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Friday, 19 April, 2024
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कोविड के कारण 7.1 करोड़ लोगों को गरीबी ने घेरा, वर्ल्ड बैंक ने कहा-1/3 गरीब भारत में बढ़े

विश्व बैंक के मुताबिक, 2020 में वैश्विक स्तर पर गरीबों की संख्या में 7.1 करोड़ की वृद्धि हुई है, जिनमें कम से कम 33% अकेले भारत में थे. भारत में सरकारी आंकड़ों के अभाव में गरीबी का अनुमान लगाने के लिए अन्य तरीकों का इस्तेमाल किया गया.

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नई दिल्ली: विश्व बैंक की एक नई रिपोर्ट बताती है कि कोविड-19 महामारी ने विश्व स्तर पर और भारत के भीतर गरीबों की संख्या में गिरावट की स्थिति को उलटकर रख दिया है. और 2020 में भारत में गरीबों की संख्या 2.3 करोड़ से 5.6 करोड़ के बीच बढ़ी है, जो कि इसका अनुमान लगाने की अलग-अलग पद्धति पर निर्भर करता है.

वैश्विक स्तर पर गरीबी में वृद्धि 1998 के बाद पहली बार हुई है, जबकि भारत में यह वृद्धि 2011 के बाद पहली बार हुई है.

विश्व बैंक की ‘पॉवर्टी एंड शेयर्ड प्रॉस्पैरिटी 2022’ रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक अत्यधिक गरीबी (यानी 2.15 डॉलर या 177 रुपये प्रतिदिन से कम पर जीवनयापन करने वाले लोगों की संख्या) 2019 में 8.4 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में अनुमानत: 9.3 प्रतिशत हो गई. दूसरे शब्दों में कहें तो दुनियाभर में गरीबों की संख्या 7.1 करोड़ बढ़ी है, जिनमें 33 से 80 फीसदी भारत में थे.

भारत की आबादी को देखते हुए वैश्विक गरीबों का एक बड़ा हिस्सा यहां होना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है, लेकिन उल्लेखनीय ये है कि भारत की तुलना में अधिक आबादी वाले एकमात्र देश चीन का वैश्विक गरीबी में वृद्धि में केवल एक सीमित योगदान रहा है.

विश्व बैंक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘वैश्विक स्तर पर गरीबों के आंकड़े में अनुमानित 7.1 करोड़ की वृद्धि का सबसे ज्यादा असर अधिक आबादी वाले देशों पर पड़ा है, क्योंकि दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति के संदर्भ में समान रूप से आकलन किया जाता है. हालांकि ज्यादा बड़ी आबादी वाले चीन की वैश्विक अत्यधिक गरीबों में हिस्सेदारी कम है. 2020 में उसे मध्यम स्तर पर ही आर्थिक झटका लगा, नतीजतन, 2020 में विश्व स्तर पर अत्यधिक गरीबों की संख्या बढ़ने में उसका ज्यादा योगदान नहीं है.’

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विश्व बैंक का कहना है कि 2020 के लिए भारत के गरीबी अनुमानों की रेंज में व्यापक अंतर की वजह यह है कि भारत सरकार ने अभी अपने 2020 के गरीबी अनुमानों को अंतिम रूप नहीं दिया है, और इसलिए यहां गरीबी के अनुमान के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करना पड़ा है.

सरकारी आंकड़े उपलब्ध न होने के कारण रिपोर्ट सीएमआईई डेटा पर निर्भर

भारत के नेशनल एकाउंट्स का इस्तेमाल कर लगाए गए एक अनुमान में मुताबिक 2020 में देश के 2.3 करोड़ अतिरिक्त लोग गरीबी की चपेट में आए, जबकि निजी डेटा कंपनी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की तरफ से किए जाने वाले कंज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे (सीपीएचएस) के आधार पर यह संख्या 5.6 करोड़ होने का अनुमान है. विश्व बैंक ने अपनी गणना में सीपीएचएस को आधार बनाया है.

दरअसल, गरीबी पर आधिकारिक आंकड़ों के अभाव में विश्व बैंक पिछले वर्षों के गरीबी अनुमानों के लिए सीपीएचएस डेटा पर ही अधिक निर्भर है

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यह रिपोर्ट 2015-19 के लिए उपलब्ध भारत के नए आंकड़ों के आधार पर वैश्विक और क्षेत्रीय अनुमान लगाती है. डेटा का स्रोत सीएमआईई द्वारा आयोजित कंज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे को बनाया गया है. भारत ने 2011 से गरीबी पर आधिकारिक सर्वे डेटा प्रकाशित नहीं किया है. वैश्विक और क्षेत्रीय गरीबी अनुमानों के लिए देश के आकार और महत्व को देखते हुए इस कमी को भरने में सीपीएचएस डेटा काफी ज्यादा मददगार है.’


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2017-18 के लिए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के नवीनतम घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण को 2019 में रद्द कर दिया गया था, जिसमें सरकार ने ‘डेटा गुणवत्ता के मुद्दों’ को एक वजह बताया था.

पहले घट रही थी गरीबी

विश्व बैंक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘आंकड़े बताते हैं कि 2011 के बाद भारत में गरीबी में कमी आई थी, जो काफी हद तक ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी घटने का नतीजा रही है.’ हालांकि, इसमें यह भी कहा गया है कि भले ही उस अवधि के दौरान समग्र गरीबी में गिरावट आई, लेकिन यह वैश्विक गरीबी माप के लिए पहले के अनुमानों से कम है.

2017 में विश्व बैंक की तरफ से इस्तेमाल नवीनतम अनुमान से पता चलता है कि उस वर्ष 13.6 प्रतिशत लोग प्रतिदिन 1.90 डॉलर (156.34 रुपये) से कम पर जीवन यापन कर रहे थे.

2019 के बाद रिपोर्ट में प्रतिदिन 2.15 डॉलर (177 रुपये) प्रतिदिन की एक बढ़ी गरीबी रेखा को अपनाया गया, जिसके आधार पर 2019-20 में भारत में राष्ट्रीय गरीबी का आंकड़ा 10 प्रतिशत था. इसके मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी दर 12 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 6 प्रतिशत थी.

वैश्विक स्तर पर भी, महामारी की चपेट में आने से पहले गरीबी में गिरावट की स्थिति दर्ज की गई थी. विश्व बैंक के मुताबिक, असल में महामारी के परिणामस्वरूप विश्व स्तर पर गरीबी के स्तर में ऐतिहासिक रूप से बड़ा इजाफा हुआ है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पिछले दो वर्षों में एकत्र किए गए अतिरिक्त आंकड़ों के आधार पर यह स्पष्ट है कि कोविड-19 महामारी ने 1990, और बहुत संभव है कि द्वितीय विश्व युद्ध, के बाद से वैश्विक गरीबी के खिलाफ लड़ाई में सबसे स्पष्ट झटका दिया है.’

इस बीच, सबसे बुरी स्थिति यह है कि जहां 2021 में गरीबी के स्तर में थोड़ा-बहुत सुधार हुआ भी, तो यूक्रेन युद्ध एक बार फिर वैश्विक गरीबों की संख्या बढ़ाने लगा है. विश्व बैंक हाउसहोल्ड इनकम का अनुमान लगाने के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर का उपयोग कर गरीबी के स्तर का ‘नाउकास्ट’ करता है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘नाउकास्ट यानी तात्कालिक अनुमान कहता है कि 2021 में गरीबी में फिर कमी आनी शुरू हुई, लेकिन संकट से पहले दिखी प्रगति से धीमी दर पर.’

इसमें आगे कहा गया है, ‘2022 तक कम से कम 66.7 करोड़ लोगों के अत्यधिक गरीबी में होने का अनुमान है. यह कोविड-19 और यूक्रेन पर रूसी हमले के प्रभाव के बिना लगाए गए पूर्वानुमान की तुलना में 7.0 करोड़ अधिक है. सबसे खराब स्थिति में 68.5 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी में होंगे जो आंकड़ा अन्य स्थितियों के बिना लगाए गए अनुमान से 89 करोड़ अधिक है.’

दूसरे शब्दों में, महामारी और यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप 2022 में केवल 5 मिलियन (50 लाख) लोग ही गरीबी से बाहर निकल सकते हैं.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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