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Saturday, 16 November, 2024
होमदेशदिल्ली और मुंबई में कोविड के बढ़ रहे मामलों का संबंध वायु प्रदूषण के ऊंचे स्तर से है: विशेषज्ञ

दिल्ली और मुंबई में कोविड के बढ़ रहे मामलों का संबंध वायु प्रदूषण के ऊंचे स्तर से है: विशेषज्ञ

भारतीय जलवायु और स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि उच्च प्रदूषण का स्तर लोगों की प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करता है, जो उन्हें कोविड-19 के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है. हार्वर्ड के एक अध्ययन में भी इसी तरह की बात कही गई थी.

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नई दिल्ली: भारत के दो सबसे प्रभावित शहर राष्ट्रीय राजधानी और मुंबई में कोविड-19 मामलों में बढ़ोतरी उनके वायु प्रदूषण के स्तर से जुड़ा हुआ है. विशेषज्ञों ने यह बात कही.

दिप्रिंट से बात करते हुए, स्वास्थ्य और जलवायु विशेषज्ञों ने कहा कि इन शहरों में एक लंबे समय से अधिक वायु प्रदूषण के स्तर ने आबादी की प्रतिरक्षा से क्षमता को प्रभावित किया है, जिससे वे कोरोनावायरस से अतिसंवेदनशील हो गए हैं.

मैक्स हॉस्पिटल, दिल्ली में आंतरिक चिकित्सा के एसोसिएट निदेशक डॉ रोमेल टिकू ने कहा, ‘निश्चित रूप से दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में वायु प्रदूषण और कोविड-19 रोगियों की वृद्धि के बीच एक कड़ी जुड़ी है.’

दिल्ली और मुंबई भारत के सबसे प्रदूषित शहरों में से हैं. हालांकि, 25 मार्च को कोविड लॉकडाउन लागू होने के बाद देश में वायु प्रदूषण के स्तर में गिरावट देखी गई.

जानकारों ने कहा कि एक लंबी अवधि में प्रदूषण के संपर्क में आने वाली आबादी यह पाएगी कि उनकी प्रतिरक्षा प्रभावित हुई है. टिकू ने कहा कि वायु प्रदूषकों जैसे कि पार्टिकुलेट मैटर, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड के क्रोनिक एक्सपोजर से हमारे फेफड़ों में जलन होती है.

उन्होंने कहा, ‘अगर आप पहले से ही एक ऐसे शहर में रह रहे हैं, जहां वायु प्रदूषण के कारण लोगों को लगातार समस्या हो रही है, तो महामारी के दौरान आपको भी समस्या हो सकती है.’

उनकी टिप्पणियों को हार्वर्ड विश्वविद्यालय में शोधकर्ताओं जिओ वू और राहेल नेथरी द्वारा किए गए एक अप्रैल के अध्ययन में गौर किया गया, जिसमें पाया गया कि पार्टिकुलेट मैटर में छोटी सी वृद्धि का अमेरिका में गहरा प्रभाव होगा. 1 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की वृद्धि से कोविड से संबंधित मौतों में 15 प्रतिशत की वृद्धि होगी.

हावर्ड युनिवर्सिटी में सेंटर फॉर क्लाइमेट, हेल्थ एंड एनवायरमेंट के निदेशक हारून बर्नस्टीन ने कहा, ‘हमारे पास जो सबूत हैं, वे बहुत स्पष्ट हैं कि लोग (जो) उन जगहों पर रह रहे हैं, जो समय के साथ अधिक प्रदूषित हैं, वहां कोरोनावायरस से मरने की संभावना अधिक है.’

गुरुवार तक दिल्ली में 70,390 और मुंबई में 69,625 मामले दर्ज किए गए.


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प्रतिरक्षा कारक

दिल्ली में कोविड के मामलों के बारे में बात करते हुए, टिकू ने कहा, ‘ऐसे मामलों का एक संयोजन हुआ है जहां श्वसन संक्रमण, कोविड-19 के साथ हृदय रोग के कारण कार्डिक अरेस्ट का मामला आया है.’

डॉ एस चटर्जी, वरिष्ठ सलाहकार, आंतरिक चिकित्सा, अपोलो अस्पताल, ने कहा कि अब तक किए गए अध्ययनों ने उच्च प्रदूषित शहरों में उच्च मृत्यु दर को जिम्मेदार ठहराया है.

दिल्ली में प्रदूषण के कारण कई लोग अस्थमा, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों की अन्य बीमारियों से पीड़ित हैं. चटर्जी ने कहा कि यह अपने आप में ‘कोविड-19 के लिए जोखिम का कारक माना जाता है’.

उन्होंने कहा, ‘इन बीमारियों को महत्वपूर्ण सह-रुग्णताओं (को-मोर्बिडिटी) में गिना जाता है. सह-रुग्णता वाले लोग कोविड-19 संक्रमण से ज्यादा जूझते हैं. जो लोग दिल्ली जैसे अत्यधिक प्रदूषित शहरों में रहते हैं, उन्हें अस्थमा या फेफड़ों की बीमारियां अधिक होंगी, इसलिए अध्ययन में उच्च प्रदूषण वाले क्षेत्रों में मृत्यु दर अधिक पाई गई है.’

प्रदूषण से वायरस का ‘फैलाव’ बढ़ सकता है

कोविड के फैलाव पर चटर्जी ने कहा, ‘मैं कहूंगा कि कई अवलोकन संबंधी अध्ययन हैं जिसमें पाया गया है कि प्रदूषित हवा वायरस के संचरण में मदद कर सकती है.’

उन्होंने यह भी कहा कि बढ़े हुए वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में इस वायरस का संचरण अधिक पाया गया है. ‘लंबी अवधि में, लोग फेफड़े के फाइब्रोसिस के साथ उतर सकते हैं जो दुर्बल है. ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रदूषण से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है और उच्च रुग्णता दर बढ़ जाती है.’

यह पूछे जाने पर कि क्या विशेष रूप से सूक्ष्म कणों ने वायरस को फैलाने में भूमिका निभाई, दिवेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू के चेयरमैन प्रोफेसर एसके सतीश ने कहा, ‘एरोसोल सतह पर चिपकने को लेकर वायरस के संचरण पर कई अध्ययन हुए हैं. अधिकांश एरोसोल शुष्क हैं, जैसे कि धूल के कण. यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि कोविड-19 वायरस कब तक सूखी कण वाले सतहों में जीवित रह सकता है.’

उन्होंने कहा, ‘बड़े एरोसोल कणों के वातावरण में ठहरने का समय, जो वायरस ले जा सकता है, केवल कुछ दिनों का होता है. इस तरह की संभावना मौजूद है, हम इस समय एक निर्णायक टिप्पणी नहीं कर सकते क्योंकि यह एयरोसोल कणों के ठहरने के समय और एयरोसोल कण सतह पर वायरस के जीवनकाल दोनों पर निर्भर करता है.’


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सतीश का मानना ​​है कि शहरों में वायु प्रदूषण को कम करने से कोविड को रोकने और रोगी के ठीक होने में फायदा मिलेगा.

चटर्जी ने कहा कि यह एक ‘अप्रत्यक्ष संबंध’ होगा. ‘जहां कहीं भी कम प्रदूषण है उसका कोरोनावायरस रोगियों के ठीक होने पर ‘अप्रत्यक्ष प्रभाव’ होगा’.

टिकू ने कहा, ‘यह निश्चित रूप से फायदेमंद होगा. हालांकि, यह बहस किस हद तक भी हो. यदि वायु प्रदूषण कम हो जाता है, तो ठीक होने में तेजी होगी, अन्यथा वायु प्रदूषक श्वसन प्रणाली को परेशान करते रहेंगे.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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