लखनऊ: साल 2013 में मुजफ्फरनगर के कवाल में 2 भाइयों की हत्या के मामले में मुजफ्फरनगर कोर्ट ने 7 आरोपियों को उम्र क़ैद की सजा सुनाई है. बता दें कि दोनों भाई ( गौरव और सचिन) की 27 अगस्त 2013 को हत्या की वारदात के बाद मुज़फ्फरनगर में दंगा हो गया था. कवाल गांव में दंगों के मामले में 7 लोगों- मुजम्मिल, मुजस्सिम, फुरक़ान, नदीम, जहांगीर, अफ़जल और इक़बाल को दोषी ठहराया गया था जिन पर ये फैसला आया है. हालांकि अब ये पक्ष मामले को हाइकोर्ट में ले जाने की तैयारी कर रहा है.
वहीं इस मामले में सरकारी वकील आशीष कुमार त्यागी ने बताया कि साल 2013 में सचिन और गौरव नाम के दो युवकों और आरोपियो में मोटरसाइकिल की टक्कर के बाद विवाद हो गया था.इसमें दोनों युवकों की हत्या कर दी गई थी. आरोपी पक्ष के शाहनवाज की भी इस दौरान मौत हो गई थी जिसके बाद से मुजफ्फरनगर और शामली में सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा था.
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मृतक गौरव के पिता ने जानसठ कोतवाली में कवाल के मुजस्सिम, मुजम्मिल, फुरकान, नदीम, जहांगीर, अफजाल और इकबाल के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कराया था. वहीं, मृतक शाहनवाज के पिता ने भी सचिन और गौरव के अलावा उनके परिवार के 5 सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। हालांकि स्पेशल इन्वेस्टिगेशन सेल ने जांच के बाद शाहनवाज हत्याकांड में एफआर (फाइनल रिपोर्ट) लगा दी थी.
कई केस वापस ले रही सरकार
योगी सरकार की ओर से मुजफ्फरनगर जिला प्रशासन को इन दंगों के दौरान दर्ज हुए 18 मुकदमों को वापस लेने के लिखित आदेश दिए हैं.ये मामले दंगा, आर्म्स एक्ट और डकैती के आरोपों के तहत दर्ज किए गए थे. कोई भी जनप्रतिनिधि उनमें से किसी में भी आरोपी नहीं है. हालांकि कई जानकार इसे जाटों को साधने के लिए योगी सरकार की सियासी चाल भी बता रहे हैं.
कई दिनों से चल रहा था प्रयास
साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों में हत्या, लूट डकैती, रेप आगजनी आदि गंभीर धाराओं में 500 से ज्यादा मुकदमे लिखे गए थे. 4500 से ज्यादा लोग नामजद और 1480 लोग गिरफ्तार हुए थे. एसआईटी की जांच में 54 मुकदमों में 418 लोगों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया. 175 मामलों में चार्जशीट दाखिल हुई थी.
बता दें कि कि पिछले वर्ष फरवरी महीने में पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद संजीव बालियान के नेतृत्व में खाप चौधरियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर मुकदमों की वापसी की मांग की थी. जिसके बाद कुछ लोगों को राजनीति का शिकार मानते हुए सरकार ने मुकदमे वापस लेने का आश्वासन दिया था. इन दंगों में योगी सरकार में मंत्री सुरेश राणा, पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बलियान, सांसद भारतेंदु सिंह और पार्टी नेता साध्वी प्राची के खिलाफ भी मामले दर्ज हैं. हालांकि जिन 18 मुकदमों को वापस लिया जा रहा है उनमें से कोई नेता के खिलाफ नहीं है.
ये थी दंगे की वजह
27 अगस्त 2013 को मुजफ्फरनगर जिले के जानसठ कस्बे के गांव कवाल में सचिन, गौरव व शाहनवाज की हत्या हुई जिसके बाद हिंसा भड़की थी. हालांकि तब कहा गया कि छेड़छाड़ की वजह से दो पक्षों के बीच तनाव फैला. कई लोग बाइक टक्कर का मामला भी बताते हैं. इसके बाद जिले में दोनों समुदायों की महापंचायतें होने लगी.
7 सितंबर 2013 को सिखेड़ा के नंगला मंदौड़ कॉलेज के मैदान में हुई बहू-बेटी सम्मान बचाओ रैली की समाप्ति के बाद जनपद में कई जगह दंगे भड़क उठे. दंगे में 60 लोगों की मौत हुई, वहीं हजारों लोगों को पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा था. दंगे के बाद हत्या, हमला, आगजनी, तोड़फोड़, हिंसा, बलात्कार आदि के पांच सौ से अधिक मुकदमे दर्ज हुए थे, जिनमें साढ़े छह हजार से अधिक लोगों को नामजद किया गया था.इनमें 1,480 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था.
तत्कालीन सपा सरकार ने दंगों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया था, जिसने सुबूतों के अभाव में 54 मुकदमों में 418 लोगों को बरी कर दिया था. एसआईटी ने शेष मुकदमों में से 175 में चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की थी. इनमें से 50 मुकदमे कवाल कांड से संबंधित थे, जबकि 125 मुकदमे दंगे के दौरान हिंसा, तोड़फोड़, आगजनी, पथराव व अन्य मामलों के थे, जो पुलिस की ओर से दर्ज किए गए थे.