कोलकाता : मेघालय के राज्यपाल तथागत रॉय अपने मूल राज्य पश्चिम बंगाल में सक्रिय राजनीति में वापसी के इच्छुक हैं लेकिन राज्य में अपनी पार्टी के लोगों के लिए उनकी एक ही सलाह है- गाय के गोबर और गोमूत्र को कोविड-19 वायरस के संभावित इलाज के रूप में प्रचारित करना बंद करें.
दिप्रिंट को दिए एक विशेष साक्षात्कार में 74 वर्षीय राज्यपाल, जो जादवपुर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे हैं और इसके कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग विभाग के संस्थापक प्रमुख थे, ने कहा कि गोमूत्र और गोबर के इर्द-गिर्द की पूरी बयानबाजी ‘अवैज्ञानिक’ और पार्टी नेताओं को हंसी का पात्र बनाने वाली है.
रॉय ने दिप्रिंट से कहा, ‘मुझे यह देखकर दुख और पीड़ा हो रही है कि हमारे कुछ नेताओं ने कोरोनोवायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा कवच के रूप में गोबर या गोमूत्र पीने के लिए अभियान चलाया. ऐसे सभी बयान जैसे कि गाय के दूध में सोना मौजूद होता है, पार्टी को हंसी का पात्र बनाते हैं.’
यद्यपि, रॉय ने जोर देकर कहा कि वह केवल इन विचारों पर टिप्पणी कर रहे हैं और किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं. हालांकि, वह बंगाल के भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष थे जिन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि गोमूत्र किसी को भी कोरोनोवायरस संक्रमण से बचा सकता है और पिछले साल उन्होंने दावा किया था कि गाय के दूध में सोना पाया जाता है.
रॉय ने कहा कि ऐसे ‘गो अभियानों’ ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से क्षति पहुंचाई है.
उन्होंने कहा, ‘इस विशेष अभियान के कारण मुझे व्यक्तिगत पीड़ा और शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा. मैं ट्विटर पर सक्रिय हूं और राजनीतिक सिद्धांतों और अध्ययनों पर टिप्पणी करता रहता हूं. मैंने कम्युनिस्ट हिंसा और यह बंगाल सहित विभिन्न राज्यों के लिए कैसे मुसीबत बनी, इस पर कई किताबें भी लिखी हैं.’
उन्होंने कहा, ‘इसलिए कुछ दिनों पहले, मैंने एक यूरोपीय न्यूरोलॉजिकल जर्नल में मिले एक शोध का लिंक साझा किया, जिसमें कहा गया था कि लेनिन की मृत्यु सिफिलिस के कारण हुई थी. कामरेड तथ्यों को अस्वीकार नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने मुझ पर अभद्र भाषा से हमला किया. उन्होंने मुझे गोबर और गोमूत्र पीने को कहा. यह बकवास है. मुझे यह सब क्यों सहन करना चाहिए? इस बात से मुझे काफी पीड़ा पहुंची.’
यह पूछे जाने पर कि क्या वे इस धारणा पर चल रहे हैं कि अब जबकि वह राजनीति में वापसी चाहते हैं तो उन्हें लगता है कि बंगाली ऐसे ‘गो अभियानों’ के नजरिये से मंथन करेंगे और इसलिए भाजपा की नई पीढ़ी के नेताओं से दूरी बनाना चाहते हैं, रॉय ने कहा, ‘गोमूत्र पीने का यह पूरा अभियान अवैज्ञानिक है. यह बंगाल या यूपी या हिंदी पट्टी के संदर्भ में नहीं है. यह पूरे देश के लिहाज से अवैज्ञानिक रहेगा.’
हालांकि, उन्होंने यह स्पष्ट किया कि वह राज्य में 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सक्रिय राजनीति में लौटने पर विचार कर रहे हैं.
‘अब बंगाल की राजनीति में वापसी चाहेंगे’
मेघालय के राज्यपाल के रूप में रॉय का कार्यकाल 20 मई को समाप्त हो गया लेकिन उन्हें कोविड-19 महामारी के कारण फिलहाल पद पर बने रहने को कहा गया है.
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लेकिन भाजपा की बंगाल इकाई के पूर्व अध्यक्ष (2002-06) ने कहा कि वह अब अपने गृह राज्य लौटने के इच्छुक हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैं राजनीति का कीड़ा हूं और कभी खुद को राजनीति से बाहर नहीं करना चाहता था. मुझे कुछ कारणों से राज्यपाल बनाया गया. मुझे इस फैसले की जानकारी दी गई और एक अनुशासित व्यक्ति के रूप में मैंने इसे स्वीकार कर लिया.’
‘लेकिन अब जब मैंने राज्यपाल के रूप में पांच साल पूरे कर लिए हैं, तो राजनीति में लौटना चाहता हूं, जिसमें मैंने अपने जीवन के 25 साल लगाए हैं. मैं तब भाजपा के साथ हुआ करता था जब राज्य में भगवा की ताकत बढ़ने के बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था. मेरे मित्र और सहयोगी तब मेरा मजाक उड़ाते थे, लेकिन मैंने हमेशा पार्टी और उसकी विचारधारा पर भरोसा किया.’
रॉय ने आगे कहा कि उन्होंने पिछले साल केंद्रीय मंत्री अमित शाह के साथ मुलाकात के दौरान राजनीति में फिर लौटने की अपनी इच्छा जाहिर की थी जब वे शाह की नियुक्ति के बाद उनसे दिल्ली में मिले थे. उन्होंने बताया, ‘मैंने अपनी भावना व्यक्त की. वह मुस्कुराए. पार्टी के कई शीर्ष नेता मेरी इच्छा के बारे में जानते हैं. मैं पार्टी के फैसले का इंतजार करूंगा अगर वे मुझे वापस लाते हैं, तो मैं काम करूंगा. अगर वे मेरी उम्र का हवाला देकर ऐसा नहीं करेंगे तो कुछ और करूंगा.’
राज्यपाल ने जोर देकर कहा कि संवैधानिक पद धारण करने के बाद सक्रिय राजनीति में फिर से शामिल होने में ‘कानूनी और संवैधानिक’ रूप से कुछ गलत नहीं है और पहले भी इसके कई उदाहरण हैं. ‘अर्जुन सिंह, शीला दीक्षित से लेकर मोतीलाल वोरा तक कई ऐसे राजनेता हैं, जिन्होंने राज्य के राज्यपाल के तौर पर अपनी पारी पूरी करने के बाद सक्रिय राजनीति में वापसी की. इसलिए अब सब पार्टी के हाथ में है.’
राज्यपाल के रूप में रॉय का कार्यकाल विवादों के बिना नहीं रहा है क्योंकि भाजपा नेता सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील मसलों पर ट्वीट करने के लिए चर्चित हैं.
Very perceptive tweet. To this add the over-politicization of the polity in West Bengal in which every fact is perceived thru political lenses and action taken with political objectives in mind. It was started by the Left and faithfully continued by the present govt …contd https://t.co/tmyolio47K
— Tathagata Roy (@tathagata2) August 11, 2020
मंगलवार को रॉय ने लेबनान, जहां एक बड़े धमाके में 163 लोग मारे गए थे, की तुलना पश्चिम बंगाल से कर दी और कहा कि राज्य में बांग्लादेशी मुसलमानों का अवैध प्रवास समस्या बन रहा है जिसके पीछे राज्य सरकार का हाथ है.
उन्होंने 2018 में इसी तरह का विवादित बयान दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत में रहने वाले बांग्लादेशी मुसलमान अवैध प्रवासी हैं.
इसी तरह के एक और विवादास्पद ट्वीट में रॉय ने दिल्ली दंगों पर थ्येन आन मन की तरह निपटने की सलाह दे डाली थी. हालांकि बवाल मचने पर बाद में उन्होंने इस ट्वीट को हटा दिया.
इस तरह के ट्वीट पर ज्यादा बवाल इसलिए भी मचा क्योंकि राज्यपाल जैसे पद पर बैठे व्यक्ति की तरफ ऐसा कुछ करना अनुपयुक्त माना जाता है.
हालांकि, रॉय का कहना है कि संविधान कभी भी राज्यपालों को अपनी राय व्यक्त करने से नहीं रोकता. उन्होंने कहा, ‘मैंने समकालीन राजनीति पर कभी टिप्पणी नहीं की. मैंने एक विशेष राजनीतिक सिद्धांत पर राय व्यक्त की है.’
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