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Friday, 22 November, 2024
होमदेशप्लेग जैसा है परीक्षा में नकल करना, इस 'महामारी' से समाज बर्बाद हो सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट

प्लेग जैसा है परीक्षा में नकल करना, इस ‘महामारी’ से समाज बर्बाद हो सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने नकल को महामारी बताते हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी में बीए (ऑनर्स) इकोनॉमिक्स की पढ़ाई कर रही एक छात्रा को राहत देने से मना कर दिया.

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नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने परीक्षा में नकल करने को महामारी बताते हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी की एक छात्रा को राहत देने से मना कर दिया है. छात्रा की रिट पिटिशन पर फ़ैसला सुनाते हुए जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि परीक्षा में नकल करना प्लेग जैसा है.

वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए मंगलवार को फ़ैसला सुनाते हुए उन्होंने कहा, ‘ये (नकल) एक ऐसी महामारी है, जो किसी भी समाज या शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद कर सकती है. किसी भी देश के विकास के लिए उसकी शिक्षा व्यवस्था में निष्ठा अछुण्ण होनी चाहिए.’

ख़ारिज की गई रिट पेटिशन दिल्ली यूनिवर्सिटी के दौलत राम कॉलेज में बीए (ऑनर्स) इकोनॉमिक्स की पढ़ाई कर रहीं छात्रा आरज़ू अग्रवाल की थी. फ़ाइनल ईयर की इस छात्रा की दिल्ली हाई कोर्ट से अपील थी कि यूनिवर्सिटी द्वारा 12 मार्च को दिए गए आदेश को रद्द कर उनके रिज़ल्ट की घोषणा की जाए.

12 मार्च के आदेश में दिल्ली यूनिवर्सिटी ने आरज़ू के पूरे सत्र की परीक्षा को रद्द कर दिया था. छात्रा के पांचवें सत्र की परीक्षा दिसंबर 2019 में हुई थी. सभी पेपर में उपस्थित हुई आरज़ू के ‘इंटरनैशनल ट्रेड’ का पेपर तीन दिसंबर को था जिसमें उन्होंने नकल की.

छात्रा ने अपने बचाव में कहा, ‘परीक्षा के दिन ट्रैफिक की वजह से मैं लेट हो गई. अपने बैग से स्टेशनरी पाउच निकाला और सीधा परीक्षा कक्ष में पहुंच गई.’ उनके मुताबिक उन्होंने प्लैकार्ड के रूप में परीक्षा की तैयारी के लिए जो नोट तैयार किए थे वो ग़लती से उनके पाउच में रह गए.

आरज़ू ने अपने पक्ष में कहा, ‘परीक्षा शुरू ही होने वाली थी ऐसे में मैंने अपना पाउच निकाला और पेपर लिखा शुरू कर दिया. आधे घंटे बाद याद आया कि पाउच में प्लैकार्ड हैं और मैंने ख़ुद निरीक्षक को बुलाकर उन्हें प्लैकार्ड सौंप दिए.’

उन्होंने ये दलील भी दी कि परीक्षा कक्ष में तीन निरीक्षक थे, ऐसे में कोई 30 सेकेंड के लिए भी नकल नहीं कर सकता था. फिर भी उनपर नकल आ आरोप लगाकर उन्हें कॉलेज से बाहर कर दिया गया और प्रिंसिपल से भी नहीं मिलने दिया गया.

इन सबके बाद यूनिवर्सिटी ने 12 मार्च को आरज़ू के अलावा बाक़ी छात्रों के नतीजे घोषित कर दिए. छात्रा की दिल्ली हाई कोर्ट से मांग थी कि उसके भी नतीजे घोषित किए जाएं. दिल्ली यूनिवर्सिटी ने दिल्ली हाईकोर्ट को जानकारी दी कि छात्रा ने कोर्ट को गुमराह किया और कई तथ्य या तो छुपाए या ग़लत तरीके से पेश किए हैं.


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अपनी पड़ताल में कोर्ट ने पाया कि हालांकि छात्रा मेघावी है, लेकिन उसने घटना से जुड़े कई तथ्य कोर्ट से छुपाए. छात्रा ने उसके द्वारा दी गई अंडरटेकिंग और लिखी गई चिट्ठियों से जुड़ी जानकारी कोर्ट को नहीं दी. जब कोर्ट ने पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया तो सफ़ाई में आरज़ू ने कहा कि वो कानूनी मामलों को ठीक से नहीं समझती.

कोर्ट ने पाया कि छात्रा ने झूठ बोला है. 3 दिसंबर को हुई परीक्षा में निरीक्षक को छात्रा के पास से नोट्स मिले जिसके बाद छात्रा ने वहीं लिखी एक चिट्ठी में स्वीकारा की वो ग़लती से ये नोट्स ले आ गई थीं और घबराहट में किसी को इस बारे में नहीं बताया. ये भी पता चला कि पेपर वाले दिन छात्रा के पास ये नोट्स परीक्षा समाप्त होने के 15 मिनट पहले मिले.

दिल्ली यूनिवर्सिटी द्वारा कोर्ट को दी गई जानकारी में बताया गया कि एक निरीक्षक के मुताबिक छात्रा ने ये नोट्स अपनी उत्तर पुस्तिका के नीचे रखे थे. एक एक्सपर्ट की रिपोर्ट के मुताबिक छात्रा ने नोट्स का इस्तेमाल नकल के लिए किया. ऐसे कई और तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने तय किया कि छात्रा को राहत नहीं दी जा सकती.

जस्टिस सिंह ने इस दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2009 में डायरेक्टर (स्टडीज़) बनाम वैभव सिंह चौहान मामले में परीक्षा में होने वाले कदाचार के फ़ैसले का भी हवाला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था, ‘सिर्फ़ ये बात मायने रखती है कि परीक्षा देने वाले के पास जो कागज़ मिले उसका परीक्षा के पेपर से संबंध है या नहीं. अगर संबंध है, तो ग़लती हुई है.’

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि परीक्षा के दौरान परीक्षार्थी कागज़ परीक्षा हॉल में लेकर आया. ये मायने नहीं रखता कि उसने इसे इस्तेमाल किया या नहीं. इस दौरान ये भी कहा गया कि देश के विकास के लिए उच्चतम अकादमिक स्तर को प्राथमिकता देनी होगी और परीक्षा में होने वाले दुराचार से सख़्ती से निपटना होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में ये भी कहा था कि हाईकोर्ट को शिक्षण संस्थानों द्वारा बनाए गए ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए फ़ैसलों में आम तौर पर दख़ल नहीं देना चाहिए. ऐसे में ताज़ा मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी की कार्रवाई को हरी झंडी देते हुए आरज़ू की सभी परीक्षाएं रद्द करने के फ़ैसले को कामय रखा.

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