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Sunday, 22 December, 2024
होमदेश‘पड़ोसी राज्यों से तस्करी कर लाई गई फसलें’, MSP पर सूरजमुखी की खरीद क्यों नहीं कर रही खट्टर सरकार?

‘पड़ोसी राज्यों से तस्करी कर लाई गई फसलें’, MSP पर सूरजमुखी की खरीद क्यों नहीं कर रही खट्टर सरकार?

हरियाणा के सीएम का कहना है कि बाजरा के समान सूरजमुखी का भी मामला है, जिसे राज्य सरकार ने 3 साल के लिए एमएसपी पर खरीदा जबकि बाजरे की तस्करी राजस्थान से की जा रही थी, जहां यह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है.

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चंडीगढ़: हरियाणा सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सूरजमुखी की फसल की खरीद नहीं करने पर किसानों के विरोध के मद्देनज़र, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भावांतर भरपाई योजना (बीबीवाई) के तहत “अंतरिम राहत” के रूप में 8,528 सूरजमुखी किसानों के बैंक खातों में 29.13 करोड़ रुपये स्थानांतरित किए.

राज्य सरकार ने इस साल की शुरुआत में बीबीवाई के तहत सूरजमुखी की फसल को शामिल करने की घोषणा की थी, एक ऐसी योजना जिसके माध्यम से वह किसानों को एमएसपी से नीचे बेची गई उपज के लिए एक निश्चित मुआवजे का भुगतान करेगी.

शनिवार को चंडीगढ़ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीएम ने कहा कि उनकी सरकार बीबीवाई के तहत सूरजमुखी के किसानों को अंतरिम राहत के रूप में 1,000 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान कर रही है और राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि किसानों को उनकी फसल का नुकसान न हो.

तो खट्टर सरकार एमएसपी पर सूरजमुखी खरीदने से क्यों कतरा रही है? यह सवाल पूछे जाने पर सीएम ने कहा, “जहां तक केंद्र की ओर से खरीदी जाने वाली फसलों की बात है तो हमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन जब फसलों की बात आती है जो केवल हरियाणा एमएसपी पर खरीदता है, तो हमारे सामने समस्या यह है कि पड़ोसी राज्यों की फसल हमारे राज्य में तस्करी कर लाई जाती है.”

खट्टर ने उम्मीद जताई कि आने वाले दिनों में सूरजमुखी के बाजार मूल्य में वृद्धि होगी और किसानों को 1,000 रुपये की अंतरिम राहत के साथ 6,400 रुपये के एमएसपी से अधिक मिलेगा.

हालांकि, वह इस बारे में प्रतिबद्ध नहीं थे कि अगर यह परिदृश्य नहीं होता है तो क्या होगा, उन्होंने कहा, “यदि ऐसा नहीं होता है, तो हम मुआवजे को बढ़ा सकते हैं. हालांकि, हम अभी इसकी घोषणा नहीं करना चाहेंगे.”

लाडवा रोड़ पर इस मुद्दे पर किसानों के विरोध का नेतृत्व कर रहे भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) की कुरुक्षेत्र इकाई के अध्यक्ष कृष्ण कुमार ने दिप्रिंट से कहा, यह “एमएसपी को खत्म करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा था”.

उन्होंने कहा, “पहले उन्होंने बाजरे पर एमएसपी देना बंद कर दिया और अब यह सूरजमुखी है. अगला कदम धान और गेहूं होगा, क्योंकि यह सरकार एमएसपी पर फसलों की खरीद के खिलाफ है.”

केंद्र सरकार ने 2022-23 के लिए सूरजमुखी की फसल के लिए 6,400 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी देने की घोषणा की थी. हरियाणा के किसान, हालांकि, एमएसपी पर सूरजमुखी की खरीद नहीं करने के राज्य के फैसले पर आंदोलन कर रहे हैं, जिसके बारे में उनका कहना है कि उन्हें “निजी खरीदारों को अपनी फसल 4,000 रुपये से 4,800 रुपये में बेचने के लिए” मजबूर होना पड़ा है.

पिछले मंगलवार को आंदोलनकारी किसानों ने कुरुक्षेत्र जिले के शाहाबाद में चंडीगढ़-दिल्ली हाईवे को जाम कर दिया था. पुलिस ने बाद में लाठीचार्ज का सहारा लिया और बीकेयू (चढ़ूनी) के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी सहित नौ किसान नेताओं को गिरफ्तार कर लिया.

किसानों के विरोध के एक दिन बाद, केंद्र सरकार ने 2023-24 सीजन के लिए सूरजमुखी पर एमएसपी 6,400 रुपये से बढ़ाकर 6,760 रुपये करने की घोषणा की.

हरियाणा खाद्य और आपूर्ति विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पहले दिप्रिंट को बताया था कि राज्य सरकार ने “यह घोषणा नहीं की थी कि वह 2022-2023 के लिए एमएसपी पर सूरजमुखी के बीज खरीदेगी”.

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार पूरे देश के लिए 14 खरीफ फसलों सहित 22-23 फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा करती है और यह राज्यों पर निर्भर है कि वे किस फसल पर किसानों को एमएसपी देना चाहते हैं.


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‘अंतरराज्यीय तस्करी’

खट्टर ने शनिवार को फसल खरीद पर विस्तार से कहा कि केंद्रीय एजेंसी भारतीय खाद्य निगम की ओर से हरियाणा एमएसपी पर गेहूं और धान की खरीद करता है. उन्होंने कहा,“चूंकि इन फसलों को केंद्रीय एजेंसियों द्वारा पड़ोसी राज्यों से भी खरीदा जाता है, इसलिए सरकार के लिए तस्करी की कोई चुनौती नहीं है.”

हालांकि, उन्होंने बताया, “जब हमने एमएसपी पर बाजरा की खरीद की, तो यह पाया गया कि अन्य राज्यों के किसान भी हमारी मंडियों में अपनी बाजरा की फसल बेच रहे थे.”

खट्टर ने कहा, “तीन वर्षों के लिए हमने एमएसपी पर बाजरा खरीदा – 2018-19 में 1,950 रुपये प्रति क्विंटल, 2019-20 में 2,000 रुपये प्रति क्विंटल और 2020-21 में 2,150 रुपये प्रति क्विंटल. हालांकि, पड़ोसी राज्य राजस्थान में फसल 1,500 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रही थी. सरकार की कोशिशों के बावजूद, राजस्थान से बाजरे की यहां तस्करी की जा रही थी, जहां यह बहुतायत में उगाया जाता है.”

उन्होंने बताया कि सूरजमुखी के मामले में भी ऐसी ही स्थिति सामने आई है.

सीएम ने कहा, “अगर हम 6,400 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी पर फसल खरीदते हैं, तो पड़ोसी राज्य पंजाब से फसल की तस्करी हरियाणा में की जाती है, क्योंकि सूरजमुखी की कीमत बाजार में (लगभग) 4,000 रुपये है.”

उन्होंने जोर देकर कहा कि यही कारण है कि हरियाणा सरकार ने एमएसपी पर सूरजमुखी और बाजरा जैसी फसलों की खरीद नहीं करने और इसके बजाय बीबीवाई के तहत किसानों को मुआवजा देने का फैसला किया है.

खट्टर ने कहा, “हम केवल बाजार मूल्य और एमएसपी के बीच के अंतर को किसानों के खातों में स्थानांतरित करते हैं और उन्हें अपनी फसल कहीं भी बेचने के लिए छोड़ देते हैं.”

‘किसानों के पोर्टल पर फर्जी दावे’

प्रेस कांफ्रेंस में सीएम ने आगे बताया कि हरियाणा सरकार ने ‘मेरी फसल मेरा ब्योरा’ नाम से एक पोर्टल शुरू किया था और यह तय किया गया था कि केवल उन्हीं किसानों को एमएसपी और बीबीवाई का लाभ मिलना चाहिए जो इस पर अपनी फसल की जानकारी देते हैं.

उन्होंने कहा, “लेकिन सरकार ने पाया कि पोर्टल पर फर्ज़ी जानकारियां अपलोड की जा रही थीं. किसानों ने इस खरीफ सीजन (2022-23) के लिए पंजीकरण की अंतिम तिथि तक 40,000 एकड़ में सूरजमुखी की फसल का पंजीकरण कराया था. मांग बढ़ने पर, पोर्टल को तीन दिनों के लिए फिर से खोल दिया गया. इन तीन दिनों में किसानों ने 17,000 एकड़ में सूरजमुखी की फसल को पंजीकृत किया.”

सीएम ने कहा, “सत्यापन के दौरान पाया गया कि रबी सीजन में गेहूं उगाने वाले किसानों ने दिखाया था कि उन्होंने खरीफ सीजन के लिए सूरजमुखी की बुवाई की थी, जो व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है क्योंकि गेहूं की कटाई अप्रैल में होती है जबकि सूरजमुखी की बुवाई 15 मार्च से पहले करनी होती है. हमने 9,000 एकड़ पर सूरजमुखी के दावों को पहले ही खारिज कर दिया है क्योंकि वे संदिग्ध थे और सत्यापन अभी भी जारी है.”

तस्करी के बारे में बात करते हुए, हरियाणा कृषि विपणन बोर्ड के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य ने 2018 में एमएसपी पर 1.18 लाख मीट्रिक टन बाजरा खरीदा था. हालांकि, अगले साल 3.10 लाख मीट्रिक टन बाजरा खरीद के लिए बाजार में आया और यह 2020 में बढ़कर 7.66 लाख मीट्रिक टन हो गया.

अधिकारी ने कहा, “अगर आप उत्पादन में साल-दर-साल बढ़ोतरी की तुलना संबंधित खरीद के आंकड़ों से करते हैं, तो आप पाएंगे कि जब तक बाहर से फसल की तस्करी नहीं की जाती है, तब तक उछाल असंभव है.”

उन्होंने कहा कि हरियाणा की सीमाओं पर पुलिस की नाकाबंदी जैसे हस्तक्षेप तस्करी को रोकने में काफी हद तक विफल रहे हैं.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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