नयी दिल्ली, 24 मार्च (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद को फरवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगों से संबंधित व्यापक षड्यंत्र के एक मामले में जमानत देने से बृहस्पतिवार को यह कहते हुए इनकार कर दिया यह विश्वास करने का तार्किक आधार है कि उसके खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथमदृष्टया सही हैं।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने तीन मार्च को खालिद और अभियोजन पक्ष के वकील की दलीलें सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था।
अदालत ने बचाव पक्ष के वकील की इस दलील को खारिज कर दिया कि खालिद शोधकर्ता है और उसकी मनोस्थिति का आकलन उसके झारखंड के आदिवासियों के कल्याण पहलू पर डॉक्टरेट के शोधपत्र और अन्य लेखों की जा सकती है । अदालत ने कहा कि जमानत अर्जी पर फैसला करने के लिए ये पहलू प्रासंगिक नहीं है।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ अगर मनोस्थिति का आकलन इस तरीके से किया जाए तो इस मामले में सह आरोपी शरजील इमाम ने दंगे पर शोधपत्र लिखा है, लेकिन कोई शोधपत्र या शोध कार्य अकेले किसी भी आरोपी की मनोस्थिति का आकलन करने का आधार नहीं हो सकता है।’’
न्यायाधीश ने कहा कि जमानत पर फैसला आरोप पत्र में पेश किए गए तथ्यों के आधार पर किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा,‘‘इसलिए जमानत के सीमित संदर्भ में आरोप पत्र और साथ जमा अन्य दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद, मेरी राय है कि आरोपी उमर खालिद के खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं।’’
खालिद द्वारा दंगे के दौरान दिल्ली में मौजूद नहीं रहने की दलील को भी अदालत ने खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि साजिश के मामले में यह जरूरी नहीं है कि प्रत्येक आरोपी मौके पर मौजूद हो।
अदालत ने कहा, ‘‘यह रेखांकित करना अहम है कि साजिश में विभिन्न आपराधिक कृत्य अलग-अलग आरोपियों द्वारा किये जाते हैं। एक कृत्य को अलग कर नहीं देखा जा सकता। एक समय, अगर स्वयं किसी कार्य या गतिविधि को अलग-अलग देखा जाए तो गैर हानिकारक लग सकता है लेकिन अगर वे साजिश की श्रृंखला का हिस्सा हों तो तब सभी गतिविधियों को एकसाथ देखा जाना चाहिए।’’
अदालत ने रेखांकित किया कि आरोपपत्र में दावा किया गया है कि पूर्व नियोजित साजिश के तहत ‘‘चक्का जाम’ और दिल्ली के 23 स्थानों पर प्रदर्शन की योजना थी, जिससे संघर्ष युक्त ‘चक्काजाम’ तेज हुआ और हिंसा भड़की जिसके परिणामस्वरूप दंगा हुआ।
अदालत ने कहा कि जिस तरह से हमला हुआ और विध्वंस हुआ वह पूर्व नियोजित लगता है।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ ऐसी गतिविधि जिससे देश की एकता और अखंडता को खतरा उत्पन्न हो और सांप्रादिक सौहार्द्र खराब हो, समाज के किसी वर्ग में हिंसा से भय पैदा हो वह भी आतंकवादी गतिविधि है। ’’
अदालत ने बचाव पक्ष की यह दलील भी खारिज कर दी कि खालिद व्हाट्सऐप समूह ‘एमएसजे’ और ‘डीपीएसजी’ का हिस्सा था लेकिन उन समूहों में अनेक संदेश नहीं भेजे और न ही वे भड़काऊ या आपराधिक थे।
खालिद और कई अन्य लोगों के खिलाफ फरवरी 2020 के दंगों के सिलसिले में आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है। दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हो गए थे। फरवरी 2020 में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई थी।
खालिद के अलावा, कार्यकर्ता खालिद सैफी, जेएनयू छात्रा नताशा नरवाल व देवांगना कालिता, जामिया समन्वय समिति की सदस्य सफूरा जरगर, आम आदमी पार्टी (आप) के पूर्व निगम पार्षद ताहिर हुसैन और कई अन्य लोगों के खिलाफ भी यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था।
भाषा धीरज पवनेश
पवनेश
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