्कोर दिलाने का वादा किया. उन्होंने व्हाट्सएप और टेलीग्राम के माध्यम से भी प्रतिभागियों से संपर्क किया.’ उन्होंने बताया कि दरअसल पिता-पुत्र की जोड़ी ने इन प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने के लिए आलम को काम पर रख रखा था, जिसने ‘एप के जरिये रिमोट एक्सेस हासिल करके विभिन्न परीक्षाओं के लिए साइटों को हैक किया—इसमें डब्ल्यूएस (अमेजन वेब सर्विसेज), अजूर, कॉम्पटिया ए+, पीएमपी, सीआईएसएम, सीईएच (साइबर एथिकल हैकिंग) आदि शामिल हैं.
पुलिस ने बताया, आलम ने नेटवर्किंग में शीर्ष स्तर के आईटी सर्टिफिकेशन हासिल कर रखे हैं और उसे ए-ग्रेड नेटवर्क इंप्लीमेंटेशन और डिजाइन इंजीनियर के तौर पर काम करने का 12 वर्षों से अधिक का अनुभव है.
पुलिस ने बताया कि हैकर्स प्रतिभागियों से सबसे पहले तो अल्ट्राव्यूअर, एनीडेस्क, या इपेरियस रिमोट जैसे रिमोट एक्सेस सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने को कहते थे. अगला कदम होता था इन क्लाइंट के सिस्टम में ऐसा सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करना, जो परीक्षा लेने वाली कंपनी के सिक्योरिटी सॉफ्टवेयर की पकड़ में न आ पाए. इसके अलावा, वह ऐसे सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करते जिनसे परीक्षा लेने वालों के लिए किसी भी गतिविधि या प्रतिभागी की गतिविधियों में किसी गड़बड़ी का पता लगाना मुश्किल हो. एक बार यह सब हो जाने के बाद आईटी एक्सपर्ट की तरफ से एग्जाम क्रैक करने की कोशिश की जाती थी.
पुलिस सूत्र ने कहा, ‘इन प्रतियोगी परीक्षाओं को दुनियाभर में मान्यता प्राप्त है. जो एग्जाम पहले ऑफलाइन होते थे, अब विभिन्न सॉफ्टवेयर के माध्यम से ऑनलाइन आयोजित किए जा रहे हैं. उदाहरण के तौर पर सिस्को टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बिगनर्स, एसोसिएट्स और एक्सपर्ट के लिए अलग-अलग सर्टिफिकेशन एग्जाम आयोजित करता है. इन सभी परीक्षाओं में अच्छा स्कोर पाने के लिए अपेक्षित ज्ञान के साथ प्रोग्रामिंग जैसे विशेष कौशल की आवश्यकता होती है.’
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