नई दिल्ली: भारत में कपास के उत्पादन में भारी गिरावट आने की आशंका है और भारतीय कपास संघ की ओर से जारी अनुमान के अनुसार, चालू सीज़न में हज़ारों करोड़ का नुकसान हो सकता है.
सीएआई ने सोमवार को एक अक्तूबर से शुरू हुए इस सीज़न के लिए, अपना अनुमान 354 लाख बेल्स से घटाकर 330 लाख बेल्स कर दिया है. कपास की एक बेल में 170 किलो फसल होती है.
सीएआई के एक अधिकारी के अनुसार, बढ़े हुए कोविड-19 लॉकडाउन और दशक के सबसे खराब टिड्डी हमले की वजह से, देश भर में कपास की फसल को नुकसान हुआ है और समय के साथ ये नुकसान और बढ़ सकता है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘अगर कपास के मौजूदा बाज़ार मूल्य को लें, जो 15,800 रुपए प्रति बेल है, तो ये नुकसान 3,792 करोड़ रुपए बैठता है. लेकिन अगर जनवरी का 19,600 रुपए प्रति बेल का दाम लें, तो ये नुकसान बढ़कर 4704 करोड़ रुपए हो जाता है. कपास के दाम तेज़ी से तब गिरने शुरू हुए, जब वैश्विक मांग में भारी गिरावट आई और कोविड महामारी की वजह से घरेलू कारोबार बाधित हो गया.
सीएआई के अनुमानों में बताया गया है कि पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे कपास के अग्रणी कपास उत्पादकों के यहां उत्पादन में गिरावट आई है और ये 65.2 लाख बेल्स से घटकर, 61.73 लाख बेल्स रह गया है. अकेले राजस्थान में उत्पादन में 1.26 लाख बेल्स की गिरावट आई है.
2018-19 में, कपास निकाय ने 335 लाख बेल्स के उत्पादन का अनुमान लगाया था, जो उसके पिछले अनुमान 340.25 लाख बेल्स से, 5.25 लाख बेल्स कम था.
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बुवाई से कटाई तक कपास की फसल का जीवन चक्र, 6 से 8 महीने का होता है. पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और राजस्थान में कपास का बुवाई सीज़न अप्रैल-मई होता है, जहां ये खरीफ की फसल है. दक्षिण भारत में बुवाई देर से होती है.
मांग में कमी, टिड्डी और लॉकडाउन
सीएआई की ओर से 2019-20 सीज़न के लिए, देश में खपत का अनुमान भी 52 लाख बेल्स कम हो गया है और 331 लाख बेल्स से घटकर 280 लाख बेल्स रह गया है.
पिछला बचा हुआ स्टॉक भी 38.5 लाख बेल्स से बढ़कर 50 लाख बेल्स हो गया है.
राजस्थान में, एक लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैली, कपास की फसल तबाह हो गई है.
अधिकारी ने कहा, ‘देशव्यापी कोविड-19 लॉकडाउन के बाद मांग और दामों में आई कमी की वजह से, जिन किसानों ने कपास की फसल बोई थी, उन्होंने उसे समय से पहले काट लिया ताकि कम अवधि की रबी की फसल बो कर, जितना पैसा कमा सकते हैं, कमा लें.’
हालात को दशकों में हुए टिड्डियों के सबसे खराब हमले ने और बिगाड़ दिया. अगर कटाई सीज़न तक इनपर काबू नहीं पाया गया तो पूर्वानुमान ये है कि ये खरीफ के उत्पादन को भी तबाह कर देंगी.
मांग में कमी और राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में कपास की जिन्स कीमतों में गिरावट के साथ-साथ, टिड्डियों के हमले ने कपास किसानों की मुसीबतें और बढ़ा दी हैं.
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दिप्रिंट ने पहले खबर दी थी कि महाराष्ट्र के कपास क्षेत्र विदर्भ में, किसानों को अपनी फसल बेचने में संघर्ष करना पड़ रहा था और बाद में उन्हें मजबूरन उसे बेचना पड़ा, क्योंकि बेमौसम बारिशें उनकी फसल की क्वॉलिटी खराब कर रहीं थीं.
महाराष्ट्र में कपास की कुल एक चौथाई फसल, जो लगभग 5,500 करोड़ रुपए की थी, अप्रैल के अंत तक बिकने से रह गई, जो आमतौर से फसल की खरीद का सीज़न होता है.
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