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Monday, 22 December, 2025
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‘अग्निपथ’ योजना के खिलाफ प्रदर्शनों के बीच अदालत के ऐतहासिक फैसलों पर बहस

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कोच्चि, 17 जून (भाषा) सशस्त्र बलों में भर्ती की घोषित नयी योजना ‘‘अग्निपथ’’ के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान देश के कई हिस्सों में हो रही आगजनी और हिंसा की घटनाओं के बीच केरल उच्च न्यायालय द्वारा पूर्व में दिए गए कुछ ऐतिहासिक फैसलों पर बहस तेज हो गई है।

अदालत ने इन फैसलों में बंद बुलाने पर प्रतिबंध लगाया है और बिना पूर्व नोटिस के हड़ताल या प्रदर्शन के आह्वान पर रोक लगाई है।

उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने अप्रत्याशित रूप से होने वाले प्रदर्शनों और बंद से आम लोगों को होने वाली परेशानी को देखते हुए 1997 में बंद पर रोक लगाई थी और अन्य पीठ ने वर्ष 2000 में व्यवस्था दी की कि जबरन कराई जाने वाली हड़ताल ‘‘असंवैधानिक’’ है।

इसके बाद जब अदालत के बंद पर ‘रोक’ के खिलाफ राजनीतिक दलों और विभिन्न संगठनों ने हड़ताल या बंद का आह्वान शुरू किया ,तो अदालत ने कई मौकों पर बंद के दौरान हुई हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की जांच करने के आदेश दिए।

सबरीमला मामले को लेकर वर्ष 2019 में हुए प्रदर्शनों के दौरान केरल उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राज्य में कोई भी हड़ताल सात दिन पूर्व नोटिस दिए जाने से पहले नहीं होगी।

आकस्मिक हड़ताल की परिपाटी की निंदा करते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति जयशंकरन नाम्बियार की पीठ ने टिप्पणी की थी कि यदि पहले से नाोटिस नहीं दिया गया है तो लोग अदालत से संपर्क कर सकते हैं और सरकार ऐसी स्थिति से निपटने के लिए उचित उपाय कर सकती है।

अदालत ने कहा, ‘‘राजनीतिक पार्टियां, संगठन और प्यक्ति जो हड़ताल का आह्वान करते हैं, उनके लिए अनिवार्य है कि सात दिन पहले इस संबध में नोटिस दें।’’पीठ ने कहा कि जो संगठन या व्यक्ति हड़ताल का आह्वान करते हैं वे इस दौरान होने वाले नुकसान और क्षति के लिए जिम्मेदार होंगे।

केरल चेम्बर ऑफ कामर्स ऐंड इंडस्ट्रीज और त्रिशूर के गैर सरकारी संगठन ‘मलयाला वेदी’ की हड़ताल के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि उचित नियम के अभाव में हड़ताल निरंतर चलने वाली प्रक्रिया बन गई है।

अदालत ने कहा कि इस तरह की हड़तालों से राज्य की अर्थव्यवस्था और देश की पर्यटन संभावना भी प्रभावित होगी।

उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रदर्शन का अधिकार है लेकिन इससे नागरिकों के मूलभूत अधिकार प्रभावित नहीं होने चाहिए।

वाम लोकतात्रिंक मोर्चा (एलडीएफ) द्वारा 27 सितंबर 2021 को बुलाई गई हड़ताल को गैर कानूनी घोषित करने के लिए दायर की गई याचिका पर 24 सितंबर 2021 को फैसला देते हुए अदालत ने कहा कि राज्य सरकार सुनिश्चित करे कि हड़ताल के खिलाफ अदालत द्वारा दिए गए फैसले का अनुपालन हो व आम नागरिकों के मूल अधिकार सुनिश्चित किए जाएं।

हालांकि, अदालत ने हड़ताल को गैर कानूनी घोषित करने के लिए दायर जनहित याचिका खारिज कर दी। गौरतलब है कि राज्य में सत्तारूढ़ एलडीएफ ने केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों के प्रति एकजुटता प्रकट करने के लिए राज्यव्यापी हड़ताल बुलाई थी।हालांकि, सरकार ने कहा था कि वह सुनिश्चित करेगी कि अवांछित घटनाएं न हों।

भाषा धीरज नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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