नई दिल्ली: निर्भया के दोषियों को जल्द-से-जल्द फांसी पर लटकाने की मांग वाली केंद्र सरकार की याचिका पर सुनवाई के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. केंद्र ने उच्च न्यायालय में निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें 2012 के दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामले में दोषियों की फांसी की सजा पर रोक लगा दी गई थी. न्यायमूर्ति सुरेश कैत ने कहा कि अदालत सभी पक्षों द्वारा अपनी दलीलें पूरी किए जाने के बाद आदेश पारित करेगी.
बता दें कि रविवार को करीब तीन घंटे से अधिक हुई गर्मागरम बहस के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्भया सामूहिक बलात्कार-हत्या मामले में चारों दोषियों की फांसी पर लगी रोक को चुनौती देने वाली केन्द्र की याचिका को सुरक्षित रख लिया है. उच्च न्यायालय को अब यह तय करना है कि 16 दिसंबर 2012 को निर्भया के साथ दुष्कर्म करने वाले चारों दोषियों को अलग-अलग फांसी की सजा दी जा सकती है या नहीं? जबकि गृह मंत्रालय का कहना है कि इस मामले में अलग-अलग फांसी दी जा सकती है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केन्द्र सरकार की ओर से दलीलें पेश करते हुए कहा पवन गुप्ता जानबूझकर सुधारात्मक या दया याचिका दायर नहीं कर रहा है तुषार मेहता ने उच्च न्यायालय से कहा. सॉलिसिटर जनरल मेहता ने उच्च न्यायालय से कहा कि यदि निचली अदालत का आदेश बरकरार रहता है तो पवन सुधारात्मक या दया याचिका दायर कर सकता है, अन्य को फांसी नहीं दी जाएगी.
सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने उच्च न्यायालय में करीब साढ़े तीन घंटे चली बहस के दौरान बार-बार दोहराया कि निर्भया मामले के दोषी न्यायिक मशीनरी से खेल रहे हैं और देश के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं.
मेहता ने अदालत से कहा, ‘कानूनी मशीनरी से खेलने के लिये जानबूझकर और सोच समझकर चालें चली जा रही है.’
दिल्ली उच्च न्यायालय निर्भया सामूहिक बलात्कार-हत्या मामले में चारों दोषियों की फांसी पर लगी रोक को चुनौती देने वाली केन्द्र की याचिका पर सुनवाई कर रहा है.
बहस के दौरान दोषियों की वकालत कर रहे एडवोकेट ने दलील दी कि केवल इस मामले में जल्दबाजी क्यों? न्याय में जल्दबाजी न्याय को दफनाने जैसा ही है. वहीं दोषी मुकेश की पैरवी कर रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन ने उच्च न्यायालय से कहा, ‘केंद्र जहां निर्भया मामले के दोषियों पर विलंब का आरोप लगा रहा है, वहीं खुद वह महज दो दिन पहले जागा है.’
रेबेका ने दोषी मुकेश की पैरवी करते हुए यह भी कहा, ‘निर्भया मामले में चारों दोषियों के खिलाफ मृत्यु वारंट के लिए न तो केंद्र और न ही दिल्ली सरकार कभी निचली अदालत पहुंची और तो और निर्भया मामले की कार्यवाही के दौरान केंद्र कभी भी निचली अदालत में पक्ष नहीं रहा.’
रेबेका द्वारा यह कहे जाने पर तुषार मेहता ने इसका पुरजोर विरोध करते हुए कहा,’यह कहना उचित नहीं है कि केंद्र, दिल्ली सरकार ने अब तक कुछ नहीं किया.’
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एपी सिंह ने यह भी कहा, ‘दोषी पवन, अक्षय और विनय ग्रामीण, गरीब और दलित परिवार से आते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अभियुक्तों को कानून में अस्पष्टता का खामियाजा नहीं भुगतने दे सकते हैं. ‘
सिंह ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट और संविधान द्वारा मौत की सजा को निष्पादित करने के लिए कोई निर्धारित समय नहीं है.’
न्यायमूर्ति सुरेश कैत के समक्ष मामले की सुनवाई चल रही थी.
23 वर्षीय पैरामेडिकल छात्रा से 16 दिसम्बर 2012 को दक्षिण दिल्ली में एक चलती बस में छह व्यक्तियों द्वारा सामूहिक बलात्कार और बर्बरता की गई थी. उसे बाद में बस से नीचे फेंक दिया गया था बाद में छात्रा को निर्भया नाम दिया गया था.
निर्भया ने 29 दिसम्बर 2012 को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था.
मामले के छह आरोपियों में से एक राम सिंह ने तिहाड़ जेल में कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी.
आरोपियों में एक किशोर भी शामिल था जिसे एक किशोर न्याय बोर्ड ने दोषी ठहराया था और उसे तीन वर्ष बाद सुधारगृह से रिहा कर दिया गया था.
शीर्ष अदालत ने 2017 के अपने फैसले में दोषियों को दिल्ली उच्च न्यायालय और निचली अदालत द्वारा दी गई फांसी की सजा बरकरार रखी थी.
(समाचार एजेंसीभाषा और हमारे संवाददाता देबायन रॉय के इनपुट्स के साथ)