नई दिल्ली: अंडर-द-रडार बॉर्डर सर्विलांस (रडार की पकड़ से निचले स्तर पर सीमा की निगरानी) करने से लेकर, देश के दूरदराज के कोनों तक इंटरनेट की पहुंच में सुधार करने तक, काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च-नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरीज (सीएसआईआर-एनएएल) द्वारा तैयार किया गया भविष्य में सौर ऊर्जा से चलने वाले मानव रहित हवाई विमान (यूएवी) जल्द ही भारत को उन कुछ विशिष्ट देशों में से एक बना सकता है जिनके पास अपने खुद के बनाये हाई अलटीटुडे प्लेटफॉर्म्स (एचएपी) हैं हैदराबाद में पिछले महीने आयोजित विंग्स इंडिया 2022 नाम के नागरिक उड्डयन कार्यक्रम में, एनएएल ने स्वचालित हाप (एचएपी) के एक पूरी तरह से काम कर रहे सब-स्केल मॉडल का प्रदर्शन किया था जो दिन के समय सौर ऊर्जा से और रात में हाई-डेंसिटी (उच्च घनत्व वाले) लिथियम आयन बैटरी पर चलता है.
हल्के वजन वाला यह यूएवी 16 से 20 किलोग्राम से अधिक के पेलोड (ढोये गए भार) के साथ 90 दिनों तक 22 किलोमीटर से अधिक की ऊंचाई पर उड़ान भरने में सक्षम है.
दिप्रिंट के साथ बात करते हुए, एनएएल के निदेशक जितेंद्र जाधव ने बताया कि एचएपी 5जी और 6जी स्पेक्ट्रम में दूरसंचार सम्बन्धी अनुप्रयोगों (ऍप्लिकेशन्स) के लिए एक छद्म उपग्रह के रूप में काम करेगा.’
जाधव का कहना था कि ‘ग्रामीण भारत के 40 फीसदी हिस्से में अभी भी हाई स्पीड इंटरनेट नहीं है. एचएपी उपग्रहों को लॉन्च करने या टावर स्थापित करने की तुलना में कम लागत वाला विकल्प प्रदान करता है.’
उन्होंने कहा: ‘इस विमान को 90 दिनों के बाद फिर से लॉन्च किया जा सकता है.’
‘छद्म उपग्रह’ के रूप में कार्य कर सकता है’
जाधव ने बताया कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को एक ऐसे उड़ने वाले वाहन अथवा विमान की जरूरत थी जो दुश्मनों के रडार की पकड़ से नीचे उड़ते हुए उनके सीमा क्षेत्रों में घुस सके. उन्होंने कहा, ‘एचएपी निगरानी और टोही मिशन को अंजाम देने के लिए मल्टी-स्पेक्ट्रल कैमरे भी ले जा सकता है.’
हालांकि, जाधव अनुसार इस यूएवी का अधिक महत्वपूर्ण अनुप्रयोग इसके द्वारा ‘छद्म उपग्रह’ के रूप में कार्य करने की क्षमता है.
जाधव ने कहा, ‘यह वाहन संचार संपर्क वाले एंटीना ले जा सकता है. इन उपग्रहों से हैवलॉक द्वीप तक की दूरी तक उच्च गति से संचार सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती है.‘
उन्होंने कहा कि इस एचएपी के साथ लो डेटा लेटेंसी, हाई बैंडविड्थ, लॉन्च करने में लचीलेपन और कम लागत जैसे फायदे होंगे. इस एचएपी का उपयोग पृथ्वी के अवलोकन (अर्थ ऑब्जर्वेशन), जलवायु अनुसंधान आदि के लिए भी किया जा सकता है.
लिथियम बैटरी बनी हुई है एक चुनौती
जाधव ने कहा कि हालांकि इस वाहन को हल्के वजन वाली मिश्रित धातु का उपयोग करके डिजाइन किया गया था, मगर इसके पंखों के बड़े फैलाव ने उड़ान में स्थिरता बनाए रखने की चुनौती पेश की.
इसके लिए एनएएल ने एक ऐसी नियंत्रण प्रणाली विकसित की जो यूएवी को स्थिर रखती है.इसके अलावा एनएएल ने इस विमान के पंखों पर पतले सौर पैनलों को एम्बेड करने सुविधा प्रदान करने के लिए एक तकनीक भी विकसित की.
एनएएल अब इसके प्रदर्शन के बारे में और अधिक डेटा एकत्र करने के लिए इस साल सितंबर तक एचएपी के सबस्केल मॉडल के साथ प्रशिक्षण उड़ान करने की योजना बना रहा है. ये ट्रायल रन इसकी टीम को इस सिस्टम की शेष खामियों को दूर करने की अनुमति देंगे, ताकि अंततः 2023 तक प्रूफ ऑफ़ कांसेप्ट वाला मॉडल लॉन्च किया जा सके.
जाधव ने कहा कि इस प्रणाली के समक्ष अभी भी शेष चुनौतियों में से एक है हाई डेंसिटी लिथियम आयन बैटरी. उन्होंने कहा, ‘वर्तमान में इन बैटरियों का आयात किया जा रहा है. हालांकि, एनएएल भारत में ही इन्हें विकसित करने पर काम कर रहा है.’
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