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Friday, 22 November, 2024
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मुंबई मेट्रो को दिल्ली से सीखना चाहिए, 43,700 पेड़ काटे गए लेकिन 36 लाख टन कार्बन उत्सर्जन में आई कमी

मुंबई के आरे कॉलोनी विवाद ने पर्यावरण और विकास की बहस को केंद्र में ला दिया है. दिल्ली मेट्रो के पास इसके लिए कुछ सुझाव है.

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नई दिल्ली: दिल्ली मेट्रो 377 किलोमीटर के नेटवर्क के साथ देश की सबसे अच्छी सबअर्बन (महानगरीय) रेल सिस्टम है. दिल्ली मेट्रो एनसीआर के विभिन्न जगहों को जोड़ती है.

यह दिल्ली के पर्यावरण के लिए भी एक संपत्ति है, इससे पिछले 10 वर्षों में 36.2 लाख टन की कार्बन उत्सर्जन की भरपाई हुई है.

मुंबई मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए आरे कॉलोनी में 2700 पेड़ों के काटने को लेकर मुंबईवासियों ने विरोध प्रदर्शन किया था. दिल्ली मेट्रो यह दावा करती है कि इस तरह के प्रोजेक्ट के लिए उसने पर्यावरण और पेड़ों की कटाई से जुड़ी कई चिंताओं को अच्छे से संबोधित किया है.

पेड़ों की कटाई और वनरोपण

महानगरीय रेलवे नेटवर्क के लिए हर बार पेड़ों को काटा जाता है. इसके बदले में मेट्रो प्रशासन को दिल्ली वन विभाग को भुगतान करना होता है. यह भुगतान पेड़ों को लगाकर किया जाता है.

दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (डीएमआरसी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘एक पेड़ के काटे जाने के बदले 10 पेड़ लगाए जाते हैं. यह काम केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन और केंद्र सरकार के साझा सहयोग से होता है.’

डीएमआरसी के आंकड़ों का जब दिप्रिंट ने विश्लेषण किया तो पता चला कि दिल्ली में 43,727 पेड़ों की कटाई के बदले 5 लाख से भी ज्यादा पेड़ लगाए गए थे. यह संख्या काटे गए पेड़ों से 11 गुना ज्यादा है. मेट्रो प्रोजेक्ट के तीन चरणों में 43,727 पेड़ काटे गए थे.

एक अधिकारी ने बताया कि मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए 56,307 पेड़ों के काटे जाने की अनुमति थी. लेकिन 43,727 पेड़ ही काटे गए. डीएमआरसी ने अपनी योजना में बदलाव करते हुए 12,580 पेड़ों को कटने से बचाया था.


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डीएमआरसी के आंकड़ों के अनुसार जो पेड़ लगाए गए हैं. उसने पिछले 10 सालों में 1.02 लाख टन कार्बन डाई-ऑक्साइड को कम किया है. इन सालों में 1.07 लाख टन ऑक्सीजन का उत्सर्जन हुआ है.

डीएमआरसी के आंकड़ों से यह भी पता चला है कि सोलर पैनल जैसे ऊर्जा के स्त्रोतों का इस्तेमाल करने और जीवाश्म ईंधन का कम इस्तेमाल करने से 35 लाख टन कार्बन उत्सर्जन को कम किया गया है.

डीएमआरसी के पर्यावरण विभाग के अधिकारी ने कहा, ‘मेट्रो प्रोजेक्ट से पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो
हम इसके लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं.’

उदाहरण के लिए, खैबर पास पर एक डिपो, जो येलो लाइन (हुडा सिटी सेंटर और समयपुर बादली के बीच) को पूरा करता है, पेड़ों को कटने से बचाने के लिए लैंडफिल साइट पर बनाया गया था. इसमें डीएमआरसी को साइट से सभी कचरे को हटाना पड़ा और पटरियों को बिछाए जाने के लिए जगह को अच्छा बनाना पड़ा.

डीएमआरसी के प्रवक्ता अनुज दयाल ने कहा, ‘ये प्रयास उन क्षेत्रों में किए जाते हैं जहां थोड़ी सी भी ऐसा करने की संभावना हो.’

हरित इमारतें

डीएमआरसी के एक अधिकारी ने कहा, ‘वर्तमान में चल रहे तीसरे चरण के तहत बनाए जा रहे सभी स्टेशनों को ऊर्जा और पानी के संरक्षण, कम उत्सर्जन और अपशिष्ट प्रबंधन के लिए विशिष्ट प्रावधानों के साथ हरी इमारतों के रूप में डिजाइन किया गया है.’

वे अधिक पौधों, जल-कुशल फिक्स्चर और कम-वीओसी पेंट से लैस हैं. आर्गनिक कंपाउंड का कम इस्तेमाल किया गया है. यह मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं.

इसके अलावा दयाल ने कहा, ‘जब कुछ क्षेत्रों को भूमिगत मेट्रो लाइनों के निर्माण के लिए दरकिनार करने की जरूरत थी तो पानी को उत्तरी दिल्ली में झीलों के पुनरुद्धार के लिए चंद्रावल वाटर वर्क्स के साथ साझा किया गया था. उन्होंने कहा, इसी तरह हमने अगले चरण में फिर से भूजल रिचार्ज किया.’

हालांकि, क्षति को कम करने के लिए डीएमआरसी द्वारा की गई पहल पर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है.


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सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में पूर्व उप महानिदेशक और पर्यावरणविद चंद्र भूषण ने कहा, ‘रियायतकर्ता द्वारा उठाए गए कदम अल्पकालिक दर्द दे सकते हैं. लेकिन ये दीर्घकालिक लाभ का कारण बनते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘अगर मेट्रो के कारण सड़क से कारों की संख्या कम होती है तो इससे गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण जैसी चिंताओं से निपटने में मदद मिलती है. इसलिए बाकी और पर्यावरण विशेषज्ञों से मेरी राय थोड़ी अलग है. मैं मानता हूं कि मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए कुछ पेड़ों को काटा जाता है तो यह आगे के लिए काफी अच्छा है.’

दिल्ली स्थित टीईआरआई स्कूल ऑफ एडवांस्ड स्टडीस के एक वरिष्ठ फैलो जो कि भारतीय रेलवे बोर्ड के साथ काम कर चुके हैं, उनका इस मामले में अलग मत है.

उन्होंने कहा, ‘मुझे यकीन नहीं है कि पर्यावरण से जुड़ी नीतियां लागू हो रही हैं. डीएमआरसी ने बहुत सारे पेड़ों को काटा है. यह भी दावा किया गया था कि बाराखंभा रोड पर पेड़ लगाए गए हैं. लेकिन वहां ऐसा कुछ देखने को नहीं मिलता.’

इसलिए मुझे यकीन नहीं है कि मुआवजे के तौर पर जो पेड़ लगाए गए हैं उससे नुकसान की पूर्ति हो पाई है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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