रांची: झारखंड के खूंटी जिले की एक बच्ची को दलाल ने सात साल पहले दिल्ली में बेच दिया था. उसके यहां एक साल तक काम किया, भागने की कोशिश की तो दलाल ने फिर उसे दिल्ली के ही कुंवर सिंह नगर में शिफ्ट कर दिया. यहां 10 लड़कों ने उसके साथ रेप किया, और यह सिलसिला छह सालों तक चलता रहा. कई दिनों तक एक ही कमरे में बंद रखा गया. कुछ दिनों बाद फिर किसी और जगह काम पर लगाया जाता था. यहां भी शारीरिक शोषण.
जब भी उसने भागने की कोशिश की, उसे जमकर पीटा जाता. 6 महीना पहले दिल्ली के ही रोहिणी सेक्टर-11 में उसे किसी और के घर काम पर रखा गया. यहां मकान मालकिन ने जब उसकी कहानी सुनी तो तत्काल दिल्ली महिला आयोग को सूचित किया. बीते 6 सितंबर को वह बरामद की गई है. फिलहाल झारखंड लौटने का इंतजार कर रही है.
इस बच्ची के अलावा मानव तस्करी के शिकार 66 बच्चे और हैं दिल्ली में. इसमें 56 लड़कियां और 10 लड़के हैं. ये बच्चे बीते कुछ महीने और सालों में दिल्ली पुलिस, महिला आयोग, एनजीओ आदि के सहयोग से बरामद हुए हैं. इन्हें दिल्ली के ही विभिन्न बालगृहों में रखा गया है. तब से अब तक ये इसी इंतजार में हैं कि कोई आएगा और इन्हें घर ले जाएगा. इस इंतजार के बीच किसी की मां मर गई है, तो किसी के पिता. लेकिन झारखंड सरकार को इन्हें लाने में जैसी तत्परता दिखानी चाहिए वह नहीं दिखा रही है.
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किसी को काम के बहाने तो किसी को चुराकर बेच दिया गया
रांची के तिलता गांव की बुधनी उराइन (41) की बेटी को 11 साल पहले कोई लेकर चला गया. सालों तक इन्हें पता ही नहीं चला कि इनकी बच्ची कहां गई. बेटी की तलाश करती रहीं, इस बीच इनके पति की मौत हो गई. अकेली मां के ऊपर दो बेटी और दो बेटों के पेट पालने की जिम्मेदारी आ गई. एक दिन अचानक बेटी का फोन आया. उसने बताया कि जिस व्यक्ति ने उसे दिल्ली लाकर छोड़ दिया है, उसने धमकी दी है कि अगर तुम्हारी मां पुलिस के पास गई तो घर में जो भी है, सबको मार देंगे. इसलिए तुम लोग पुलिस के पास मत जाना.
उसने यह भी बताया कि वह दिल्ली में कहीं है. जगह के बारे में उसे पता नहीं. बुधनी उराइन के पास कुछ बकरी, मुर्गे हैं. इसके अलावा वह दिहाड़ी मजदूरी कर बच्चों को पाल रही हैं और बेटी के आने का आज भी इंतजार कर रही हैं. फिलहाल बच्ची चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडबल्यूसी) दिलशाद गार्डेन की निगरानी में है.
रांची से 415 किलोमीटर दूर साहेबगंज जिले के श्रीरामपुर गांव की ठकराइन सोरेन बीते चार सालों से लापता है. उसके पिता मर चुके हैं. मां एक पुरानी फोटो के सहारे बेटी के लौटने का इंतजार कर रही हैं. ठकराइन के घर के पड़ोस में रह रहे हृदय सोरेन की एक बेटी लुक्खी सोरेन भी इतने ही समय से गायब है. दोनों बच्चियों को सृजन मुर्मू नामक व्यक्ति लेकर गया. इसके बाद से वे गायब हैं. हालांकि इनके बरामदगी की अभी तक कोई सूचना नहीं है. न ही जानकारी है के अभाव में परिजनों ने पुलिस को सूचना दी है.
रांची जिला मुख्यालय से 41 किलोमीटर दूर महुआजाड़ी गांव के रामदेव उरांव की बेटी जब आठ साल की थी, तभी उसे गांव में किरायेदार के तौर पर रहने आई एक महिला काम कराने के बहाने लेकर चली गई. कुछ साल बाद उन्हें खबर मिली की उनकी बेटी दिल्ली में है. इस बीच कभी-कभार फोन पर बात हो जाया करती थी लेकिन बेटी केवल हां या न में ही जवाब देती थी. एक दिन वह फोन पर रोने लगी. परेशान पिता उसे लेने दिल्ली चले गए लेकिन मकान मालकिन ने कहा कि उनकी बेटी पार्क चली गई है, कौन से पार्क या कब आएगी इसके बारे में पता नहीं. साथ ही यह भी कहा कि यहां से चले जाइए, अगर मिलना हो तो चार दिन बाद आइएगा, तब तक स्टेशन पर जाकर सो सकते हैं.
पहली बार गांव से बाहर निकले, परेशान पिता लौट कर घर आ गए. 2 महीने पहले इनकी पत्नी की मौत हो गई. उस वक्त भी बेटी से बात हुई कि घर आ जाओ, लेकिन उसकी मालकिन ने उसे आने नहीं दिया. फिलहाल उनकी बेटी सीडबल्यूसी कालकाजी, दिल्ली की निगरानी में है.
रांची जिला मुख्यालय से 36 किलोमीटर दूर मुरेठा गांव के शिवधन भोक्ता (64) की बेटी तीन साल पहले गायब हो गई थी. बहुत दिन बाद पता चला कि उसे एक रिश्तेदार काम कराने दिल्ली लेकर गए हैं. बकरी पाल और जंगल की लकड़ी बेच गुजारा करने वाले पिता को भी लगा कि यहां तो बेटी को खिलाने को भी लाले पड़े थे, ठीक ही है कहीं काम कर रही है. लेकिन न तो इस बच्ची को काम के बदले पैसा मिलता था, न ही उसके पिता शिवधन को. यह भी दिल्ली के निर्मल छाया सीएचजी-1 होम में है.
कोई 4 साल तो कोई 6 महीने से कर रहा इंतजार
बीते 28 जुलाई को झारखंड सरकार महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने घोषणा की कि इन बच्चों को एयरलिफ्ट कराया जाएगा. जुलाई 30 तक ये बच्चे रांची आ जाएंगे लेकिन अभी तक ये दिल्ली में ही हैं. विभाग के निदेशक डीके सिंह कहते हैं, इन बच्चों को लाने की प्रक्रिया चल रही है. जिन लोगों को लाना है, उनको जिम्मेदारी दे दी गई है. जल्द ही ये वापस आएंगे. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि देरी किस वजह से हो रही है.
वहीं नई दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता और झारखंड के इन बच्चों की बरामदगी में अहम भूमिका निभाने वाले जेआर शरण कहते हैं कि इन बच्चों के घर न लौटने की एकमात्र वजह झारखंड सरकार के अधिकारी हैं. जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के मुताबिक बरामदगी के 6 महीने के भीतर सोशल ऑडिट रिपोर्ट तैयार करना होता है. साथ ही इसी 6 महीने के दौरान अपने राज्य भेज देना होता है. दिल्ली के कई बालगृह में झारखंड के बच्चे हैं. इनमें किसी को तीन तो किसी को चार साल पहले रेस्क्यू किया गया है.
बीते 5 सालों में 1031 नाबालिग बच्चे हुए हैं मानव तस्करी का शिकार
मानव तस्करी को लेकर झारखंड सरकार कितनी गंभीर है इसको इन आंकड़ों से समझिये. राज्य के 24 जिलों में मात्र आठ जिलों रांची, खूंटी, सिमडेगा, लोहरदगा, गुमला, चाईबासा, दुमका और पलामू में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट बनाई गई थी. 2019 में इन थानों में मात्र 47 एफआईआर ही दर्ज हुई हैं. वहीं 2015-19 तक इन थानों में मात्र 490 एफआईआर दर्ज हुईं हैं.
मुख्यमंत्री श्री @HemantSorenJMM ने लातेहार, साहेबगंज, गोड्डा व गिरिडीह में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट के गठन संबंधी प्रस्ताव को स्वीकृति दी है। इन इकाईयों द्वारा अवैध मानव व्यापार की रोकथाम, रक्षा तथा अपराध एवं अपराधियों/ गिरोहों से संबंधित पूरा ब्योरा तैयार किया जाएगा।
— Office of Chief Minister, Jharkhand (@JharkhandCMO) August 24, 2020
बीते 24 अगस्त को सीएम हेमंत सोरेन ने लातेहार, साहिबगंज, गोड्डा और गिरिडीह में एएचटीयू के गठन की मंजूरी दी है. यानी अभी भी 12 जिले इससे बाहर हैं. जबकि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के नए आंकड़ों के मुताबिक 2018 में झारखंड में 359 बच्चे मानव तस्करी के शिकार हुए हैं. वहीं 2017 में 420 और 2016 में 479 बच्चे इसके शिकार हुए हैं. एनसीआरबी के इसी आंकड़ों के मुताबिक देशभर में 2016-18 तक कुल 1,93,890 बच्चे गायब हुए हैं. वहीं स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2020 के मुताबिक भारत में अब तक 4.6 करोड़ लड़कियां लापता हैं. जबकि दुनियाभर में 14.2 करोड़ लड़कियों का पता नहीं.
वहीं झारखंड पुलिस की ओर से मिले आंकड़ों के मुताबिक 2019 में कुल 377 बच्चे गायब हुए हैं. इसमें 229 को बरामद किया गया है, 148 अब भी गायब ही हैं. इसी आंकड़े के मुताबिक 2015 से 2019 तक 18 साल से कम उम्र की 645 लड़कियां और 386 लड़के मानव तस्करी के शिकार हुए हैं. ये हालात तब हैं जब अधिकतर मामले तो दर्ज ही नहीं होते हैं.
बाल अधिकार कार्यकर्ता बैद्यनाथ कुमार कहते हैं दिल्ली स्थिति झारखंड भवन में भी एक एएचटीयू खुले, जहां जीरो एफआईआर दर्ज हो. यहां पुलिस बल की तैनाती हो. क्योंकि झारखंड के बच्चों को सबसे अधिक दिल्ली में ही बेचा जा रहा है. मानव तस्कर झारखंड से लाकर दिल्ली के किसी प्लेसमेंट एजेंसी को बेच देता है. कई बार तस्कर गिरफ्तार भी हो जाते हैं, लेकिन इन एजेंसियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती है.
ये बच्चे हर दिन, हर साल बेचे जा रहे हैं. शिकार सबसे अधिक नाबालिग और आदिवासी लड़कियां हो रही हैं. इस मसले पर सरकार योजनाएं तो बनाती है, पर सिस्टम की हीला-हवाली के चक्कर में न जानें कितने और बच्चे मानव तस्करी के शिकार होंगे. जाने कब इस पर लगाम लगेगी.
(आनंद दत्ता स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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सरकार और मीडिया जिस तरह से सुशांत सिंह राजपूत और कंगना रनोत केस में सतर्कता दिखा रहे हैं अगर उसकी दस परसेंट भी इन लापता बच्चों के बारे में दिखा दे तो शायद कोई बच्चे अपने माँ बाप से दूर ना हो।