नई दिल्ली: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने के विधानसभा चुनाव से पहले किये गए अपने वादे की पूर्ति की दिशा में कदम उठाते हुए एक पैनल का गठन किये जाने के एक दिन बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने कहा कि कोई भी समान नागरिक संहिता (यूसीसी) ‘सभी समुदायों के लिए फायदेमंद’ होनी चाहिए और इसे जल्दबाजी में न लाकर ‘सुविचारित’ होना चाहिए.
आरएसएस, जो चाहता है कि सामान नागरिक संहिता जल्द ही पूरे भारत में लागू हो, ने इसके लिए सभी समुदायों के बीच ‘पूर्ण सहमति’ की आवश्यकता पर भी बल दिया. आरएसएस की केंद्रीय समिति के एक शीर्ष सदस्य, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने दिप्रिंट को बताया, ‘समुदायों के बीच कई प्रथागत कानून हैं. सभी का सम्मान किया जाना चाहिए और केवल अनुचित प्रथाओं को ही यूसीसी के माध्यम से समाप्त किया जाना चाहिए.’
हालांकि, संघ के नेता इस प्रक्रिया को धीमा नहीं करना चाहते हैं, मगर वे चाहते हैं कि सरकार एक आम सहमति बनाए, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों के बीच जिनकी शादी, पूजा, अंतिम संस्कार और विरासत से संबंधित कई सारी परंपरागत प्रथाएं हैं और जिनके बीच से आरएसएस का बहुत बड़ा अनुयायी वर्ग आता हैं.
संघ की केंद्रीय समिति के सदस्य ने कहा, ‘हम एक समान नागरिक संहिता चाहते हैं लेकिन हम इसके लिए आम सहमति भी चाहते हैं. समुदायों के बीच बहुत सारी जटिल प्रथाएं हैं. उनके अपने-अपने पर्सनल लॉ (निजी कानून) के तहत लागू किये जाने वाले बहुत पारंपरिक नियम हैं.’
उन्होंने कहा, ‘यूसीसी में न केवल विवाह, बल्कि विरासत और गोद लेने के कानून भी शामिल हैं. विभिन्न समुदायों के बीच विरासत का क्रम एक महत्वपूर्ण कारक है, और इसके लिए प्रत्येक धार्मिक या सामाजिक समूह के अपने कानून हैं. इन मुद्दों पर अच्छी तरह से विचार-विमर्श किये जाने की जरूरत है.’
उत्तराखंड में गठित समिति का जिक्र करते हुए उन्होंने आगे कहा, ‘इस समिति को अपनी रिपोर्ट पेश करने दीजिए- हम उसे देखेंगे और फिर तय करेंगे कि हमें इस पर क्या रुख लेना चाहिए. हमारे पास यूसीसी पर अपना एक संकल्प है और हम निश्चित रूप से इसे जल्द-से-जल्द लागू करवाना चाहते हैं. लेकिन इसे व्यवस्थित तरीके से किया जाना चाहिए और इसे सामाजिक और धार्मिक समुदायों के बीच और अधिक विभाजन या तनाव पैदा नहीं करना चाहिए.’
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‘अनुचित प्रथाओं को पहले खत्म करें’
आरएसएस की केंद्रीय समिति के एक अन्य वरिष्ठ सदस्य ने कहा कि सरकार को पहले मौजूदा कानूनों से ‘अनुचित प्रथाओं’ को हटाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘यह सिर्फ हिंदुओं, मुसलमानों, ईसाइयों या आदिवासियों के बारे में नहीं है. यह सभी को एक समान कानून, एक एकीकृत न्याय प्रणाली के तहत लाने के बारे में है. विभिन्न समुदायों को विभिन्न निजी कानूनों द्वारा शासित नहीं किया जा सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन हमें लगता है कि सरकार को पहले तीन तलाक या संपत्ति के अधिकारों के रूप में बेटियों को शामिल नहीं करना और इसी तरह की अन्य अनुचित प्रथाओं को खत्म करना चाहिए. विभिन्न समुदायों के बीच ऐसी कई प्रथाएं हैं. इन्हें व्यवस्थित तरीके से दूर किया जाना चाहिए और इसके बाद ही हम एकरूपता के बारे में बात कर सकते हैं.’
उन्होंने आगे कहा कि सरकार को अब बहुविवाह की अनुमति देने वाले पर्सनल लॉ में संशोधन करने की जरूरत है. इसका संदर्भ स्पष्ट रूप से मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 से है.
इस पदाधिकारी ने शरिया कानून में तलाकशुदा महिलाओं को दिए जाने वाले अधिकारों के न होने और मुआवजे की कमी जैसे मुद्दों पर भी नाराजगी व्यक्त की. उन्होंने कहा, ‘हिंदू विवाह अधिनियम सहित अन्य सभी निजी कानून एक महिला को संपत्ति में अपने अधिकारों की मांग करने की अनुमति देते हैं.’
हालांकि, आदिवासी समुदायों के संबंध में यूसीसी के कार्यान्वयन के मसले पर आरएसएस को एक और दुविधा का सामना करना पड़ रहा है. आदिवासी आबादी के बीच संघ की एक बड़ी पहुंच है, जिनके बारे में वह मानता है कि वे अपने निजी कानूनों को छोड़ने के पक्ष में नहीं हैं.
एक तीसरे पदाधिकारी, जिन्होंने आदिवासी लोगों के बीच काफी काम किया है, ने कहा, ‘आदिवासी समुदायों के अपने निजी कानून हैं और यदि कोई यूसीसी आता है, तो इसके द्वारा उनकी सभी परंपरागत प्रथाओं को समाप्त कर दिया जाएगा. उन्हें लगता है कि यूसीसी के माध्यम से उन्हें हिंदू के रूप में पहचान दे दी जाएगी, जो कि वे हैं नहीं.’
उन्होंने कहा, ‘हम स्थिति का आकलन करने के लिए जमीन पर काम कर रहे हैं और सरकार को इससे अवगत कराते रहते हैं लेकिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट हम सभी के लिए एक नया नजरिया लेकर आएगी.’
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