नई दिल्ली: अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसएटी) के खिलाफ अपराधों में पिछले साल की अपेक्षा 2020 में क्रमश: 9.4 प्रतिशत और 9.3 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई. ये खुलासा बुधवार को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ओर से जारी डेटा में हुआ है.
लेकिन रिपोर्ट में कहा गया कि महिलाओं के प्रति अपराधों में 8.3 प्रतिशत की कमी देखी गई है.
पिछले साल एससी के खिलाफ अपराधों के कुल 50,291 मामले दर्ज किए गए. 2019 में ये संख्या 45,961 थी. इस बीच 2020 में एसटी के खिलाफ अपराध के कुल 8,272 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2019 में ये संख्या 7,570 थी.
2020 में 16,543 मामलों (32.9 प्रतिशत) के साथ, एससी के खिलाफ अपराध और उत्पीड़न में सबसे अधिक संख्या ‘मामूली चोट’ की थी, जिसके बाद दूसरी सबसे अधिक संख्या एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम (4,273 मामले या 8.5 प्रतिशत) और आपराधिक रूप से धमकाने (3,788 मामले या 7.5 प्रतिशत) के मामलों की थी.
एसटी के खिलाफ अपराध और उत्पीड़न के सबसे अधिक मामले (2,247 केस या 27.2 प्रतिशत) ‘मामूली चोट’ के थे- जिसके बाद बलात्कार- 1,137 मामले (13.7 प्रतिशत) और शील भंग करने के उद्देश्य से महिलाओं पर हमले (885 केस या 10.7 प्रतिशत) थे.
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मध्य प्रदेश, राजस्थान में अपराध दर सबसे अधिक
मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार में एससी के खिलाफ सबसे अधिक आपराधिक दर दर्ज की गई. शहरों में, कानपुर और जयपुर में सबसे ऊंची दर देखी गई.
केरल, राजस्थान और तेलंगाना में एसटी के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए.
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महिलाओं के साथ अपराध
2020 के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 3,71,503 मामले दर्ज किए गए, जो 2019 (4,05,326 मामलों) से 8.3 प्रतिशत कम थे. पश्चिम बंगाल और ओडिशा में सबसे अधिक बढ़ोतरी देखी गई.
उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक गिरावट देखी गई- 2020 में 49,385 मामले थे, जिनकी संख्या 2019 में 59,853 थी. दिल्ली में भी गिरावट देखी गई- 2020 में कुल 10,093 मामले दर्ज हुए, जबकि 2019 में ये संख्या 13,395 थी.
‘पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा यातना के मामले सबसे अधिक (30 प्रतिशत) थे, जिसके बाद ‘शील भंग करने के उद्देश्य से महिलाओं पर हमले’ (23 प्रतिशत), महिलाओं के अपहरण (16.8 प्रतिशत) और बलात्कार (7.5 प्रतिशत) के मामले थे.
लेकिन, अपराध की दर (प्रति एक लाख महिला) में कमी देखी गई- 2020 में ये 56.5 प्रतिशत रही, जबकि 2019 में ये 62.3 प्रतिशत थी.
एनसीआरबी रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि पिछले साल मार्च-मई से लॉकडाउन के दौरान महिलाओं, बच्चों तथा वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ अपराधों, चोरी, सेंधमारी, लूट और डकैती की वारदातों में भी कमी देखी गई.
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