नई दिल्ली: टेरर फंडिंग मामले में अलगाववादी नेता यासीन मलिक को दिल्ली की विशेष अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई है. हालांकि, राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने आतंकवाद फंडिंग के मामले में दोषी कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को मृत्युदंड दिए जाने का अनुरोध किया था. मलिक ने अवैध गतिविधियां (रोकथाम) कानून (यूएपीए) के तहत लगाए गए आरोपों समेत उस पर लगे सभी आरोपों को स्वीकार कर लिया था.
जज ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा- आईपीसी के सेक्शन 120बी के तहत 10 साल की सजा और 10 हजार का जुर्माना, 121ए के तहत 10 साल की सजा और 10 हजार का जुर्माना, 13यूएपीए के तहत 10 साल की सजा, 15 यूएपीए के तहत 10 साल की सजा, 17 यूएपीए के तहत उम्रकैद और 10 लाख का जुर्माना, 18 यूएपीए के तहत 10 साल की सजा और 10 हजार का जुर्माना, 20 यूएपीए के तहत 10 साल की सजा और 10 हजार का जुर्माना व 38,39 यूएपीए के तहत 5 साल की सजा और 5 हजार का जुर्माना देने की सजा सुनाई जाती है.
एजेंसी ने विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह की अदालत के समक्ष यह अभिवेदन दिया, जबकि मलिक की सहायता के लिए अदालत द्वारा नियुक्त न्याय मित्र ने उसे इस मामले में न्यूनतम सजा यानी आजीवन कारावास दिए जाने का अनुरोध किया.
इस बीच, मलिक ने न्यायाधीश से कहा कि वह अपनी सजा का फैसला अदालत पर छोड़ रहा है.
किसी से भीख नहीं मांगूंगा
जब अदालत में सुनवाई शुरू हुई और एनआईए ने दोषी मलिक के लिए फांसी की सजा की मांग की तब यासीन ने कहा कि फैसला अदालत के विवेक पर छोड़ता हूं, मैं किसी से भींख नहीं मांगूंगा. मैं फांसी स्वीकार करूंगा.
अदालत ने दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, अदालत ने प्रतिबंधित संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख यासीन मलिक को गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत 19 मई को दोषी करार दिया था. उसने एनआईए के अधिकारियों को मलिक पर जुर्माना लगाए जाने के लिए उसकी वित्तीय स्थिति का आकलन करने के निर्देश दिए थे.
यासीन पर आने वाले फैसले को लेकर उसके कश्मीर स्थित घर पर जहां ड्रोन से निगरानी रखी जा रही थी वहीं श्रीनगर और लाल चौक के आस-पास के एरिया में आंशिक रूप से बंद देखने को मिला.
यासीन के जन्मस्थान मैसुमा में भी हालात कुछ ऐसे ही देखने को मिले. हालांकि, पब्लिक ट्रासंपोर्ट सामान्य तौर पर चल रहा है. कानून-व्यवस्था की समस्या न पैदा हो इसलिए भारी संख्या में पुलिस बल को तैनात किया गया है.
क्या था पूरा मामला
यासीन मलिक को जम्मू कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को फैलाने के लिए टेरर फंडिग का दोषी पाया गया है. यासीन के ऊपर यूएपीए की धारा 16 (आतंकवादी गतिविधि), 17 (आतंकवादी गतिवधि के लिए राशि जुटाने), 18 (आतंकवादी कृत्य की साजिश रचने), व 20 (आतंकवादी समूह या संगठन का सदस्य होने) और भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) व 124-ए (देशद्रोह) के तहत आरोप लगाया गया है. उसने अपने ऊपर लगे आरोप को स्वीकर भी कर लिया था.
कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि मलिक ने स्वतंत्रता संग्राम के नाम पर जम्मू कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए पूरी दुनिया से धन जुटाया था. जज ने कहा था कि पहली नजह में ही ऐसा लगता है कि मलिक और उसके साथियों को आतंकवादी गतिविधियों के लिए पैसे दिए जा रहे थे.
अदालत ने पूर्व में, फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे, शब्बीर शाह, मसरत आलम, मोहम्मद युसूफ शाह, आफताब अहमद शाह, अल्ताफ अहमद शाह, नईम खान, मोहम्मद अकबर खांडे, राजा मेहराजुद्दीन कलवल, बशीर अहमद भट, जहूर अहमद शाह वटाली, शब्बीर अहमद शाह, अब्दुल राशिद शेख तथा नवल किशोर कपूर समेत कश्मीरी अलगाववादी नेताओं के खिलाफ औपचारिक रूप से आरोप तय किए थे.
लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद और हिज्बुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन के खिलाफ भी आरोपपत्र दाखिल किया गया, जिन्हें मामले में भगोड़ा अपराधी बताया गया है.
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कौन हैं यासीन मलिक
यासीन मलिक प्रतिबंधित संगठन जेकेएलएफ यानी जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का चेयनमैन और हुर्रियत का नेता है. मलिक जम्मू कश्मीर में तमाम आतंकी और अलगाववादी गतिविधियों में शामिल रहा है. वह 2019 से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है. उसके ऊपर टेरर फंडिंग करने का आरोप है. कोर्ट के मुताबिक उसने जम्मू कश्मीर की आजादी के नाम पर पूरी दुनिया से काफी फंड बटोरे थे जिनसे वह हथियार वगैरह खरीदता था और आतंकी गतिविधियों को अंजाम देता था.
यासीन का जन्म 1966 में श्रीनगर के मैसुमा में हुआ था. यासीन के पिता गुलाम कादिर मलिक एक सरकारी बस ड्राइवर थे. मैसूमा काफी भीड़भाड़ वाला इलाका है जिसके दक्षिण में लाल चौक है और पश्चिम में झेलम नदी पड़ती है. यासीन ने साल 2009 में एक पाकिस्तानी चित्रकार मुशाल हुसैन मलिक से शादी की जिससे उसकी एक बेटी भी है जिसका नाम रजिया सुल्ताना है.
तमाम आतंकवादी गतिविधियों का रहा है मास्टरमाइंड
यासीन मलिक के खिलाफ करीब 37 मामले दर्ज हैं जिसमें टेरर फंडिंग, सेना के चार जवानों की हत्या, रुबैया सईद की किडनैपिंग इत्यादि शामिल हैं. उसके ऊपर 1990 में भारतीय वायुसेना के जवानों के ऊपर हमला करने और पाकिस्तानी आतंकियों के साथ संबंध होने का भी आरोप है. जेकेएलएफ के आतंकवादियों ने उस वक्त भारतीय वायुसेना के जवानों को मार दिया था जब वे संत नगर क्रॉसिंग पर अपनी बस का इंतजार कर रहे थे. 25 जनवरी 1990 को घटी इस घटना में करीब 40 जवान घायल हो गए थे.
इसके अलावा उसे मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबैया सईद को किडनैप करवाने का भी आरोप है जिसके बाद भारत सरकार को कई आतंकियों को छोड़ना पड़ा था.
1989 में कश्मीर पंडितों की हत्या का मास्टरमाइंड होने का भी यासीन के ऊपर आरोप है जिसकी वजह से काफी संख्या में कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़कर रातोंरात भागना पड़ा. उनकी हत्या के लिए यासीन मलिक को जिम्मेदार माना जाता है.
इसके अलावा यासीन मलिक के पाकिस्तान से भी संबंध रहे हैं. साल 2013 में मलिक की हाफिज सईद के साथ हड़ताल करते हुए फोटो वायरल हुई थी जिसका काफी विरोध किया गया था. उस वक्त अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के विरोध में यासीन मलिक ने इस्लामाबाद प्रेस क्लब के सामने 24 घंटे की हड़ताल की थी. 2019 में एनआईए द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद तमाम राजनीतिक पार्टियों ने इसका विरोध किया.
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नहीं था भारतीय संविधान पर भरोसा
यासीन मलिक ने 80 के दशक में ताला पार्टी बनाई थी जिसमें कश्मीरी युवकों को शामिल किया जाता था. बाद में इसे इसका नाम बदलकर इस्लामिक स्टूडेंट लीग रख दिया गया और फिर 1987 में इस्लामिक स्टूडेंट्स लीग का मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट में विलय कर दिया गया लेकिन यासीन की पार्टी ने चुनाव नहीं लड़ा क्योंकि उसे संविधान पर भरोसा नहीं था. लेकिन उसने एमयूएफ के लिए चुनाव में प्रचार किया. बाद में 1988 में वह जेकेएलएफ का एरिया कमांडर बना.
जेकेएलएफ की स्थापना 1976 में अमानतउल्लाह खान और मकबूल भट्ट ने बर्मिंघम में की थी और इसकी ऑफिस पीओके के मुजफ्फराबाद में थी. मकबूल भट्ट को यासीन अपना आदर्श मानता था. जब मकबूल भट्ट को 1984 में फांसी पर लटका दिया गया था तो ताला पार्टी ने इसका काफी विरोध किया. जगह जगह पर मकबूल के समर्थन में पोस्टर लगाए और इस मामले में यासीन को गिरफ्तार कर लिया गया और वह 4 महीने तक जेल में रहा.
1980 के दशक में यासीन मलिक ने ताला पार्टी का गठन किया था जिसका नाम बाद में बदलकर इस्लामिक स्टूडेंट्स लीग रख दिया गया था. इस पार्टी में केवल कश्मीरी युवाओं को शामिल किया जाता था जिसका मकसद कश्मीर में अलगाववादी गतिविधियों को हवा देना था.
1983 में भारत और वेस्ट-इंडीज़ के बीच होने वाले क्रिकेट मैच को इसी पार्टी के सदस्यों ने बाधा पहुंचाई थी जिसके बाद 12 लोगों पर मुकदमा चलाया गया था.
2005 में मनमोहन सिंह से की थी मुलाकात
जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर बात करने के लिए भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यासीन मलिक से अपने आधिकारिक आवास पर नई दिल्ली में मुलाकात की थी. मनमोहन सिंह के साथ उसके मुलाकात की तस्वीरें उस वक्त मीडिया में खूब छाई रही थीं.
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