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Friday, 22 November, 2024
होमदेशयौन उत्पीड़न मामले में दिल्ली की अदालत ने बृजभूषण सिंह को दी अंतरिम जमानत, 20 जुलाई को होगी अगली सुनवाई

यौन उत्पीड़न मामले में दिल्ली की अदालत ने बृजभूषण सिंह को दी अंतरिम जमानत, 20 जुलाई को होगी अगली सुनवाई

दिल्ली पुलिस ने 15 जून को बृज भूषण शरण सिंह और विनोद तोमर के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था. यह मामला महिला पहलवानों की शिकायत पर दर्ज किया गया था.

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नई दिल्ली: दिल्ली की राऊज एवेन्यू कोर्ट ने मंगलवार को महिला पहलवानों के कथित यौन उत्पीड़न मामले में भारतीय कुश्ती महासंघ के निवर्तमान प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह को अंतरिम जमानत दे दी.

अदालत ने मामले के एक अन्य आरोपी विनोद तोमर को भी अंतरिम जमानत दे दी. बृजभूषण और विनोद तोमर की नियमित जमानत पर सुनवाई 20 जुलाई को होगी.

अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटिन मजिस्ट्रेट हरजीत सिंह ने सिंह को 25,000 रुपये के निजी मुचलके पर राहत दी.

दिल्ली पुलिस ने 15 जून को बृज भूषण शरण सिंह और विनोद तोमर के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था. यह मामला महिला पहलवानों की शिकायत पर दर्ज किया गया था.

विशेष लोक अभियोजक अतुल श्रीवास्तव के अनुसार आरोप पत्र आईपीसी की धारा 354, 354डी, 345ए और 506 (1) के तहत दायर किया गया था.

पहलवानों की शिकायत के आधार पर बृजभूषण सिंह के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गईं.

एक को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत दर्ज किया गया था और एक नाबालिग पहलवान के मामले में रद्दीकरण रिपोर्ट दायर की गई है. दूसरी एफआईआर कई पहलवानों की शिकायत पर दर्ज की गई थी.

दिल्ली पुलिस ने पॉक्सो मामले पर सबूतों की कमी का हवाला देते हुए पटियाला हाउस कोर्ट में कैंसिलेशन रिपोर्ट दाखिल की.

वर्तमान मामले के अलावा, एक नाबालिग पहलवान द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद सिंह के खिलाफ एक और प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जो यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत थी. वह उन सात महिला पहलवानों में शामिल थी जिन्होंने सिंह पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था.

दोनों प्राथमिकी में, एक दशक से अधिक समय में अलग-अलग समय और स्थानों पर सिंह द्वारा अनुचित स्पर्श, छेड़छाड़, पीछा करना और धमकी जैसे यौन उत्पीड़न के कई कथित उदाहरणों का उल्लेख किया गया है.

दिल्ली पुलिस ने कहा, POCSO मामले में, जांच पूरी होने के बाद, हमने सीआरपीसी की धारा 173 के तहत एक पुलिस रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें शिकायतकर्ता यानी पीड़िता के पिता और खुद पीड़िता के बयानों के आधार पर मामले को रद्द करने का अनुरोध किया गया है.


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