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शुक्रवार, 6 जून, 2025
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने पॉक्सो मामले के आरोपी को सामुदायिक सेवा करने का आदेश दिया

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नयी दिल्ली, तीन जून (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) मामले के एक आरोपी को सरकारी अस्पताल में सामुदायिक सेवा करने और ‘‘युद्ध हताहत सेना कल्याण कोष’’ में 50,000 रुपये जमा करने का निर्देश दिया है। साथ ही अदालत ने उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया।

न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने एक नाबालिग स्कूली छात्रा को पैसे की मांग पूरी न करने पर उसकी निजी तस्वीरें सार्वजनिक करने की धमकी देने वाले आरोपी के आचरण को अस्वीकार करते हुए कहा कि इस तरह का व्यवहार ‘‘डिजिटल मंच के घोर दुरुपयोग’’ और ‘‘सहमति और निजी गरिमा के प्रति चिंताजनक अनादर’’ को दर्शाता है।

अदालत ने कहा कि आरोप ‘‘निस्संदेह गंभीर’’ हैं, जिसमें एक नाबालिग लड़की के उत्पीड़न और शोषण के आरोप शामिल हैं, जो ‘‘सोशल मीडिया युग के नकारात्मक पहलुओं का प्रतीक है, जहां नियंत्रण करने, भय पैदा करने और गरिमा से समझौता करने के लिए प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग किया जाता है।’’

अदालत ने कहा कि आमतौर पर ऐसे आरोपों की प्राथमिकी रद्द नहीं की जा सकती, लेकिन कानून पीड़िता की निजता, गरिमा और मुकदमा समाप्त करने के अधिकार के प्रति समान रूप से सजग है।

अदालत ने 27 मई के अपने फैसले में कहा, ‘‘शिकायतकर्ता ने स्पष्ट रूप से इस स्थिति से आगे बढ़ने की इच्छा व्यक्त की है, तथा इस आपराधिक मामले के लंबित रहने से उस पर पड़ने वाले सामाजिक और भावनात्मक बोझ का जिक्र किया है, विशेष रूप से उसके विवाह सहित भविष्य की संभावनाओं के संदर्भ में।’’

प्राथमिकी को रद्द करते हुए, अदालत ने आरोपी को ‘‘जवाबदेही और आत्मचिंतन के उपाय के रूप में सामुदायिक सेवा’’ करने का निर्देश दिया। उस पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया और उसे यह राशि सैन्यकर्मियों के कल्याण कोष में जमा करने का निर्देश दिया।

अदालत ने याचिकाकर्ता को जून में लोक नायक जयप्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल में एक महीने तक सामुदायिक सेवा करने और बाद में रजिस्ट्री में इसकी पुष्टि करने वाला प्रमाण पत्र दाखिल करने का आदेश दिया।

भाषा। शफीक दिलीप

दिलीप

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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