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Thursday, 25 April, 2024
होमदेशउग्र भाषण देने वाला, 'भिंडरांवाले 2.0'- कौन हैं दीप सिद्धू के ‘वारिस पंजाब दे’ के नए प्रमुख अमृतपाल सिंह

उग्र भाषण देने वाला, ‘भिंडरांवाले 2.0’- कौन हैं दीप सिद्धू के ‘वारिस पंजाब दे’ के नए प्रमुख अमृतपाल सिंह

जांच एजेंसियों की कड़ी निगरानी में दीप सिद्धू के ‘वारिस पंजाब दे’ के एक धड़े के नवनियुक्त प्रमुख अमृतपाल सिंह संधू पंजाब की राजनीति में आए एक खालीपन को भरने में लगे हैं.

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अमृतसर: एक पवित्र सिख के रूप में उनका यह एक नया अवतार है. एक गहरे नीले रंग की पगड़ी, सफेद चोला और तलवार के आकार के कृपाण (पारंपरिक सिख खंजर) के साथ अमृतपाल सिंह संधू काफी थके हुए नजर आ रहे थे. वह अमृतसर के जल्लूपुर खेड़ा में अपने पुश्तैनी घर के एक कमरे में काफी देर टहलने के बाद वहां बिछे कालीन पर बैठ जाते हैं. गांव में उनके दो घरों को जोड़ने वाली गलियों पर नौ सीसीटीवी कैमरे पैनी नजर बनाए हुए हैं.

संधू को संगठन की स्थापना की पहली सालगिरह पर 29 सितंबर को एक दस्तरबंदी (पगड़ी बांधने की रस्म) में दिवंगत पंजाबी अभिनेता और वकील दीप सिद्धू द्वारा स्थापित संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ के एक गुट का मुखिया बनाया गया था.

मेगा इवेंट मोगा जिले के रोडे गांव में हुआ. रोडे को समारोह के लिए चुना गया क्योंकि यह खालिस्तान विद्रोह के पितामह जरनैल सिंह भिंडरावाले का पुश्तैनी घर है.

दिप्रिंट से बात करते हुए संधू ने कहा कि भिंडरावाले वह व्यक्ति थे जिन्होंने स्वर्ण मंदिर की किलेबंदी की थी और 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार की वजह बने थे. वह एक ‘प्रेरणा’ है.

उन्होंने आगे कहा, ‘हम संत जरनैल सिंह भिंडरावाले को एक युवा आइकन के रूप में सेलिब्रेट करना चाहते हैं. हम राज्य को यह संदेश देना चाहते हैं कि वे उन्हें कितना भी बुरा क्यों न बताएं, वह हमेशा हमारे नायक रहेंगे.’

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इवेंट के बाद संधू को स्थानीय मीडिया और संगठन से जुड़े असत्यापित सोशल मीडिया प्रोफाइल में दिवंगत के उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया गया. लेकिन संधू ने इस उपाधि को लेने से इंकार कर दिया.


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एक विवादास्पद उत्तराधिकारी

पिछले साल वारिस पंजाब दे को लॉन्च करने के अवसर पर दीप सिद्धू ने पंजाब के सामने आने वाले मुद्दों के बारे में बात करने के लिए इसे एक ‘दबाव समूह’ के रूप में परिभाषित किया था. उन्होंने हरनेक सिंह उप्पल को संगठन के प्रमुख के रूप में नामित किया था.

2020 के किसानों के विरोध में अपनी भागीदारी के लिए प्रसिद्ध पाने वाले सिद्धू की फरवरी में एक कार दुर्घटना में मौत हो गई. उनके जाने के बाद से संगठन में एक खालीपन आ गया.

संस्थापक टीम का हिस्सा रहे सिद्धू के करीबी लोगों ने दिप्रिंट को बताया कि चूंकि उन्होंने अपने करीबी सहयोगियों- पलविंदर सिंह तलवार और उप्पल को संगठन का नेतृत्व करने के लिए चुना था, इसलिए इसे किसी नए व्यक्ति की जरूरत नहीं थी.

एक संस्थापक सदस्य ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘सिद्धू की मौत के तुरंत बाद, कुछ लोगों ने वारिस पंजाब दे को छोड़ दिया और संगठन के पंजीकरण के कागजात लेकर चले गए.’

वारिस पंजाब दे की मूल टीम के सदस्य ने आगे कहा, 4 जुलाई को एक नया संगठन रजिस्टर किया गाय. मगर तब सिद्धू के करीबी सहयोगी पंजाबी अभिनेता दलजीत कलसी के नेतृत्व वाले एक अलग समूह ने दस्तरबंदी में संधू को सार्वजनिक रूप से अपना नया प्रमुख बनाने के लिए कहा.

इस पर प्रतिक्रिया लेने के लिए दिप्रिंट ने कलसी से संपर्क करने की कोशिश की थी, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिला. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

‘आजादी’ की वकालत

जल्लूपुर खेड़ा में संधू का सांवला, दुबला–पतला चेहरा पूरे पंजाब में सार्वजनिक और निजी कार्यक्रमों में भाषण देते हुए उनके व्यस्त नौ सप्ताह को दर्शाता है. वह बंदूकों और पारंपरिक हथियारों- तलवार- के आकार के कृपाणों और तीरों से लैस चार एसयूवीएस में 10-15 लोगों की अपनी मंडली के साथ सफर करते हैं.

उनके उपदेश विशुद्ध रूप से धार्मिक या नैतिक नहीं हैं. वह सिखों को उनके अधिकारों से ‘वंचित’ करने वाली केंद्र और राज्य की सरकारों की नशे की लत छोड़ने के बारे में कुछ भी कहने से सहजता से कतराते हैं.

उन्होंने इस महीने की शुरुआत में बहबल कलां ‘हत्याओं’ की सातवीं बरसी पर उसी गांव में एक सभा को संबोधित करते हुए पंजाबी में कहा था, ‘सिख 150 साल से गुलाम हैं. हमने गुलामी वाली मानसिकता विकसित कर ली है. पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे, अब हम हिंदुओं के गुलाम हैं. हम पूरी तरह से तभी फ्री हो सकते हैं जब हमारे पास सिख शासन होगा.’

‘संधू की घर वापसी’

संधू ने सुनिश्चित किया कि पंजाब के राजनीतिक परिदृश्य में उनका आगमन जोरदार तरीके से हो. उनकी दस्तरबंदी की घोषणा पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और यहां तक कि ओडिशा में भी सोशल मीडिया के जरिए गूंजती रही. उनके कार्यक्रम में भारी भीड़ उमड़ी थी.

29 साल के संधु दुबई में अपने परिवार के ट्रांसपोर्ट बिजनेस और कनाडा के परमानेंट रेजिडेंट स्टेटस को को छोड़-छाड़कर 20 अगस्त को पंजाब वापस आ गए थे. उन्होंने कहा, ‘मैंने इसकी कल्पना नहीं की थी. मैं इसके लिए तैयार नहीं था.’

वह आगे कहते हैं, ‘लेकिन मुझे पता था कि आखिर में मुझे पंजाब के लिए अपनी जान की बाजी लगानी पड़ेगी.’

भिंडरावाले की तरह संधू की कोई औपचारिक धार्मिक शिक्षा नहीं ली है. दसवीं करने के बाद उन्होंने कपूरथला के एक पॉलिटेक्निक में दाखिला ले लिया था.

उसके तीन साल बाद उन्होंने अपने बाल कटवाए, दाढ़ी मुंडवा ली और फैमिली बिजनेस को संभालने के लिए दुबई चले गए.

वह कहते हैं कि उन्होंने कभी कोई किताब नहीं पढ़ी है. फिर भी, वह धाराप्रवाह पंजाबी में सिखों के खिलाफ ऐतिहासिक संघर्षों और अन्याय की कहानियों का हवाला देते हैं.

इस समय पंजाब में संधू के साथ रहने वाले उनके चाचा चाचा हरजीत सिंह ने बताया, ‘हमारा परिवार बहुत धार्मिक है. अमृतपाल जब इससे दूर हुए तो हमें अच्छा नहीं लगा. उसने हमें बताया कि उसने और उसके सहपाठी एक अन्य लड़के ने अपने बाल काटने की योजना बनाई है. अमृतपाल ने तो बाल कटवा लिए लेकिन वह लड़का भाग गया. लेकिन हम बहुत खुश हैं कि उन्होंने अब अमृत (पवित्र जल) ले लिया है’. ‘अमृत पीना’ सिख दीक्षा के दौरान किए जाने वाले संस्कारों में से एक है.

उन्होंने कहा कि पंजाब में वापस आना और सिखों के साथ फिर से जुड़ना संधू की घर वापसी है.

जनता के नेता

दस्तरबंदी से दो दिन पहले संधू ने रोडे गांव में सरपंच के घर को अपना अड्डा बनाया था. नए नेता की एक झलक पाने के लिए लोग लाइनों में लगे हुए थे.

वह याद करते हुए बताते हैं, ‘इतने सारे लोग मुझे देखना चाहते थे. हमने बरामदे पर एक चारपाई बिछा दी. हमें लोगों से इतना प्यार मिला. यह जबरदस्त था. मुझे दो दिन नींद नहीं आई. यह काफी थकाऊ था.’

घटना के दिन नींद न ले पाने और बुखार में तप रहे संधू ने धाराप्रवाह पंजाबी में माइक्रोफोन से गरजते हुए कहा, ‘हमारा पानी चोरी हो रहा है. हमारे गुरु का अपमान किया जा रहा है. हजारों फैक्ट्रियों ने हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया है. हमारा भूजल खत्म हो गया है. हमारी पगड़ी का अपमान किया जाता है. हमारे राष्ट्र का मुखिया हमें केशधारी (लंबे बालों वाला) हिंदू कहता है. ये गुलामी की निशानी हैं.’

संधू के अमृतसर वाले घर के बरामदे में भी अच्छी-खासी भीड़ उमड़ी हुई है, जो अपने शराब और नशीली दवाओं की लत, जमीनी विवाद , घरेलू हिंसा और गरीबी जैसे मसलों को उठाने के लिए बेताब हैं.

Amritpal Singh Sandhu meeting men at his house in Amritsar on October 13 | ThePrint / Sonal Matharu
अमृतपाल सिंह संधू अमृतसर में अपने घर पर पुरुषों से मिलते हैं | सोनल मथारू | दिप्रिंट

गुरुमुखी में एक ट्यूटोरियल के लिए पड़ोस के युवा लड़के शाम को अपनी नोटबुक और पेंसिल के साथ धीरे-धीरे आना शुरू कर देते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि यह रोज की बात है.

रोडे में केमिस्ट की दुकान चलाने वाले जसविंदर सिंह ने कहा, ‘वह लोगों से अमृत का स्वाद चखने और ड्रग्स से दूर रहने के लिए कह रहे हैं. वह पंजाब की उन समस्याओं के बारे में बात करते हैं जो 1984 के बाद से हल नहीं हुई हैं. इसलिए लोग उनसे जुड़ सकते हैं.’


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भिंडरांवाले से तुलना

स्थानीय मीडिया संधू की पारंपरिक पोशाक और व्यवहार की तुलना भिंडरांवाले से कर रही है.

सार्वजनिक समारोहों में उनके सोशल मीडिया पोस्ट और बैनर भी इस बात की ओर इशारा करते हैं. इन बैनर में भिंडरावाले के बगल में संधू की तस्वीर लगी है. यहां तक कि किसी पोस्टर में तो उन्होंने भिंडरावाले की तरह हाथ में एक तीर पकड़े हुए पोज भी दिया है.

Poster outside Rode gurdwara, built at the site where Bhindranwale was born | ThePrint / Sonal Matharu
रोडे गुरुद्वारे के बाहर पोस्टर, भिंडरांवाले का जन्म स्थल पर बनाया गया | सोनल मथारू | दिप्रिंट

दमदमी टकसाल के पूर्व प्रवक्ता और भाजपा के कार्यकारी सदस्य प्रोफेसर सरचंद सिंह कहते हैं, ‘अमृतपाल पंजाब के लोगों की साइकोलॉजी को समझ चुके है. भिंडरावाले की लोकप्रियता उनके मरने के बाद ही बढ़ी है और इसे अमृतपाल भुना रहे हैं. उन्होंने दमदमी टकसाल की पोशाक पहन रखी है. वह भिंडरांवाले की नकल करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन भले ही उन्होंने संत जी (भिंडरांवाले) की पोशाक ली हो, लेकिन वह उनके चरित्र से मेल नहीं खा सकते हैं.’

सिंह कहते हैं, ‘यह सिर्फ लोगों को गुमराह करने के लिए किया जा रहा है.’

दमदमी टकसाल एक सिख मदरसा है जिसने 1984 के बाद खालिस्तान आंदोलन के लिए एक आइडलॉजिकल पावर हाउस के रूप में काम किया था.

संधू ने भिंडरांवाले की नकल करने से इनकार करते हुए कहा, ‘मैं भिंडरावाले का काफी सम्मान करता हूं, मैं उनकी बराबरी कर ही नहीं सकता. मुझे परवाह नहीं है कि राज्य मुझे भिंडरांवाले 2.0 या 3.0 कहते हैं. अगर वे ऐसा करते हैं तो यह भिंडरावाले का अपमान है और मैं ऐसा नहीं चाहता.’

राजनीतिक शून्य भरना

संधू के आग उगलते भाषण खालिस्तान – एक संप्रभु पंजाब – का आह्वान कर रहे हैं.

भिंडरांवाले के भतीजे जसबीर सिंह और दमदमी टकसाल के एक धड़े के मुखिया बाबा राम सिंह उनकी दस्तरबंदी पर मौजूद थे.

जसबीर सिंह इंदिरा गांधी की हत्या के मामले में आरोपी थे, लेकिन उन्हें कभी आरोपित नहीं किया गया.

संधू कहते हैं कि पंजाब राजनीति के खेल का मैदान रहा है. 2020 का किसानों का संघर्ष राज्य के लिए ऐतिहासिक क्षण था. ‘लोग बड़ी संख्या में संप्रभुता के लिए एकत्र हुए. वे दिल्ली (केंद्र सरकार) की बेरहमी के खिलाफ थे और दबाव बना रहे थे. जब इसे किसानों के संघर्ष में एक आउटलेट मिला, तो प्रवाह इतना तेज था कि राज्य भी इसे कंट्रोल नहीं कर सका.’

उन्होंने आगे कहा कि लाल किले पर सिख झंडा फहराना भारतीय राज्य के लिए एक चुनौती था. ‘इसका संदेश यह था कि हम (सिख) आपको (केंद्र सरकार) एक सर्वोच्च शक्ति के रूप में नहीं देखते हैं. सर्वोच्च शक्ति हमेशा खालसा होगी.’

चंडीगढ़ स्थित एक थिंक-टैंक, इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन के निदेशक प्रमोद कुमार कहते हैं, ‘अमृतपाल का उदय उसी तरह की राजनीति से निकला है जिसे पंजाब ने 1980 के दशक में देखा था. चरमपंथी तत्वों को संरक्षण दिया गया और उन्होंने पंजाब के लिए एक त्रासदी पैदा कर दी.’

वह कहते हैं कि पंजाब में सिखों को लामबंद करके राजनीतिक दलों का हिंदू वोटों को मजबूत करने का अवचेतन प्रयास, भविष्य में उग्रवादी राजनीति को आक्रामक रूप से आगे बढ़ा सकता है.

संधू सिखों के लिए सरकारों द्वारा कुछ न किए जाने को प्रभुत्व और गुलामी के संकेत के रूप में चित्रित कर रहे हैं. उन्होंने सिख युवाओं से पूर्ण स्वतंत्रता के लिए लड़ने का आह्वान करते हुए कहा कि यह सिर्फ सिख शासन में ही पाया जा सकता है.

वह कहते हैं, ‘सरकार ने (बरगारी की बेअदबी करने के मामले को सुलझाने के लिए) 1.5 महीने का समय मांगा है. उसके बाद हमारा कोई शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन नहीं होगा. डेढ़ महीने के बाद हमें सिख शासन की घोषणा करनी होगी.’

Amritpal Singh Sandhu (centre) at Tibi Saheb Gurudwara, Faridkot at an event commemorating the seventh anniversary of Behbal Kalan killings linked to the 2015 Bargari sacrilege case | ThePrint / Sonal Matharu
फरीदकोट के तिब्बी साहब गुरुद्वारा में बहबल कलां हत्याओं की सातवीं बरसी के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में अमृतपाल सिंह संधू (बीच में) | सोनल मथारू | दिप्रिंट

हालांकि वह दावा कर रहे हैं कि संप्रभुता का विचार सिखों का एक बहुत ही बुनियादी हिस्सा है. लेकिन प्रोफेसर सरचंद सिंह का मानना है कि संधू सिखों को इसके लिए जो बलिदान करने के लिए कह रहा है, वह एक खतरनाक, अंधेरे रास्ते पर ले जा सकता है जिसे राज्य ने पहले भी देखा है. वह कहते हैं ‘मैंने उग्रवाद देखा है और हम उस दौर में वापस जाना नहीं चाहते हैं.’

हालांकि संधू ने इन दावों को खारिज किया है कि वह युवाओं को हथियार उठाने के लिए उकसा रहे हैं. उन्होंने बताया, ‘जब मैं बड़ा हो रहा था तो गांव में एक असहज शांति थी. कोई हमारे साथ उस फेज (आतंकवाद के) के बारे में बात नहीं करता था. लेकिन आप कब तक दिखावा कर सकते हैं कि ऐसा कभी हुआ ही नहीं है? हमें आखिरकार पता चल ही गया. हर गांव के 10-20 युवक उस दौर में मारे गए थे.’

उन्होंने कहा, ‘मैं ढांचागत बदलाव की मांग कर रहा हूं. मैं सशस्त्र संघर्ष और राज्य के बीच ढाल हूं.’

आलोचना करना सही

संधू पर हर तरफ से हमले हो रहे हैं. उनका दावा है कि जब उन्होंने राज्य में धर्मांतरण पर सवाल उठाया, तो ईसाई नेताओं ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करने की धमकी दी.

रोडे गांव में भिंडरांवाले का परिवार और परिवार द्वारा चलाए जा रहे गुरुद्वारे के सेवादार संधू से नहीं जुड़ना चाहते हैं.

एक सेवादार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘उनका समारोह गुरुद्वारे के बाहर हुआ. उन्होंने हमें सिर्फ लंगर तैयार करने के लिए कहा, जो हमने किया. हमारी भागीदारी बस इतनी ही रही.’

भिंडरांवाले के भाई हरजीत सिंह ने संधू के आक्रामक भाषणों से खुद को दूर कर लिया. प्रोफेसर सिंह कहते हैं कि दमदमी टकसाल भी संधू की राजनीति के साथ तालमेल नहीं बिठा रहा है.

7 अक्टूबर को पंजाब कांग्रेस के प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वारिंग ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को लिखा कि संधू के दिए गए बयान ‘युवाओं को गुमराह कर सकते है.’

‘एक बड़ा विजन’

संधू अपनी मां के साथ अमृतसर के अपने एक बड़े से घर में रहते हैं. उनके पिता और जुड़वां बहन विदेश में हैं. उनका बड़ा भाई चंडीगढ़ में अपने परिवार के साथ रहता है.

हालांकि वह उस पल के बारे में नहीं बता सके जब उन्होंने धर्म को पुनर्जीवित करने के बारे में दृढ़ता से महसूस करना शुरू किया था. उनका कहना है कि उन्हें हमेशा सिख शहीदों की कहानियों में दिलचस्पी रही थी. उन्होंने कहा कि सिखी में लौट आने के बाद से वह शांत हो गए हैं.

वह कहते है, ‘मैं आक्रामक हुआ करता था. अब मैं द्वेष नहीं रखता. अगर कोई मेरी आलोचना करता है, तो मैं उससे निराश नहीं होता हूं. मेरा विजन बहुत बड़ा है.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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