नयी दिल्ली, 25 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने पर्यावरण मानदंडों के उल्लंघन में मुरादाबाद स्थित हस्तशिल्प निर्यातक पर 50 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने के राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश को खारिज कर दिया है और कहा है कि कानून का शासन राज्य या उसकी एजेंसियों को पर्यावरण मामलों में ‘एक दमड़ी भी’ वसूलने की अनुमति नहीं देता है।
प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने 22 अगस्त को अपने फैसले में कहा कि हालांकि कंपनी से पर्यावरणीय उल्लंघन हुए हैं, लेकिन उसके वार्षिक टर्नओवर के आधार पर लगाया गया जुर्माना कानूनी आधार से रहित है।
शीर्ष अदालत ने पर्यावरण मानदंडों के कथित उल्लंघन के लिए मुरादाबाद स्थित हस्तशिल्प निर्यातक सी.एल. गुप्ता एक्सपोर्ट लिमिटेड पर जुर्माना लगाने वाले एनजीटी के लंबे फैसले की भी आलोचना की।
अदालत ने नाराजगी व्यक्त की और कहा कि “दिमाग का प्रयोग” पृष्ठों की संख्या के अनुपात में नहीं था।
फैसले में आगे कहा गया कि न्यायिक निर्णय की “मूल आत्मा” विवेकपूर्ण विचार है, और अदालतों व अधिकरणों को केवल सामान्य रूप से कानून का उल्लेख करने वाले भाषणात्मक रुख अपनाने से बचना चाहिए, खासकर जब वह तथ्यों के संदर्भ के बिना हो।
पीठ ने कहा, “हम इससे अधिक कुछ नहीं कहेंगे तथा एनजीटी के आदेश को ऊपर उल्लेखित सीमा तक निरस्त करने वाली अपील को स्वीकार करते हैं।”
पीठ ने वार्षिक कारोबार के आधार पर जुर्माना लगाने के सवाल पर चर्चा करते हुए एक फैसले का हवाला दिया। एनजीटी ने उस मामले में कंपनी का राजस्व 100-500 करोड़ रुपये के बीच पाया और 500 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया।
फैसले में कहा गया, “जुर्माना लगाने के लिए एनजीटी द्वारा अपनाई गई पद्धति किसी भी विधिक सिद्धांत के तहत स्वीकार्य नहीं मानी जा सकती। हम इस टिप्पणी से पूर्णतः सहमत हैं और यह जोड़ते हैं कि कानून का शासन राज्य या उसकी एजेंसियों को, पर्यावरण से जुड़े मामलों में भी, ‘एक दमड़ी तक’ वसूलने की अनुमति नहीं देता।”
किसी भी वैधानिक या अन्य शर्तों के उल्लंघन के खिलाफ कार्यवाही करने के अधिकार क्षेत्र वाले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकार को सुरक्षित रखते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा कि एनजीटी का निर्देश रद्द किए जाने योग्य है।
पीठ ने एनजीटी के एक अन्य निर्देश को भी रद्द कर दिया, जिसमें प्रवर्तन निदेशालय को प्रदूषणकारी कंपनी के खिलाफ धन शोधन की जांच शुरू करने के लिए कहा गया था, और कहा कि हरित निकाय को एनजीटी अधिनियम 2010 की धारा 15 के तहत “शक्तियों के दायरे में कार्य करना चाहिए”।
भाषा प्रशांत रंजन
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