नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल में आम आदमी पार्टी की फिर जबर्दस्त जीत के साथ सरकार बनने की भविष्यवाणी की गई है. आठ एग्जिट पोल के औसत में आप को 54, भाजपा को 15 और कांग्रेस को एक सीट मिलने की संभावना जताई गई है.
हालांकि इनकी विश्वसनीयता को कठघरे में खड़ा करने वालों की भी कमी नहीं है. दिल्ली विधानसभा चुनाव के विभिन्न पहलुओं पर राजनीतिक विश्लेषक और ‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी’ ‘सीएसडीएस’ के निदेशक संजय कुमार ने कई सवालों का जवाब दिया.
संजय ने इस सवाल पर कि कुछ लोग एग्जिट पोल पर सवाल उठा रहे हैं कि हरियाणा चुनाव में एक एग्जिट पोल को छोड़कर अन्य सभी में भाजपा की जबर्दस्त जीत की भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन भाजपा बहुमत के आंकड़े नहीं छू पाई थी. तो उन्होंने कहा कि यह सही है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव के बारे में अधिकांश एग्जिट पोल के आकलन और वास्तविक परिणाम मे अंतर रहा था, फिर भी मेरा मानना है कि हरियाणा को इस विषय पर अच्छा उदाहरण नहीं मान सकते क्योंकि सभी ने भाजपा की जीत का अनुमान व्यक्त किया था और भाजपा जीती भी थी. हां, जीत के स्तर और सीटों के हिसाब से आकलन में कमियां रहीं. फिर भी मेरा मानना है कि दिल्ली में एग्जिट पोल और वास्तविक परिणाम अलग हों, ऐसा नहीं होने जा रहा है.
दूसरे सवाल में कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल में आम आदमी पार्टी को जबर्दस्त बहुमत मिलने की भविष्यवाणी की गई है, अगर यह सही रहा तब राष्ट्रीय राजनीति के स्तर पर इसका संदेश क्या होगा? तो वह कहते हैं कि आम आदमी पार्टी के लिये दिल्ली चुनाव में जीत बेहद जरूरी है, अगर ऐसा नहीं होगा तब उसका अस्तित्व खत्म होने का खतरा है. एग्जिट पोल में जो नतीजे बताए गए हैं, अगर वैसे नतीजे आए, तब इससे विपक्ष का मनोबल बढ़ेगा और राष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश जायेगा कि भाजपा को हराया जा सकता है.
वहीं, एग्जिट पोल के अनुरूप नतीजे आए तब भाजपा के लिये यह संदेश होगा कि राज्यों में ‘मोदी मैजिक’ नहीं चल रहा है तथा कुछ और करने की जरूरत है. 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले और उसके बाद राज्यों में हुए चुनाव भाजपा के लिये उत्साहवर्द्धक नहीं रहे हैं. पार्टी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र में सत्ता खोयी जबकि हरियाणा में मुश्किल से सरकार बना पायी. ऐसे में दिल्ली में अगर प्रतिकूल परिणाम आता है तो यह पार्टी पर अतिरिक्त मानसिक दबाव डालने वाला होगा.
तीसरे सवाल पर कि क्या दिल्ली विधानसभा चुनाव राष्ट्रवाद बनाम विकास की लड़ाई थी और इसका कितना प्रभाव पड़ता दिखाई दे रहा है? तो वह कहते हैं कि ‘मैं नहीं मानता कि यह राष्ट्रवाद बनाम विकास की लड़ाई है. हां, यह बात जरूर है कि एक दल राष्ट्रवाद के विषय को जोरदार ढंग से उठा रहा था जबकि दूसरा दल विकास की बात कर रहा था. लेकिन दोनों दल इन मुद्दों पर एक दूसरे से बच भी रहे थे. दिल्ली चुनाव में मतदाताओं की लड़ाई थी. एक बड़े वर्ग ने विकास के मुद्दे पर वोट दिया लेकिन उसके विचार राष्ट्रवाद के मुद्दे पर वही हैं जो भाजपा कहती रही है.’
दिल्ली को लेकर मतदाताओं के मन में ‘स्पलिट वर्डिक्ट’ (बंटे जनादेश का विचार) था जहां राष्ट्रीय स्तर पर मतदाता नरेन्द्र मोदी के नाम पर मुहर लगा रहे हैं, वहीं विधानसभा चुनाव में विचार अलग होते हैं. वह कहते हैं, ‘मेरा मनना है कि लोकसभा चुनाव आज करा दिये जाएं तब दिल्ली की जनता फिर भाजपा को वोट देगी लेकिन विधानसभा चुनाव में उसका रुख अलग दिख रहा है.’
चौथे सवाल पर कि क्या भाजपा ने प्रधानमंत्री के नाम को आगे किया था, हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि पार्टी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना चाहिए था. तो वह कहते हैं, ‘इससे कुछ नुकसान हुआ हो, ऐसा नहीं लगता है. लेकिन मैं नहीं मानता कि अगर भाजपा मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर देती तब नतीजे बदलने की संभावना थी. हां, अगर समय रहते पार्टी मुख्यमंत्री पद का कोई दमदार उम्मीदवार घोषित करती तब लोगों को तुलनात्मक रूप से विचार एवं आकलन करने का एक अवसर जरूर मिलता है. ऐसा इसलिये है क्योंकि विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव का स्वरूप अलग-अलग होता है.
आखिरी सवाल कि दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी को केजरीवाल के नाम का फायदा था, वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि कांग्रेस के चुनाव में मजबूती से नहीं उतरने का भी प्रभाव रहा है. तो वह कहते हैं, ‘यह सही है कि दिल्ली में कांग्रेस उस मजबूती के साथ नहीं लड़ी जिससे उसे लड़ना चाहिए था. अगर कांग्रेस मजबूती से लड़ती तब इसका नुकसान आप को होता है लेकिन फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस ने जानबूझ कर ऐसा किया होगा. क्योंकि कोई पार्टी जब चुनाव मैदान में अपने उम्मीदवार उतारती है तो वह सिर्फ उन्हें हरवाने के लिए उतारे, मुझे नहीं लगता.’