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Saturday, 4 May, 2024
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बर्खास्त भारतीय स्टाफ के विरोध प्रदर्शन की योजना के बाद दिल्ली के अफगान में दूतावास में बढ़ा संकट

अफ़गानिस्तान में छंटनी की पुष्टि करते हुए भारत में अफगानिस्तान के राजदूत फ़रीद मामुंडज़े इसका कारण धन की कमी बता रहे हैं.

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नई दिल्ली: नई दिल्ली में अफगान दूतावास के पिछली अफगान लोकतांत्रिक सरकार और तालिबान शासन के बीच सत्ता संघर्ष में उलझने – दूतावास के चार्ज डी’एफ़ेयर (सीडीए) की नियुक्ति को लेकर – के चार महीने बाद शुक्रवार को 11 भारतीय कर्मचारियों को मिशन से निकाल दिए जाने के बाद एक नया संकट आ गया है.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक इनमें ड्राइवर, रसोई कर्मचारी, चपरासी और अन्य शामिल हैं जो अब अगले दो दिनों के भीतर दूतावास के बाहर विरोध प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं. चार अफगान कर्मचारियों को भी कथित तौर पर सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था, लेकिन उन्होंने विरोध में शामिल होने की योजना नहीं बनाई.

इस बीच, भारत में अफ़गानिस्तान के राजदूत फरीद मामुंडज़े, जो इस समय लंदन में हैं, के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप सामने आए हैं, जिसका उन्होंने दिप्रिंट को दिए एक बयान में खंडन किया है.

अफगान दूतावास के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि बड़े पैमाने पर बर्खास्तगी के पीछे का कारण दूतावास के पास धन की कमी है. सूत्रों ने बताया कि अगस्त 2021 में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद, विदेश मंत्रालय (एमईए) ने अफगान मिशन को फंड देना शुरू किया, लेकिन इस साल मई में यह कथित तौर पर बंद हो गया.

बर्खास्तगी की पुष्टि करते हुए, मामुंडज़े ने कहा, “काबुल और अन्य स्रोतों से उपलब्ध धन की कमी है. इसके अतिरिक्त, मिशन द्वारा उत्पन्न राजस्व सभी परिचालन खर्चों को कवर करने के लिए अपर्याप्त है. इन कारकों ने हमारे पास इन छंटनी को लागू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ा है.

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भारतीय कर्मचारियों का दावा है कि उन्हें बिना किसी नोटिस के बर्खास्त कर दिया गया और शुक्रवार को मिशन में प्रवेश से वंचित कर दिया गया.

दिप्रिंट से बात करते हुए, 33 वर्षीय रोहित, जिसने लगभग 10 वर्षों तक दूतावास के लिए ड्राइवर के रूप में काम करने का दावा किया, ने कहा, “शुक्रवार को, मुझे दूतावास में प्रवेश से वंचित कर दिया गया. गार्ड के पास उन लोगों की सूची थी जिन्हें नौकरी से निकाल दिया गया था. हमें एक महीने का नोटिस नहीं दिया गया, जो कि सामान्य बात है.”

उन्होंने कहा कि सेवा से बर्खास्त किए गए भारतीय कर्मचारी छह महीने के वेतन या किसी रूप में ग्रेच्युटी की मांग को लेकर अगले दो दिनों के भीतर दूतावास परिसर के बाहर विरोध प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं. पूर्व कर्मचारियों ने दावा किया कि वे प्रति माह औसतन $350 (लगभग 29,000 रुपये) कमाते हैं.

अफगान मिशन के सूत्रों का आरोप है कि विदेश मंत्रालय ने इस मई में दूतावास को फंड देना बंद कर दिया है, और तब से वेतन का भुगतान दूतावास के ‘भंडार’ और कांसुलर कार्यालय द्वारा अर्जित धन से किया जाता है.


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राजदूत ने ‘भ्रष्ट आचरण’ के दावों से इनकार किया

इससे पहले, अप्रैल के अंत में, दूतावास में एक संकट पैदा हो गया था जब मामुंडज़े के व्यापार परामर्शदाता ने एमईए को पत्र लिखकर दावा किया था कि उन्हें तालिबान सरकार द्वारा चार्ज डी’एफ़ेयर (सीडीए) के रूप में नियुक्त किया गया था. “नियुक्ति” की बाद में दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख सुहैल शाहीन ने सराहना की, जिन्होंने इसे “तर्कसंगत” निर्णय कहा.

यह तब हुआ जब अफ़ग़ानिस्तान की पिछली लोकतांत्रिक सरकार द्वारा नियुक्त मामुंडज़े लंदन में अपने परिवार से मिलने गए थे.

मई में, मामुंडज़े वापस लौटे और उनके व्यापार सलाहकार को दूतावास में प्रवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया गया. हालांकि, बाद में वह लंदन वापस चले गए और पिछले तीन महीनों से भारत नहीं लौटे हैं. इससे हाल ही में अफवाहें उड़ीं कि वह “लापता” हो गए हैं.

अफगान दूतावास के सूत्रों का दावा है कि राजदूत पिछले साल पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान को सहायता के रूप में भारत से भेजे गए गेहूं की खेप के संबंध में “भ्रष्ट आचरण” में शामिल थे.

2021 में तालिबान के कब्जे के बाद, भारत ने पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान को गेहूं और मानवीय सहायता भेजी. हालांकि मार्च में, उसने इस भूमि मार्ग का उपयोग बंद कर दिया और इसके बजाय घोषणा की कि वह संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम के साथ साझेदारी में ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से गेहूं भेजेगा.

मामुंडज़े ने शनिवार को दिप्रिंट को दिए एक बयान में अपने ख़िलाफ़ आरोपों से इनकार किया, और सुझाव दिया कि यह “मिशन पर कब्ज़ा करने के तालिबान के मकसद के पक्ष में” एक व्यापक एजेंडे का हिस्सा है.

उन्होंने कहा, “ये आरोप मिशन पर कब्ज़ा करने के तालिबान के मकसद के पक्ष में राजनयिक कर्मियों और नीतियों को प्रभावित करने के उद्देश्य से एक व्यापक एजेंडे का हिस्सा प्रतीत होते हैं. यह टाइमिंग इन दावों के पीछे के उद्देश्यों पर सवाल उठाता है, खासकर जब उन्हें एक महत्वपूर्ण अवधि के बाद उठाया जा रहा हो,”

उन्होंने कहा, “संसाधनों और लॉजिस्टिक मामलों पर मिशन का सीमित अधिकार हमारे लिए भ्रष्ट गतिविधियों में शामिल होने की संभावना को कम करता है.”

दिप्रिंट ने विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची से पूछा कि क्या भारत सरकार राजदूत के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रही है, लेकिन उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

‘बर्खास्त’ अफगान कर्मचारी विरोध में शामिल नहीं होंगे

दिप्रिंट को यह भी पता चला है कि चार अफगान कर्मचारियों – एक कांसुलर कार्यालय में, दो शिक्षा और मीडिया विभाग में और एक रिसेप्शनिस्ट – को कथित तौर पर शुक्रवार को उनकी शिफ्ट समाप्त होने के बाद छोड़ने के लिए कहा गया था.

नाम न छापने की शर्त पर एक कर्मचारी ने दिप्रिंट को बताया, “शुक्रवार शाम करीब 4 बजे जब मेरी शिफ्ट ख़त्म हुई, तो मुझे नौकरी से निकाल दिया गया और कहा गया कि अपना सामान पैक करो और निकल जाओ. मैं आश्चर्यचकित था क्योंकि मैं यहां लगभग तीन वर्षों से काम कर रहा हूं, और मुझे कोई नोटिस नहीं दिया गया.

यह पूछे जाने पर कि क्या वह अपने भारतीय सहयोगियों द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन में शामिल होंगे, वर्कर ने कहा, “मैं उनके विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं होऊंगा. मैं अपने काम को लेकर भावुक नहीं हो सकता. यह उचित नहीं होगा.”

32 वर्षीय अफगान कर्मचारी ने कहा कि वह पिछले छह महीने से भारत सरकार द्वारा अपना वीजा बढ़ाए जाने का इंतजार कर रहा है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “मैं यहां शरणार्थी के दर्जे पर रह रहा हूं. मुझे शायद डिलीवरी एजेंट या कैब ड्राइवर के रूप में अंशकालिक नौकरी तलाशनी होगी.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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