नयी दिल्ली, 22 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने न्यायपालिका को सचेत करते हुए कहा कि सड़कों के निर्माण जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए और अदालतों को ऐसा करने में अनिच्छुक होना चाहिए, क्योंकि ज्यादातर न्यायाधीशों के पास तकनीकी मुद्दों से जुड़े अनुबंधों पर विचार करने के लिये विशेषज्ञता नहीं है।
शीर्ष अदालत ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी झारखंड उच्च न्यायालय की एकल पीठ और खंडपीठ के दो फैसले के खिलाफ दायर अपील पर एक निर्णय देते हुए की।
उच्च न्यायालय ने 2019 में एनजी प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को झारखंड में नगरउटारी -धुरकी-अंबाखोरिया सड़क के पुनर्निर्माण के लिए मिला अनुबंध रद्द कर दिया था।
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन की पीठ ने झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए फर्म को दिए गए अनुबंध में हस्तक्षेप को “पूरी तरह से अनुचित” बताया, जिससे “जनहित को नुकसान” हुआ।
न्यायमूर्ति गुप्ता ने 22 पन्नों के अपने फैसले में कहा, “चूंकि सड़क का निर्माण एक बुनियादी ढांचा परियोजना है और विधायिका की मंशा को ध्यान में रखते हुए बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए, उच्च न्यायालय को बुनियादी ढांचा परियोजना के निर्माण पर रोक लगाने में संयम बरतने की सलाह दी जाती।”
यह देखते हुए कि सड़कों का निर्माण किसी भी राज्य में बुनियादी ढांचे के विकास का एक अनिवार्य हिस्सा है, न्यायालय ने कहा कि जिस प्राधिकरण ने निविदा दस्तावेज की जांच की है वह प्रतिस्पर्धी फर्मों के कागजात की जांच करने के लिए सबसे उपयुक्त है।
न्यायालय ने कहा, “तकनीकी मुद्दों से जुड़े अनुबंधों में, अदालतों को और भी अधिक अनिच्छुक होना चाहिए क्योंकि न्यायाधीश के तौर पर हम में से अधिकांश के पास हमारे ज्ञानक्षेत्र से परे तकनीकी मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता नहीं है।”
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प्रशांत दिलीप
दिलीप
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