ढाका, बांग्लादेश: मिस्र बदलती विश्व व्यवस्था में भारत, चीन, जापान और रूस जैसे देशों पर भरोसा कर रहा है. मिस्र के शीर्ष अधिकारी अली हाउसम एल-दीन एल-हेफनी ने मध्य पूर्व और अफ्रीका में अमेरिकी प्रभाव की आलोचना करते हुए ये बातें कहीं.
एल-हेफनी अभी मिस्र की विदेश मामलों की परिषद में महासचिव के रूप में काम करते हैं. इससे पहले वह चीन, हंगरी, मैक्सिको, बेलीज और मंगोलिया में मिस्र के राजदूत के रूप में जिम्मेदारी संभाल चुके हैं.
ढाका में शुक्रवार को छठे हिंद महासागर सम्मेलन के मौके पर दिप्रिंट के साथ एक विशेष बातचीत में, एल-हेफनी ने कहा कि वह भारत और चीन के साथ अपने देश के द्विपक्षीय संबंधों को विरोधाभास के रूप में नहीं देखते हैं.
वह कहते हैं, ‘नहीं, यह विरोधाभासी नहीं है. हम हमेशा अपने हितों का पालन करेंगे.’ उन्होंने इसपर जोर देते हुए कहा कि मिस्र तेजी से बदलती विश्व व्यवस्था में एक संतुलित विदेश नीति बनाने की कोशिश कर रहा है.
उनकी टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब भारत और मिस्र ने पिछले एक साल में द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार किया है. जनवरी में, दोनों देशों ने राजस्थान में पहला संयुक्त सैन्य अभ्यास आयोजित किया था, जिसके बाद मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी ने मुख्य अतिथि के रूप में भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लिया था.
दूसरी ओर, चीन ने अफ्रीकी देशों में बड़े पैमाने पर निवेश किया है और हाल ही में लंबे समय से क्षेत्रीय दुश्मन ईरान और सऊदी अरब के बीच शांति में मदद करके मध्य पूर्व में अपने प्रभाव को बढ़ाया है.
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अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली की आलोचना
शुक्रवार को सम्मेलन में बोलते हुए, एल-हेफनी ने अमेरिका में बैंकों के पतन और मिस्र जैसे देशों पर उनके प्रभाव की आलोचना की.
उन्होंने कहा, ‘अमेरिका में ऐसे बैंक हैं जो आंशिक रूप से या पूरी तरह से दिवालिया हैं. संयुक्त राज्य की सरकार को अपना टैक्स नहीं दिए जाने का जोखिम हो सकता है.’ उनका इशारा अमेरिकी सरकार को होने वाले नुकसान की ओर था.
2008 के वित्तीय संकट के बाद से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को सबसे बड़ी मार के रूप में देखा जा रहा है. अमेरिकी नियामकों को इस साल की शुरुआत में तीन अमेरिकी बैंकों – सिलिकॉन वैली बैंक, सिग्नेचर बैंक और फर्स्ट रिपब्लिक बैंक को जमानत देनी पड़ी थी.
एल-हेफनी ने कहा, ‘यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है क्योंकि हमारे ऋणों के मूल्य में इस विचार की बढ़ोतरी हुई है कि यूक्रेन युद्ध और यूरोपीय और रूसियों के बीच प्रतिस्पर्धा आदि से हमारा कोई लेना-देना नहीं है.’
अप्रैल में, लगातार दो तिमाहियों में गिरावट के बाद, मिस्र का बाह्य ऋण तिमाही-दर-तिमाही 5.1 प्रतिशत बढ़कर 162.9 बिलियन डॉलर हो गया. मिस्र की अर्थव्यवस्था अभी भी कोविड-19 महामारी और यूक्रेन युद्ध के प्रभावों से उबर रही है.
एल-हेफनी ने कहा कि उनका देश विश्व व्यवस्था में दूसरे प्लेयर्स के साथ साझेदारी करना चाहता है. उन्होंने कहा, ‘हम चीन, भारत और जापान पर भरोसा कर रहे हैं.’
इस रिपोर्टर द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या मिस्र वास्तव में इन देशों पर भरोसा कर रहा है, मिस्र के अधिकारी ने उत्तर दिया: ‘वे बड़े बाजार हैं और हमें उनके ज्ञान और विशेषज्ञता से बहुत कुछ सीखना है. उनके पास अद्भुत शैक्षिक अवसर हैं जिनकी हमें अपने लोगों के लिए आवश्यकता है. निवेश के अवसर भी महत्वपूर्ण हैं.’
उन्होंने कहा कि 2014 से, मिस्र अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया है और ‘दुनिया के साथ अपने संबंधों में विविधता लाने’ की कोशिश कर रहा है.
उन्होंने बताया कि ग्रीन इनर्जी और ग्रीन हाइड्रोजन में निवेश के संबंध में भारत और मिस्र के बीच एक बड़ा अवसर है.
उन्होंने कहा, ‘मिस्र यूरोप के काफी करीब है और हम भूमध्य सागर के माध्यम से जुड़े हुए हैं. यूरोपीय संघ (ईयू) ने उन्हें यह ग्रीन इनर्जी प्रदान करने की हमारी तत्परता के लिए आभार व्यक्त किया है. भारतीयों के पास इस क्षेत्र में विशेषज्ञता है और हम रूसियों को बिना किसी अपराध के यूरोप में उत्पादन और निर्यात का दायरा बढ़ा सकते हैं.
(संपादन: ऋषभ राज)
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