नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणी के तहत आरक्षण समाप्त करते हुए शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों में धर्म के आधार पर आरक्षण को मंजूरी देने के उसके फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर जल्द सुनवाई को लेकर उसका रुख जानना चाहा.
याचिका में जामिया की कार्यकारी परिषद द्वारा 23 जून, 2014 को पारित एक प्रस्ताव को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है, जिसे कानून की उचित प्रक्रिया के बिना पारित किया गया था.
न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह की अवकाश पीठ ने 14 जून को उस आवेदन को सूचीबद्ध किया जिसमें सुनवाई की तारीख सात जुलाई से पहले तय करने की मांग की गई है.
याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण भारद्वाज पेश हुए और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए बिना किसी आरक्षण के 241 गैर-शिक्षण पदों के लिए आवेदन आमंत्रित करने वाले एक अप्रैल के विज्ञापन पर तत्काल सुनवाई के साथ-साथ रोक लगाने की मांग की.
जेएमआई के स्थायी वकील प्रीतिश सभरवाल ने मौजूदा ढांचे का बचाव किया और कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान होने के नाते, विश्वविद्यालय एससी/एसटी के लिए आरक्षण नीति से बाध्य नहीं है.
याचिकाकर्ता राम निवास सिंह और संजय कुमार मीणा, जो क्रमशः एससी और एसटी समुदाय से संबंधित हैं, ने याचिका में कहा है कि एससी/एसटी श्रेणी के उम्मीदवारों को आरक्षण से बाहर करना संवैधानिक आदेश के खिलाफ एक गलत कदम था.
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