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Saturday, 20 April, 2024
होमदेशदिल्ली में अफगान शरणार्थियों के एकमात्र स्कूल को जगह खोजने के लिए करना पड़ रहा संघर्ष

दिल्ली में अफगान शरणार्थियों के एकमात्र स्कूल को जगह खोजने के लिए करना पड़ रहा संघर्ष

जनवरी से सैयद जमालुद्दीन अफगान स्कूल दिल्ली के विभिन्न स्कूलों से संपर्क करके उनसे जानना चाह रहा है कि क्या वो व्यक्तिगत तौर पर कक्षाएं आयोजित करने के लिए 15 क्लासरूम का इस्तेमाल कर सकता है. हालांकि, उसकी कोशिश का अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है.

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नई दिल्ली: भारत में अफगान शरणार्थियों के एकमात्र स्कूल सैयद जमालुद्दीन अफगान स्कूल के अधिकारियों ने पिछले आठ महीनों के दौरान इन-पर्सन यानी जिनमें छात्र खुद मौजूद रह सकें, कक्षाएं आयोजित करने के एक नए रोडमैप के तहत दिल्ली के लगभग 30 सार्वजनिक और निजी स्कूलों से संपर्क साधा है.

पिछले साल अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से पहले तक अफगान दूतावास की तरफ से वित्त पोषित यह स्कूल 2020 में महामारी की चपेट में आने के बाद से अपने 250 स्टूडेंट के लिए ऑनलाइन कक्षाएं चला रहा है.

पिछले साल दिप्रिंट ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि धन की कमी, जो अफगानिस्तान में सरकार गिरने के कारण और बढ़ गई थी- की वजह से स्कूल को अपनी बिल्डिंग भी गंवानी पड़ गई थी. हालांकि, इसे भारतीय विदेश मंत्रालय (एमईए) से वित्तीय सहायता मिली और तब से, यह इन-पर्सन कक्षाएं आयोजित करने के तरीके तलाश रहा है.

अफगान दूतावास के एक अधिकारी ने कहा कि स्कूल का लक्ष्य 15 कक्षाओं की व्यवस्था करने के लिए दूसरे स्कूल के साथ साझेदारी करना है. अधिकारी ने कहा कि इन कक्षाओं का उपयोग स्कूल के बाद के घंटों यानी तीन से छह बजे के बीच, अफगान छात्रों के लिए व्यक्तिगत तौर पर कक्षाएं लगाने के लिए किया जा सकेगा.

अधिकारी ने बताया कि स्कूल इसके लिए दिल्ली के भोगल (जंगपुरा), आश्रम, लाजपत नगर और नेहरू नगर इलाकों में स्थित स्कूलों से संपर्क कर रहा है ताकि छात्रों के लिए परिवहन कोई बड़ी समस्या न हो. क्योंकि इसके छात्रों की अधिकांश आबादी इन्हीं इलाकों में रहती है.

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अधिकारी ने कहा, ‘जब हम निजी स्कूलों से संपर्क करते हैं, तो आमतौर पर उनके प्रस्ताव हमारे बजट से परे होते हैं और शिक्षा निदेशालय की अनुमति की आवश्यकता होती है. सरकारी स्कूलों के मामले में यह एक लंबी प्रक्रिया है क्योंकि उन्हें सरकारी विभागों से आगे और अनुमति लेने की जरूरत पड़ती है.’

अफगान स्कूल अब दिल्ली नगर निगम संचालित स्कूलों पर नजर रख रहा है.

अधिकारी ने कहा, ‘दुर्भाग्य से पिछले आठ महीनों में हम क्षेत्र के किसी भी स्कूल के साथ कोई करार करने में असमर्थ रहे हैं.’

हालांकि, इसकी कोशिश जारी रहेगी लेकिन अधिकारी ने कहा कि 22 अगस्त से शुरू हो रहे शैक्षणिक वर्ष के लिए स्कूल को फिलहाल ऑनलाइन मोड में ही रखा जाएगा.


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ये कोई आसान काम नहीं

पहली बार 1994 में स्थापित किया गया और विश्व शांति के लिए महिला संघ (डब्ल्यूएफडब्ल्यूपी) की तरफ से समर्थित अफगान स्कूल में कक्षा एक से 12 तक के लगभग 250 छात्र हैं और इसमें 35 टीचिंग और नॉन-टीचिंग कर्मचारी हैं.

2020 में कोरोना महामारी की चपेट में आने से पहले अफगान छात्रों को एक व्यावसायिक इमारत के नीचे एक छोटे से बेसमेंट में पढ़ाया जा रहा था. हालांकि, धन की कमी के कारण पिछले साल स्कूल को यह जगह छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा.

स्कूल खोजने में मदद कर रहीं डेवलपमेंट स्पेशलिस्ट और गांधी बादशाह खान एजुकेशनल सोसाइटी की संस्थापक सदस्य नविता श्रीकांत ने कहा कि संपर्क किए जाने के दौरान कुछ स्कूलों ने ‘आशंका’ जताई.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरे विचार में एक शिक्षाविद् के तौर पर हमें जीवन के सभी क्षेत्रों के बच्चों को एक साथ लाने की आवश्यकता है. हम जाति, रंग या धर्म के आगे अपनी प्रतिबद्धता को पराजित नहीं होने दे सकते.’

इस वर्ष मई में अफगान स्कूल से स्नातक करने वाली 18 वर्षीय बिलकीस वहीदी ने कहा कि वह और उसके साथी छात्र महामारी से जूझ रहे थे.

वहीदी ने दिप्रिंट को बताया, ‘इंटरनेट संबंधी समस्याओं के कारण तो ऑनलाइन कक्षाएं कठिन होती ही थीं और अगर हमें पढ़ाई के दौरान कोई चीज समझ न आए तो भी शिक्षक इस पर ठीक से ध्यान नहीं दे पाते थे. मुझे लगता है कि भले बेसमेंट बहुत भरा हुआ था लेकिन ऑनलाइन कक्षाओं से बेहतर ही था. मुझे उम्मीद है कि स्कूल इस नई योजना में सफल होगा क्योंकि कक्षा में व्यक्तिगत तौर पर मौजूद रहकर सीखने से बेहतर कुछ नहीं है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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