रायपुर: 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ में हाल में सम्पन्न हुए स्थानीय निकायों चुनाव में एक बार फिर भाजपा को झटका लगा है. प्रदेश के चुनावी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी एक दल ने सभी 10 नगर निगमों को अपने कब्जे में किया है.
नौ निगमों को पहले ही जीत चुकी कांग्रेस पार्टी ने शुक्रवार को कोरबा नगर निगम में भी अपना मेयर बनवाकर क्लीन स्वीप करते हुए अपन वर्चस्व हासिल कर लिया है. भाजपा जिसने छत्तीसगढ़ बनने के बाद 15 साल लगातार शासन किया वो 2019 के निकाय चुनाव में एक भी नगर निगम में अपना मेयर बनाने में सफल नहीं हो सकी.
2014 में हुए नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा के पास चार नगर निगम थे, जो 2009 में छह के मुकाबले दो कम थे. दूसरे शब्दों में कहें तो भाजपा की पकड़ विगत दो चुनावों, 2009 एवं 2014 से छत्तीसगढ़ में लगातार कमजोर पड़ रही थी. जबकि पार्टी विधानसभा और लोकसभा चुनाव जीतकर 15 सालों तक सत्ता में काबिज रही.
दिसंबर 2019 के दूसरे पखवाड़े में हुए नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा ने राज्य में अपनी बची हुए साख भी गवां दी. प्रदेश में भाजपा के चुनावी दुर्गति का ऐसा आलम रहा कि पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का गढ़ राजनांदगांव भी इस बार कांग्रेस ने ढहा दिया. यहां पिछले दो नगरी निकाय चुनाव में रमन सिंह अपना ही मेयर बनवाने में कामयाब हुए थे.
हार का मुख्य कारण भाजपा में गुटबंदी
हालांकि, पार्टी के नेता अपने असफलता के पीछे राज्य शासन और मुख्यमंत्री के द्वारा चुनावी प्रक्रिया में किए गए बदलाव, सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग और पार्षदों की खरीद फरोख्त को मानते हैं. परंतु संगठन के एक बहुत बड़े तबके का मत है की निकाय चुनाव असफलता का मुख्य कारण प्रदेश में बड़े नेताओं में एकता की कमी है. इन नेताओं का कहना है कि सभी नगर निगमों में पार्टी के पार्षदों की अच्छी तादात होने के बावजूद भी पार्टी एक निगम में भी अपना मेयर नहीं जीता पाई. जिसका मुख्य कारण प्रदेश संगठन के अंदर व्याप्त गुटबाजी है.
भाजपा नेताओं का एक बड़ा वर्ग मानता है कि संगठन में व्याप्त गुटबाजी के चलते नगरीय निकाय चुनाव के लिए पार्टी के अंदर कोई ठोस रणनीति नहीं बन पाई और भाजपा को पूरे प्रदेश में मेयर के चुनाव में मुंह की खानी पड़ी. दिप्रिंट से बात करते हुए पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने तो यह तक कह डाला कि प्रदेश भर में बड़े-बड़े नेता हैं. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में शिकस्त के बाद आज तक कभी भी सत्तारूढ़ दल का सामना करने के लिए प्रदेश स्तर पर किसी प्रकार की एकता का कोई परिचय तक नहीं दिया है.
इस नेता का कहना है कि लोकसभा चुनाव के समय को छोड़ दिया जाए, तो 2018 विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी के बड़े नेता आपसी गुटबाजी की वजह से एक साथ बैठना भी उचित नहीं समझते. कोई संगठनात्मक रणनीति बनाने की कवायद तो दूर की बात है. लोकसभा सांसद और रायपुर नगर निगम के पूर्व मेयर सुनील सोनी से जब प्रदेश संगठन का कई छत्रपों में बंटे होने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस विषय में कुछ न बोलते हुए कहा, ‘मैं एक छोटा कार्यकर्ता हूं और इस विषय में कुछ नही कह सकता.’ वहीं रायपुर सांसद ने अपने दल की हार का ठीकरा सत्तारूढ़ दल पर फोड़ा और बोला ‘भूपेश बघेल सरकार ने यह चुनाव प्रजातंत्र के सभी मानदंडों को तार-तार कर सिर्फ कांग्रेस के जीत के लिए हो करवाया.’
भाजपा का आरोप
दिप्रिंट से बात करते हुए पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और पूर्व विधायक सच्चिदानंद उपासने कहते हैं, ‘भूपेश बघेल सरकार द्वारा नगरीय निकाय चुनाव की पूरी प्रक्रिया बदलने के पीछे मंशा यही थी कि वे इस चुनाव में सरकारी मशीनरी और अपनी सत्ता का दुरुपयोग कर ऐन केन प्रकारेण जीत हासिल करना चाहती थी. 2019 के नगरीय निकाय चुनाव में ऐसे कई जीवंत उदाहरण सामने आए हैं. जिसमें सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर हजार वोट से भी अधिक पीछे चल रहे कांग्रेस के उम्मीदवारों को जीतवाया गया है. रायपुर के मेयर ही मतपत्रों की गिनती के दौरान भाजपा प्रत्याशी से करीब 2000 मतों से पीछे चल रहे थे. परंतु अचानक बिजली चली जाती है और फिर आधे घंटे के अंदर कांग्रेस का प्रत्याशी आगे निकल जाता है. यह कैसे संभव है. प्रदेश भर में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो इस चुनाव की निष्पक्षता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं.’
भाजपा प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि मेयर के चुनावों की नोटिफिकेशन और समय सरकार द्वारा राज्य निर्वाचन आयोग के माध्यम से विपक्षी पार्षदों को अंधेरे में रखकर जारी किया गया और फिर सत्तारूढ़ दल और सरकार द्वारा निर्दलीय पार्षदों की खरीद-फरोख्त की गई.
भूपेश हुए और भी मजबूत….
कांग्रेस पार्टी के ज्यादातर नेताओं का मानना है कि निकाय चुनाव के परिणामों से यह साबित हो गया है कि बघेल के विरोधी उनके खिलाफ कितनी भी मुहिम चला लें. लेकिन मुख्यमंत्री का कद और भी बढ़ गया है. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता राजेश बिस्सा का कहना है कि बघेल एक ओर जहां जनता में अपने एक साल के कार्यों से अपनी पैठ बनाने में कामयाब हुए. वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री ने संगठन के अंदर अपनी स्थिति और भी मजबूत कर लिया है.
पार्टी के अंदर मुख्यमंत्री के खिलाफ दबी जुबान से समय-समय पर आवाज उठाने वाले नेताओं को भी बघेल ने इस अप्रत्याशित जीत फिलहाल चुप करा दिया है. क्योंकि सत्तारूढ़ पार्टी में इस चुनाव में प्रचार की नींव राज्य सरकार के एक वर्ष के कार्यकाल के प्रदर्शन पर रखा था. बघेल के विरोधी खेमे के नेता भी मानते हैं. 2019 नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों ने मुख्यमंत्री को इतना मजबूत कर दिया है कि अब वे भी अब उनके मुरीद हो गए हैं.
भाजपा को पंचायत चुनाव से उम्मीद बरकरार
नगरीय निकाय चुनावों में मिली करारी हार के बाद भाजपा नेताओं की उम्मीद अब प्रदेश में जल्द होने जा रहे पंचायत चुनावों से हैं. पार्टी नेताओं का कहना है कि धान खरीदी में हो रही अनियमितता और कई दिनों से ठप्प पड़ी खरीदी की कार्यवाही से किसानों में आक्रोश पनप रहा है. जिसका फायदा पार्टी को पंचायत चुनावों में जरूर मिलेगा.
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विक्रम उसेंडी का कहना है कि ‘सरकार का एक साल का कार्यकाल पूरी तरह से विफल रहा है. किसानों में काफी नाराजगी है. धान खरीदी का कार्य पहले देरी से शुरू हुआ और अब कई केंद्रों में बंद हो चुका है. शिकायतें मिल रही हैं कि किसानों को टोकन देकर भी खरीदी नहीं की जा रही है और जहां हो रही है वहां भुगतान नहीं हुआ है. इससे किसानों में काफी नाराजगी है.
उसेंडी का कहना है कि बघेल सरकार ने किसानों से बिजली बिल के मुद्दे पर भी धोखा किया है. भाजपा अध्यक्ष के अनुसार गांवों में अनियमित और अधिक दर से दिये जा रहे बिजली बिल से ग्रामीणों में सरकार के खिलाफ काफी रोष है. जिसे भाजपा पंचायत चुनावों में मुद्दा बनाएगी. उसेंडी आगे कहते हैं ‘पंचायतों में हमारा प्रदर्शन कांग्रेस से काफी बेहतर रहेगा.’