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Tuesday, 5 November, 2024
होमदेशकेंद्र के अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली सरकार की याचिका पर 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई

केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली सरकार की याचिका पर 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई

कोर्ट में दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी पक्ष रख रहे थे. दिल्ली सरकार ने जल्द से जल्द इस मामले की सुनवाई की मांग की थी.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को नौकरशाहों पर नियंत्रण से संबंधित केंद्र द्वारा जारी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर 10 जुलाई को सुनवाई करने के लिए तैयार हो गया.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि वह 10 जुलाई को मामले की सुनवाई करेगी, जब दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने जल्द से जल्द मामले की सुनवाई करने की मांग की थी. दिल्ली सेवा अध्यादेश राष्ट्रीय राजधानी में सिविल सेवकों के स्थानांतरण और पोस्टिंग की निगरानी के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल को अधिक शक्तियां प्रदान करता है.

आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा है कि केंद्र का अध्यादेश “असंवैधानिक” है.

याचिका में कहा गया है, “राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) में सेवारत सिविल सेवकों को लेकर नियंत्रण कम करता है. यह भारत के संविधान, विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 239AA में संशोधन किए बिना ऐसा किया गया है, जिसमें सेवाओं के संबंध में शक्ति और नियंत्रण निर्वाचित सरकार के पास होने के बारे में कहा गया है.”

याचिका में दिल्ली सरकार ने शीर्ष अदालत से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश 2023 को रद्द करने के लिए उचित निर्देश देने का आग्रह किया है.

केंद्र ने 19 मई को दिल्ली में आईएएस और दानिक्स अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग के लिए एक प्राधिकरण बनाने के लिए अध्यादेश जारी किया था जिसके बाद दिल्ली सरकार ने इस कदम को सेवाओं के नियंत्रण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन बताया था.

अध्यादेश राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991 में संशोधन करने के लिए लाया गया था और यह केंद्र बनाम दिल्ली मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दरकिनार करता है.

11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच प्रशासनिक शक्तियों के विभाजन का “सम्मान किया जाना चाहिए” और माना कि दिल्ली सरकार के पास राष्ट्रीय राजधानी में “सेवाओं पर विधायी और कार्यकारी शक्ति” है, जिसमें नौकरशाहों को छोड़कर सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि से संबंधित मुद्दे शामिल है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था, “संघ और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के बीच प्रशासनिक शक्तियों का विभाजन ( एनसीटीडी) जैसा कि समझाया गया है… का सम्मान किया जाना चाहिए.”

शीर्ष अदालत ने अपने 105 पन्नों के फैसले में कहा कि दिल्ली सरकार अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के समान नहीं है.


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