पणजी: ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखक दामोदर मौजो ने बुधवार को कहा कि यह कोंकणी समुदाय के लिए गर्व का क्षण है.
मौजो को 56वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है और वह दिवंगत रवींद्र केलकर के बाद यह शीर्ष साहित्यिक पुरस्कार जीतने वाले दूसरे कोंकणी लेखक बन गए हैं. विख्यात साहित्यकार लघु कथा, उपन्यास, बाल साहित्य समेत लेखन की कई विधाओं में हाथ आज़मा चुके हैं.
समाचार एजेंसी ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में मौजो (77) ने कहा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार कोंकणी भाषा में लिखने वाले लोगों को प्रेरित करेगा और यह कोंकणी समुदाय के लिए गर्व का क्षण है.
मौजो को असम के विख्यात कवि नीलमोनी फुकन के साथ साझे तौर पर यह पुरस्कार दिया गया. उन्होंने कहा, ‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे ज्ञानपीठ मिलेगा. इस तरह के पुरस्कार पाने की मुझे कोई उम्मीद नहीं थी.’
मौजो ने कहा कि कोंकणी आजादी के बाद प्रमुख विकास के चरण से गुजरी है. कोंकणी को भाषा के रूप में मान्यता मिलने के लिए संघर्ष से गुजरना पड़ा. लेखक ने कहा, ‘यह कोंकणी समुदाय के लिए गर्व का क्षण है क्योंकि इस भाषा को थोड़े से समय में दो ज्ञानपीठ पुरस्कार मिले हैं.’
दिवंगत केलकर को 2006 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया. मौजो ने कहा कि कोंकणी लेखन की दुनिया में नए आगंतुकों को यह समझना चाहिए कि ‘साहित्य कभी व्यर्थ नहीं जाता है.’
मौजो को 1983 में उनके उपन्यास ‘कर्मेलिन’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इस उपन्यास का अब तक दो दर्जन से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है.
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