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बुधवार, 11 जून, 2025
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निर्धारित प्रारूप के बिना भ्रष्टाचार की शिकायतों पर विचार नहीं किया जाएगा: लोकपाल

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नयी दिल्ली, 11 जून (भाषा) भारत के भ्रष्टाचार रोधी निकाय लोकपाल ने हाल में कहा कि निर्धारित प्रारूप के बिना भ्रष्टाचार की शिकायतों पर विचार नहीं किया जाएगा।

उसने पांच जून के परिपत्र में कहा कि लोकपाल के पास अपने आदेशों की समीक्षा करने का अधिकार नहीं है। उसने इस बात का संज्ञान लेते हुए यह बात कही कि ‘‘उसके द्वारा दिए गए फैसले पर पुनर्विचार की इच्छा रखने वाले शिकायतकर्ताओं की संख्या में वृद्धि हो रही है।’’

भ्रष्टाचार की शिकायत भारत के लोकपाल कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से, कार्यालय के रिसेप्शन/रजिस्ट्री में स्वयं उपस्थित होकर, डाक द्वारा या ऑनलाइन की जा सकती है।

परिपत्र में कहा गया कि लोकपाल में निर्धारित प्रारूप के बिना किसी भी माध्यम से प्राप्त शिकायतें किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं की जाएंगी।

इसमें कहा गया, ‘‘भारत के लोकपाल द्वारा पारित आदेशों पर पुनर्विचार या समीक्षा की इच्छा रखने वाले शिकायतकर्ताओं की संख्या बढ़ रही है।’’

परिपत्र में कहा गया, ‘‘कानून की यह स्थापित स्थिति है कि समीक्षा की शक्ति का प्रयोग किसी वैधानिक निकाय द्वारा तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि कानून में स्पष्ट रूप से ऐसी शक्ति प्रदान न की गई हो। 2013 का कानून (लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम) लोकपाल को समीक्षा की ऐसी स्पष्ट शक्ति प्रदान नहीं करता है।’’

शिकायतें प्राप्त होने पर लोकपाल के पास दो विकल्प होते हैं। इनमें से एक विकल्प के तहत प्रारंभिक जांच का आदेश होता है, ताकि यह पता चल सके कि मामले में कार्यवाही के लिए प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं। वहीं, दूसरे विकल्प के तहत केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) सहित किसी एजेंसी से आरोपों की जांच कराने का निर्देश देना शामिल है।

लोकपाल ने जांच एजेंसियों या संबद्ध विभागों सहित अधिकारियों से गोपनीयता बनाए रखने को भी कहा।

उसने कहा, ‘‘अध्यक्ष (लोकपाल) की पूर्व स्वीकृति के बिना प्रेस के सदस्यों को कोई भी सूचना नहीं दी जानी चाहिए। केवल लोकपाल के प्रवक्ता के रूप में नामित अधिकृत अधिकारी ही सक्षम प्राधिकारी द्वारा दिए गए आदेश के अनुसार प्रेस और मीडिया से बातचीत कर सकता है।’’

लोकपाल ने कहा कि पंजीकृत शिकायत के निपटारे संबंधी अंतिम आदेश को कार्यवाही के भाग के रूप में संबंधित सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर किए जाने के बाद यथाशीघ्र वेबसाइट पर अपलोड किया जाना चाहिए, जब तक कि दिए गए मामले में आदेश में स्पष्ट रूप से यह प्रावधान न हो कि 2013 के अधिनियम के अनुसार गोपनीयता बनाए रखने के लिए इसे अपलोड नहीं किया जाएगा।

इसने कहा, ‘‘उपरोक्त अपवाद श्रेणी के संबंध में आदेश, जिन्हें आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया जाना है, उनमें आदेश के शीर्ष दाईं ओर मोटे अक्षरों में ‘अपलोड नहीं किया जाना है’ शीर्षक लिखा होना चाहिए।’’

भाषा नेत्रपाल वैभव

वैभव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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