नयी दिल्ली: फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में पेश हुए और अदालत के एक न्यायाधीश के खिलाफ अपनी कथित टिप्पणी को लेकर आपराधिक अवमानना मामले के सिलसिले में बिना शर्त माफी मांगी.
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति विकास महाजन की पीठ ने अग्निहोत्री की माफी को स्वीकार करते हुए उन्हें अवमानना के आरोप से मुक्त कर दिया तथा उन्हें भविष्य में सावधानी बरतने की चेतावनी दी.
उच्च न्यायालय ने उन्हें जारी आपराधिक अवमानना नोटिस का जिक्र किया और कहा कि अग्निहोत्री द्वारा दाखिल एक हलफनामे से भी अदालत के प्रति उनके द्वारा बिना शर्त व्यक्त किया गया खेद और अफसोस प्रदर्शित होता है.
पीठ ने कहा,’विवेक अग्निहोत्री ने कहा कि न्यायपालिका के प्रति उनके मन में अत्यधिक सम्मान है और इस अदालत की गरिमा को जानबूझकर ठेस पहुंचाने का उनका कोई इरादा नहीं था.’’ अदालत ने कहा कि इसे ध्यान में रखते हुए, ‘‘उन्हें जारी कारण बताओ नोटिस वापस लिया जाता है. विवेक अग्निहोत्री को कथित अवमाननाकर्ता के तौर पर आरोपमुक्त किया जाता है.”
पीठ ने अपने पूर्व के निर्देश के अनुपालन में अदालत में पेश हुए फिल्मकार से कहा, ‘‘श्रीमान अग्निहोत्री हम आपको भविष्य में सावधानी बरतने के लिए आगाह करते हैं.’’
फिल्मकार ने 2018 में एक ट्वीट में न्यायमूर्ति एस मुरलीधर पर तरफदारी करने का आरोप लगाया था, क्योंकि उन्होंने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को नज़रबंदी से मुक्त करने का आदेश दिया था. न्यायमूर्ति मुरलीधर उस वक्त दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे और अब उड़ीसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश हैं.
इसके बाद, उच्च न्यायालय ने अग्निहोत्री और अन्य के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू की थी.
फिल्म निर्माता ने एक हलफनामे के माध्यम से बिना शर्त माफी मांगी थी, जिसके बाद अदालत ने पिछले साल छह दिसंबर को उनसे व्यक्तिगत रूप से पेश होकर माफी मांगने के लिए कहा था.
एक अन्य कथित अवमाननाकर्ता आनंद रंगनाथन की ओर से पेश वकील ने अदालत को आश्वस्त किया कि वह मामले की सुनवाई की अगली तारीख 24 मई को उसके समक्ष उपस्थित रहेंगे.
सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति मृदुल ने कहा कि अदालतें अपनी गरिमा सुनिश्चित करने के लिए अवमानना को लेकर दंडित नहीं करती क्योंकि अदालतों की गरिमा न्यायपालिका के बारे में लोगों के कुछ भी बोलने से नहीं आती, बल्कि अदालतों के कर्तव्य निर्वहन से आती है.
अवमानना के एक मामले में उच्चतम न्यायालय के पूर्ववर्ती फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा, ‘‘हमारी गरिमा मजबूत नींव पर आधारित है और हमारे बारे में किसी के कुछ कहने पर आधारित नहीं है.’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि उसने विषय को सिर्फ यह स्पष्ट करने के लिए लंबित रखा कि ‘आप गैर जिम्मेदाराना नहीं हो सकते.’
पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा, ‘ट्विटर मुसीबत लाने का एक बड़ा स्रोत है.’
पीठ ने यह भी कहा कि देश के हर नागरिक को यह जानना चाहिए कि उन्हें सावधानी बरतने की जरूरत है और कहा, ‘हम उचित और निष्पक्ष आलोचना का स्वागत करते हैं.’
न्यायमित्र के रूप में इस मामले में अदालत की सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद निगम ने पहले सूचित किया था कि रंगनाथन ने अवमानना कार्यवाही के संबंध में ट्वीट किया था कि वह इस मामले में कानूनी लड़ाई लड़ेंगे.
अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव से पत्र प्राप्त करने के बाद स्वयं इस मामले में अवमानना की कार्यवाही शुरू की थी. राव ने अपने पत्र में कहा था कि ट्वीट उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर जानबूझकर हमले का प्रयास है.
न्यायाधीश के खिलाफ ट्वीट के लिए चेन्नई से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक ‘तुगलक’ के संपादक स्वामीनाथन गुरुमूर्ति के खिलाफ भी अवमानना कार्यवाही शुरू की गई थी.
गुरुमूर्ति के खिलाफ कार्यवाही अक्टूबर 2019 में बंद कर दी गई थी.
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