scorecardresearch
Sunday, 3 November, 2024
होमदेशअपराधपुलिस ने दिल्ली दंगों के आरोपियों को गंभीर चार्जेज की जानकारी नहीं दी, मनमाने ढंग से तोड़े नियम: वकील

पुलिस ने दिल्ली दंगों के आरोपियों को गंभीर चार्जेज की जानकारी नहीं दी, मनमाने ढंग से तोड़े नियम: वकील

पुलिस ने जमानत मिलने के बाद गिरफ्तार पिंजरा तोड़ के सदस्यों के खिलाफ अतिरिक्त आरोप लगाए. वकीलों का कहना है कि ऐसा दिल्ली के अन्य दंगों की गिरफ्तारी में भी देखा गया है.

Text Size:

नई दिल्ली: पिछले शनिवार, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पिंजरा तोड़ की सदस्य देवांगना कलिता और नताशा नरवाल एवं पीएचडी छात्रों को पूर्वोत्तर दिल्ली में फरवरी के दंगों के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है.

पुलिस के मुताबिक उन पर जाफराबाद में एक लोक सेवक को उसकी ड्यूटी (एफआईआर 48/20) का निर्वहन करने से रोकने का आरोप लगाया गया, और अगले दिन, रविवार, 24 मई को ड्यूटी मजिस्ट्रेट अजीत नारायण ने जमानत दे दी थी.

हालांकि, जमानत के आदेश के कुछ ही मिनटों में, उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया, जब दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने एक और प्राथमिकी (संख्या 50/20) तैयार की, जिसमें शस्त्र अधिनियम के साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या का आरोप लगाया गया. अदालत ने पुलिस को पूछताछ के लिए 15 मिनट दिए, तो पुलिस ने इसके लिए 14 दिन की हिरासत मांगी, लेकिन न्यायाधीश ने दो दिन की हिरासत दी, बाद में और दो दिन बढ़ा दिए.

कलिता और नरवाल का यह पहला मामला नहीं हैं. दिल्ली के दंगों के मामलों में गिरफ्तार किए गए लोगों के वकीलों का दावा है कि ज्यादातर गिरफ्तारियां उन एफआईआर के तहत की गई हैं, जिसमें उन्हें मामूली अपराधों के लिए आरोपित किया गया है, और बाद में, जमानत की सुनवाई के दौरान अतिरिक्त प्राथमिकी तैयार की गईं, जिनमें से सभी आरोपियों या उनके वकील को नहीं बताया गया. उन्होंने गिरफ्तारी की प्रक्रियाओं के उल्लंघन का भी आरोप लगाया.

लेकिन दिल्ली पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव ने कहा कि किसी भी मामले में किसी व्यक्ति के शामिल होने का पता लगाने में समय लगता है, यही वजह है कि आरोप बाद में जोड़े गए.

श्रीवास्तव ने दिप्रिंट को बताया, ‘किसी व्यक्ति के शामिल होने या न होने के मामला तब स्पष्ट होता जब जांच आगे बढ़ती है, जो हमेशा गिरफ्तारी के वक्त स्पष्ट नहीं होता है.’

उन्होंने कहा, ‘हमने दिल्ली दंगों के संबंध में 752 एफआईआर दर्ज की हैं. यह एक अत्यंत संवेदनशील मामला है… और जांच को देखते हुए इस बारे में पक्षपात न हो इसलिए प्रगति का खुलासा नहीं किया जा सकता’.


यह भी पढ़ेंः आरटीआई से खुलासा- 23 मार्च तक भारत आने वाले महज 19 फीसदी यात्रियों की स्क्रीनिंग की गई


कलिता और नरवाल की गिरफ्तारी

कलिता और नरवाल को जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पर 22 फरवरी के विरोध-प्रदर्शन के सिलसिले में पूछताछ का नोटिस मिला था. स्पेशल सेल उनके आवासों पर पूछताछ कर रही थी जब शनिवार को जाफराबाद पुलिस के अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार किया.

उन्हें पहले ड्यूटी मजिस्ट्रेट अजित नारायण के सामने रविवार को पेश किया गया, जिन्होंने उन्हें जमानत देते हुए कहा, ‘मामले के तथ्यों से पता चलता है कि आरोपी केवल सीएए और एनआरसी के खिलाफ विरोध कर रहे थे और वे किसी भी हिंसा में शामिल नहीं थे.’

हालांकि, पिंजरा तोड़ ने सोमवार को एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया था, ‘इस आदेश के तुरंत बाद, दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के पुलिस अधिकारियों ने एक ताजा आवेदन तैयार किया जिसमें एफआईआर 50/20 पीएस अपराध शाखा की ओर से गिरफ्तारी और 14 दिन की पुलिस हिरासत की मांग की गई.’

इस एफआईआर में आर्म्स एक्ट और प्रिवेंशन ऑफ डैमेज टू प्राइवेट प्रॉपर्टी एक्ट के साथ-साथ हत्या के आरोप शामिल थे.

रविवार दो दिनों की हिरासत की अनुमति देने के अदालत के आदेश के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने कहा था, ‘अभियुक्तों से पूछताछ किए जाने की जरूरत है, जिससे कि इसके पीछे की साजिश का पता लग सके.’ इसके बाद मंगलवार को इसे दो दिन के लिए और बढ़ा दिया गया.

अतिरिक्त प्राथमिकी के बारे में पूछे जाने पर, पूर्वोत्तर दिल्ली के लिए संयुक्त पुलिस आयुक्त, आलोक कुमार ने कहा, ‘हमने उन्हें (नरवाल और कलिता) एक प्राथमिकी के आधार पर गिरफ्तार किया था, जिसके तहत उन्हें जमानत मिली थी. दूसरी एफआईआर के बारे में केवल क्राइम ब्रांच ही बता सकती है.’

दिप्रिंट फोन और मैसेज के जरिए क्राइम ब्रांच के डीसीपी जॉय तिर्की तक पहुंची लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के समय तक उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. दिल्ली पुलिस के पीआरओ से ईमेल के करके सवाल पूछे गए, हालांकि, अभी तक उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.

बाकि आरोपों के लिए यही पैटर्न

दिल्ली दंगों से जुड़े अधिक गंभीर आरोप लगाने के मामले में अतिरिक्त प्राथमिकी का ऐसा ही पैटर्न पिछली गिरफ्तारियों में नोट किया गया था, जैसे कि जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र सफूरा ज़रगर की.

जामिया की एक अन्य छात्रा की तरफ से अधिवक्ता अकरम खान ने कहा, ‘सफूरा को स्पेशल सेल ने 48/20 के तहत गिरफ्तार किया था, लेकिन जब उसे मामले में जमानत मिली, तो स्पेशल सेल ने एफआईआर 59/20 दर्ज की, जिसमें यूएपीए को बाद में जोड़ा गया. मीरान हैदर को इसी एफआईआर 59/20 के तहत गिरफ्तार किया गया.

पूर्व कांग्रेस पार्षद इशरत जहां को भी 26 फरवरी को पहली बार खुरेजी में एक विरोध-प्रदर्शन से संबंधित एफआईआर के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था. उसके मामले को जानने वाले एक वकील ने अपनी पहचान ना जाहिर करने की शर्त पर बताया, ‘21 मार्च को, जब उसे विरोध प्रदर्शन के मामले में जमानत दी गई थी, तो हत्या और आगजनी के आरोपों में एफआईआर 59/20 में 24 धाराएं जोड़ी गईं. उन्होंने इस तरह से उसकी हिरासत बढ़ाई और बाद में यूएपीए को अप्रैल में लगाया गया’.


यह भी पढ़ेंः ‘महामारी में कोविड के कर्व की जगह विरोध फ्लैट करना केंद्र की प्राथमिकता’- कन्हैया, उमर, मेवानी ने छात्रों की गिरफ्तारी पर सरकार को घेरा


पुलिस ने कलिता, नरवाल, जरगर, शफी और जहान के अलावा जामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा और गुलफिशा फातिमा को गिरफ्तार किया है, साथ ही जामिया के पूर्व छात्र संघ के अध्यक्ष शिफा-उर-रहमान और एक्टिविस्ट खालिद सैफी को दंगों के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था जबकि देश लॉकडाउन में है.

जरगर, शफी, फातिमा, तन्हा और शिफा-उर-रहमान पर यूएपीए के तहत आरोप जड़ा गया है और जेल में हैं, जबकि जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद पर कड़े कानून दर्ज किए गए हैं, लेकिन गिरफ्तार नहीं किया गया है.

गिरफ्तारियों पर एससी की दिशा-निर्देशों का उल्लंघन

1996 में, डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी और हिरासत के लिए 11 दिशा-निर्देश तय किए थे, दिशा-निर्देशों में एक गिरफ्तारी ज्ञापन प्रस्तुत करना शामिल है, जिसमें गिरफ्तारी का आधार बताना शामिल हैं, और गिरफ्तार शख्स को एक वकील करने की अनुमति देता है.

हालांकि, वकीलों का दावा है कि दिल्ली दंगों के मामलों में इन दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है. उदाहरण के लिए, इशरत जहां के मामले में, खुरेजी विरोध स्थल से गिरफ्तारी के बाद, पुलिस ने कथित तौर पर उसे उन आरोपों को बताने से इंकार कर दिया जिसके तहत उसे गिरफ्तार किया गया था, और उन वकीलों को अनुमति नहीं दी थी जो उनसे मिलने के लिए वहां इकट्ठा हुए थे.

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अवनी बंसल ने कहा, ‘हमें शुरू में इशरत और अन्य बंदियों से मिलने की भी अनुमति नहीं थी. पुलिस हमें स्टेशन के अंदर घुसने नहीं देती. उन्होंने हमारे साथ भी दुर्व्यवहार किया’.

गुलफिशा फातिमा के मामले में, उसे पहली बार एफआईआर 48/20 के तहत जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पर भीड़ को उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, जिसके लिए उसे 13 मई को जमानत दी गई थी लेकिन उसके वकीलों का दावा है कि उसके खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए थे और यूएपीए को जड़ा गया था.

‘गुलफिशा के खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए हैं. यहां तक ​​कि अगर आरोप सही थे, तो आप यूएपीए जैसे आतंकी गतिविधि के आरोपों को कैसे लगा सकते हैं? यूएपीए को गलत तरीके से लागू करना भी एक अपराध है और हम इसे सामने लाएंगे.’ उनके वकील, महमूद प्राचा ने कहा.

मीरान हैदर के मामले में, उन्हें पहले दंगों से संबंधित और घातक हथियार रखने के मामले में आईपीसी की धारा 147 से 149 के तहत गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उनके वकील अकरम खान को यूएपीए के आरोप के बारे में नहीं बताया गया, जब तक कि वे अदालत नहीं चले गए.

खान ने कहा, ‘जबकि राजद्रोह सहित अन्य आरोपों को जांच के दौरान जोड़ा गया, यह केवल तब हुआ जब हमें अदालत से जमानत दी गई, हमें पता चला कि उन्होंने यूएपीए के तहत चालान किया है. अब तक, एफआईआर 59/20 में केवल 147-149 और अन्य जमानती अपराधों के तहत धाराओं का उल्लेख है.’

वकीलों ने प्रक्रियात्मक खामियों की भी बात कही है. अवनी बंसल ने पूछा, ‘तथ्य यह है कि जिन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है, उन्हें पर्याप्त रूप से सूचित नहीं किया जा रहा है, कानून की प्रक्रिया का यह घोर उल्लंघन है. पुलिस चालाकीपूर्ण उपायों का इस्तेमाल कर रही है, लेकिन जजों ने यह बात क्यों नहीं कही?’


यह भी पढ़ेंः दिल्ली दंगा: पुलिस ने फरवरी में हुए सीएए विरोधी प्रदर्शन के लिए पिंजरा तोड़ की दो सदस्यों को किया गिरफ्तार


चुनिंदा तौर पर उत्पीड़न

मामलों से गैर संबद्ध वकीलों ने भी पुलिस द्वारा अपनाई गई रणनीति पर सवाल उठाए हैं.

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सुरुचि सूरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकारी इन नई एफआईआर को ट्रम्प कार्ड के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं और गिरफ्तारी के लिए नियमों तोड़ रहे हैं. यह सुनिश्चित करने के लिए कि यदि जमानत दी जाती है, तो गिरफ्तारी को किसी अन्य आधार पर अनिवार्य बनाया जाए.’

उन्होंने कहा, ‘यह सुनिश्चित करने में अनावश्यक दक्षता दिखाई जा रही है कि जमानत देने के एक ही दिन में अधिकारियों के पास एक और आवेदन तैयार रहे, यह दर्शाता है कि कानून की प्रक्रिया का उपयोग चुनिंदा तौर पर आरोपी का उत्पीड़न किया जा रहा है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments