नई दिल्ली: प्रवर्त्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशकों का कार्यकाल बढ़ाने से क़ानून प्रवर्त्तन एजेंसियों के हाथ मज़बूत होंगे एजेंसियों के बीच समन्वय में सुधार होगा और उनकी ‘स्वतंत्रता बनाए रखने’ में सहायता मिलेगी- शुक्रवार को लोकसभा में पेश किए गए दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों में यही सब कहा गया है.
ये बिल उस अध्यादेश की जगह लेगा जो सरकार 14 नवंबर को लेकर आई थी, जिसमें दोनों एजेंसियों के प्रमुखों का कार्यकाल बढ़ाकर पांच वर्ष कर दिया गया था जिसमें पद पर दो वर्ष पूरे होने के बाद तीन वार्षिक विस्तार दिए जाने की अनुमति है. अध्यादेश से पहले दोनों पदों का दो वर्ष का निश्चित कार्यकाल होता था.
बिल में कहा गया है कि ‘स्वतंत्रता बनाए रखने’ के लिए, ऐसे पदों के कार्यकाल की एक निश्चित ऊपरी सीमा तय करना तर्कसंगत है.
बिल में मोदी सरकार ने कहा है कि कुछ महत्वपूर्ण मामलों में, भारत के सामने कुछ संवेदनशील जांच और क़ानूनी प्रक्रियाएं हैं. जिनमें भगोड़े अपराधियों का प्रत्यपर्ण होना है, जिसके लिए एक ‘अबाध क्रम’ की आवश्यकता है.
सरकार ने एक तर्क ये भी दिया है कि ईडी और सीबीआई प्रमुख, ‘भ्रष्टाचार तथा मनी लॉण्डरिंग के खिलाफ, वैश्विक आंदोलन का एक प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हिस्सा हैं,’ इसलिए ‘कार्यकाल को सीमित करने की कोई भी संभावना, कुछ परिस्थितियों में लक्ष्य से हटा सकती है’.
बिल में, सरकार ने ऐसी ‘वैश्विक आकस्मिकताओं’ का उल्लेख किया है, जैसे भगोड़े का निकल भागना, शेल कंपनियों की मदद से धन का शोधन, और प्रत्यपर्ण मामले.
बिल में कहा गया है, ‘भविष्य में ऐसी वैश्विक आकस्मिकताओं के सामने आने की पूरी संभावनाएं हैं और इसीलिए दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम,1946, में संशोधन की ज़रूरत है ताकि कुछ अंतर्निहित सुरक्षा उपायों की मदद से, ऐसी परिस्थितियां पैदा होने पर उनसे निपटा जा सके’.
शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने बिल पेश किया, और अगले हफ्ते लोकसभा में इस पर बहस होने की संभावना है.
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‘मजबूत प्रक्रियाओं के लिए लंबा कार्यकाल’
बिल के अनुसार ‘मजबूत प्रक्रियाओं’ के लिए ज़रूरी है कि वरिष्ठ कर्मी पर्याप्त लंबे समय तक अपने पदों पर बने रहें.
बिल में कहा गया है कि वरिष्ठ अधिकारियों ख़ासकर दोनों एजेंसियों के प्रमुखों द्वारा निरंतर निगरानी के लिए क्षमता और संसाधनों को बढ़ाना, उन्हें ‘फिर से मजबूत बनाने के प्रस्ताव का एक मौलिक हिस्सा है’.
बिल में कहा गया, ‘दृढ़ता से महसूस किया गया है, कि इसी के अनुरूप ईडी और सीबीआई प्रमुखों के लिए, आश्वासित लंबे कार्यकाल बहुत वांछनीय होंगे’.
बिल में कहा गया है कि मनी लॉण्डरिंग मामलों की जांच केवल ईडी के अधिकार-क्षेत्र में आती है, जबकि सीबीआई के पास प्रमुख रूप से भ्रष्टाचार के मामलों की जांच का ज़िम्मा है.
बिल में कहा गया है कि मनी लॉण्डरिंग और अपराधिक गतिविधियों में व्यक्तियों और समूहों के आपस में जुड़े होने के कारण, ईडी और सीबीआई के ज़रिए अपराध और भ्रष्टाचार की मिलीभगत का पर्दाफाश करने का काम, न केवल जटिल हो जाता है बल्कि इसके अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव भी हो सकते हैं.
बिल में आगे कहा गया कि इस कारण से, ऐसे अपराधों की जांच के लिए ज़रूरी है, कि ‘दोनों जांच एजेंसियों की प्रक्रियाएं मज़बूत होनी चाहिएं, और उनके वरिष्ठ अधिकारी पर्याप्त लंबे समय तक, अपने पदों पर बने रहने चाहिएं’.
बिल में कुछ प्रमुख देशों की प्रथाओं का भी उल्लेख किया गया है. उसमें कहा गया है कि ‘ये देखते हुए कि बड़े देशों में आमतौर से लंबा कार्यकाल एक स्थापित प्रथा है, दो साल का कार्यकाल न्यूनतम होना चाहिए’.
‘लेकिन हमारे मामले में, बहुत से कारणों से जिनमें वरिष्ठता और पदक्रम का मुद्दा भी शामिल है, दो वर्ष का कार्यकाल दरअसल एक ऊपरी सीमा बन गया है, और अधिकारियों की नियुक्ति उनकी सेवानिवृत्ति की तिथि के क़रीब की जाती है’.
बिल में ये भी कहा गया है, कि इन वरिष्ठ अधिकारियों के कार्यकाल की एक ऊपरी सीमा निर्धारित करने से, निरंतरता सुनिश्चित होगी जो किसी भी समय विशेष पर, ऑफिस की आकस्मिकताओं पर निर्भर होगी, और साथ ही ‘प्रभारी व्यक्ति के संवेदनशील पद की पवित्रता और स्वतंत्रता की सुरक्षा होगी, और किसी भी अन्य व्याख्या की संभावना ख़त्म हो जाएगी’.
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