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Saturday, 18 May, 2024
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‘महाचोर’ बंटी को गिरफ्तार करने वाले दिल्ली के सुपरकॉप राजेंद्र सिंह से जानिए उनके कारनामों के बारे में

साल 2012 के निर्भया गैंगरेप सहित कई हाई-प्रोफाइल मामलों पर काम करने वाले दिल्ली पुलिस के सुविख्यात पूर्व एसीपी ने अपने करियर के बारे में, किसी मामले को सुलझाने में किस तरह का प्रयास लगता है - और इस पर भी कि वह श्रद्धा वालकर हत्याकांड की जांच के बारे में क्या सोचते हैं- आदि के बारे में खुलकर बातें की.

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नई दिल्ली: दिल्ली के मशहूर पूर्व पुलिस अधिकारी राजेंद्र सिंह कहते हैं, ‘पुलिस अधिकारी जूते की तरह होते हैं. आप किसी व्यक्ति के बारे में यह जानने के लिए उसके जूते को ओर देखते हैं कि वह कैसा शख्श है. उसी तरह, आप किसी समाज के प्रति जिम्मेदार पुलिस कर्मियों को देखकर यह जान सकते हैं कि वह समाज कैसा है.’

एक ऐसे समय में दिप्रिंट से बात करते हुए जब दिल्ली पुलिस श्रद्धा वालकर हत्या कांड जैसे हाई-प्रोफाइल मामले में सुबूत जुटाने और जांच की कड़ियां जोड़ने को लेकर दबाव में है, सिंह ने इस बारे में अपनी अंतर्दृष्टि की पेशकश की कि किसी मामले को सुलझाने के लिए क्या कुछ करना पड़ता है, और क्यों कभी-कभी सबसे अच्छे प्रयास भी विफल हो जातें हैं?

हालांकि, उनका स्वयं का 34 साल लंबा करियर ग्राफ उतराव की तुलना में कहीं अधिक ऊंचाइयां हीं दर्शाता है. साल 1986 में एक सब-इंस्पेक्टर के रूप में अपना करियर शुरुआत करने और साल 2020 में द्वारका के सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) के रूप में सेवानिवृत्त होने तक उन्होंने कई ऐसे मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिन्होंने पुरे राष्ट्र का ध्यान आकर्षित किया था. इसी सूची में साल 2012 में शराब व्यवसायी पोंटी चड्ढा की गोली मारकर की गई हत्या, साल 2009 का जिगिशा घोष हत्या कांड, साल 2010 का धौला कुआं सामूहिक बलात्कार और साल 2013 में बहुजन समाज पार्टी के नेता दीपक भारद्वाज की हत्या जैसे मामले शामिल हैं.

उनके कारनामों को रुपहले पर्दे पर भी कैद किया गया है- दिबाकर बनर्जी की साल 2008 की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘ओए लकी लकी ओए! कुख्यात ‘सुपरथीफ’ बंटी चोर की गिरफ्तारी पर आधारित थी, और दिसंबर 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले पर नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज ‘दिल्ली क्राइम’ बनाई गई है.

बाद वाले मामले में सिंह के शानदार काम के लिए, उन्हें जांच कार्य में उत्कृष्टता हेतु गृह मंत्री का पदक भी प्राप्त हुआ, जो साल 1996 में उन्हें प्राप्त वीरता पदक और साल 2004 में मिले राष्ट्रपति पुलिस पदक सहित पिछले कई सम्मानों की एक लंबी सूची में शामिल एक नया तमगा था .

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फिर भी, सिंह की पहली पसंद हमेशा सिविल सेवा में शामिल होना था न कि पुलिस सेवा में. जब उन्होंने इस सेवा में  शामिल होने का फैसला किया और पुलिस में भर्ती हुए, तब वह संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) परीक्षा के परिणामों की प्रतीक्षा कर रहे थे.

कानून की डिग्री रखने वाले सिंह कहते हैं, ‘जब ऐसा कुछ होता है, तो कोई भी सोचता है, यह सब गलत हो गया है, लेकिन बाद में आपको एहसास होता है कि शायद यह होना ही था क्योंकि आप इसी में अच्छे हैं.’

इन कई वर्षों  के दौरान, सिंह कुछ सिद्धांतों में दृढ़ता के साथ विश्वास करने लगे हैं. उन्हीं में एक यह भी है कि सार्वजनिक सेवा (पुलिस की) नौकरी का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है.

वे कहते हैं, ‘एक पुलिस अधिकारी को मुख्यालय को रिपोर्ट करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए या लगातार इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि उसके वरिष्ठ अधिकारी क्या सोचेंगे. इसके बजाय, उसका पहला और आखिरी काम वास्तव में सार्वजनिक सेवा है.’

वे कहते हैं कि एसीपी के रूप में उनका सबसे संतोषजनक अनुभव तब था जब वे ‘कॉलोबोरेटिव पुलिसिंग’ में लगे हुए थे, जिसमें महिलाओं की सुरक्षा, सड़क सुरक्षा इत्यादि के लिए योजनाएं बनाने हेतु जनता के साथ बातचीत करना शामिल होता है.

दूसरा सिद्धांत यह है कि मीडिया का ध्यान आकर्षित करने या पदक हासिल करने की तुलना में पक्के सबूतों के साथ एक ऐसा ठोस मामला बनाना अधिक महत्वपूर्ण है, जिसके परिणामस्वरूप सजा दिलवाई जा सके.

‘तीन गोल्डन फ्रेगमेंट’

सिंह के अनुसार, किसी संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार करना पुलिस के काम की शुरुआत भर है. एक ठोस मामला बनाना सबसे महत्वपूर्ण है.

वे कहते हैं, ‘किसी भी मामले के तीन गोल्डन फ्रेगमेंट (सुनहले हिस्से) होते हैं – आरोपी, पीड़ित और अपराध स्थल. अगर इन तीनों बातों पर जांच वाटर टाइट (निर्विवाद रूप से ठोस) है, तो मामला भी वाटर टाइट हो जाता है और मुकदमा चलाना आसान होगा. अभियोजन पक्ष इन तीनों चीजों को आपस में जोड़ने वाली एक स्पष्ट रेखा खींचने में सक्षम होगा. ‘

पिछले कई हफ्तों से न्यूज़ कवरेज का गहमागहमी वाला विषय बने हुए श्रद्धा वालकर की हत्या और उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े किये जाने वाले मामले की जांच के बारे में पूछे जाने पर, सिंह कहते हैं कि उन्होंने जांच दल में  से किसी के साथ बात नहीं की है और केवल यह जानते हैं कि ‘मीडिया में क्या बताया गया है.’.

हालांकि, उन्होंने यह संकेत जरूर दिया कि इस मामले के ‘संदिग्ध’ आफताब पूनावाला को कठोरतम दंड दिलवाने  के लिए, उसकी ‘मानसिकता’ के बारे में निर्णायक निष्कर्ष प्रस्तुत करना होगा.’

दिल्ली पुलिस के पूर्व एसीपी कहते हैं, ‘मैंने साल 2020 में श्रद्धा द्वारा आफताब पूनावाला के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज करवाने की रिपोर्ट पढ़ी है, जिसमें उसने उल्लेख किया है कि उसने उसे जान से मारने और काट डालने की धमकी दी थी. यहां अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि [पूनावाला की] मानसिकता 2020 से 2022 तक बिना किसी मानसिक विराम उसी तरह चलती रही.’ उन्होंने कहा, ‘एक पुलिस अधिकारी शुरू से ही जानता है कि किसी जांच में अंतिम परिणाम क्या होगा.  हत्या के मामले में किसी को मौत की सजा या यहां तक कि आजीवन कारावास की सजा दिलवाने के लिए भी, इसे दुर्लभतम से भी दुर्लभ मामलों के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए.’


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बंटी चोर की शरारत पर

पुलिस का काम एक गंभीर काम है, लेकिन विनोद के कुछ क्षण यहां भी आ सकते हैं. सिंह कहते हैं कि कुछ इसी तरह का प्रकरण साल 2002 में देविंदर सिंह उर्फ बंटी चोर की गिरफ्तारी के आसपास हुआ नाटक था.

बंटी को गिरफ्तार करने के लिए संभ्रात माने जानी वाली मयूर विहार सोसाइटी के एक अपार्टमेंट में जाने को याद करते हुए सिंह हंस पड़ते  हैं.

सिंह कहते हैं, ‘कमरे में उन लोगों की तस्वीरों के साथ फोटो फ्रेम थे जिन्हें उसने लूटा था. वहां गोल्फ किट, टीवी, पेंटिंग, फूलदान और पता नहीं क्या-क्या था.’

लेकिन, वह सब इस गिरफ्तारी का सबसे असामान्य हिस्सा नहीं था. सिंह बताते हैं, ‘जब हम उसके दरवाजे के बाहर खड़े थे और उसे एहसास हुआ कि वह अब पकड़ा गया है, तो उसने सबसे अजीबोगरीब हरकत की. उसने आपातकालीन नंबर पर फोन किया और स्थानीय पुलिस को बताया कि कुछ लोग उसका अपहरण करने आए हैं. यह एक तमाशे जैसा था. उसने उन्हें (स्थानीय पुलिस को) बताया कि वह एक व्यापारी है. हमें उन्हें यह समझाने में थोड़ा वक्त लगा कि वह वांछित चोर है.’

‘मैं उस टकटकी को अपने दिलो दिमाग से मिटा नहीं सकता’

इस सब के बावजूद सिंह का कहना है कि उनके करियर से जुड़े  कुछ पछतावे अभी भी कुछ रातों को उन्हें जगाये रखते हैं. इसमें एक वह मामला था जब एक महिला मुखबिर की उसके गैंगस्टर पति ने हत्या कर दी थी. वह कहते हैं, ‘यह उस नजर के बारे में है जिससे उसके परिवार के सदस्यों ने मुझे देखा था. मैं उस टकटकी को अपने दिलो दिमाग से मिटा नहीं सकता.’

पूर्व-एसीपी सिंह अब भी अपने पास एक डायरी रखते हैं, जहां वे उन मामलों के घटनाक्रमों पर नज़र रखते हैं, जिन्हें पुलिस में उनके सेवा काम के दौरान हल नहीं किया जा सका था.

सिंह कहते हैं, ‘ऐसे दो मामले हैं जिन्हें मैं हल नहीं कर सका. एक शोभित हत्याकांड वाला मामला था और दूसरा एक स्विस महिला का सिरी फोर्ट इलाके में हुआ बलात्कार था.’

दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा इकाई ने साल 2018 में शोभित हत्याकांड में एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि वे यह पता नहीं लगा सके कि उसकी हत्या किसने की. इसी तरह से स्विस राजनयिक के बलात्कारियों की भी कभी पहचान नहीं हो पाई.

शोभित मामले में सिंह कुछ दोष मीडिया पर भी मढ़ते हैं. वे कहते हैं, ‘इस मामले में शुरुआत से ही कई त्रुटियां थीं. मीडिया ने मामले में अपनी भूमिका काफी बढ़ा-चढ़ाकर निभाई, पुलिस को गलत दिशा दिखाई गई और सब कुछ बिखरा हुआ था. मीडिया की लगातार चकाचौंध ने चीजों को और भी बदतर बना दिया. ‘

सिरी फोर्ट बलात्कार मामले में आये गतिरोध पर वह कहते हैं कि यह पुलिस के प्रयासों की कमी के कारण नहीं था.

वे कहते हैं, ‘कभी-कभी पुलिस वह सब कुछ करती है जो वह कर सकती है. सिरी फोर्ट बलात्कार मामले में, हमने उस बड़े पैमाने पर अपराधियों की तलाशी अभियान शुरू किया जैसा पहले कभी नहीं हुआ था. सैकड़ों लोगों से पूछताछ की गई, लेकिन वास्तव में कुछ भी नहीं निकला. आखिरकार संदिग्धों को छोड़ दिया गया. ये दो मामले वास्तव में मुझे बहुत परेशान करते हैं और मैं यह देखने के लिए इनके रिकॉर्डस टटलोना जारी रखता हूं कि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: राम लाल खन्ना)


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