नई दिल्ली: कांग्रेस नेता राहुल गांंधी ने बुधवार को प्रेसवार्ता कर रसोई गैस, पेट्रोल, डीजल की बढ़ती कीमतों को लेकर मोदी सरकार की आलोचना की. उन्होंने कहा हम 1991 की हालत में पहुंच गये हैं, मोदी सरकार के लिए जीडीपी का मतलब- गैस, डीजल, पेट्रोल है. अब देश को एक नये विजन की जरूरत है. कांग्रेस पार्टी अनुभवी है उसे पता है कि क्या करना है.
राहुल गांधी ने कहा कि किसानों, श्रमिकों, छोटे कारोबारियों, एमएसएमई, नौकरीपेशा वर्ग का विमुद्रीकरण किया जा रहा है, प्रधानमंत्री मोदी के चार-पांच मित्रों का मौद्रिकरण किया जा रहा है.
राहुल गांधी ने कहा कि पेट्रोल-डीजल, गैस का इकोनॉमी के हर हिस्से में इसका इनपुट होता है. जब डीजल और पेट्रोल के दाम बढ़ते हैं एक तो डायरेक्ट और एक इनडायरेक्ट चोट लगती है. डायरेक्ट चोट उसे लगती है जो गाड़ी में पेट्रोल डालता है, उसकी जेब में चोट लगती है. इनडायरेक्ट चोट तब लगती है जब ट्रांसपोर्ट का दाम बढ़ता है तो सब चीज के दाम बढ़ते हैं.
गांधी ने कहा पिछले 7 साल से हमने एक नया पैराडाइम देखा है. एक तरफ डिमोनेटाइजेशन और दूसरी तरफ मोनेटाइजेशन. एक तरफ प्रधानमंत्री कहते हैं कि डिमोनेटाइजेशन कर रहे हैं और दूसरी तरफ वित्तमंत्री ने कहती हैं कि मोनेटाइजेशन कर रहे हैं. तो लोग जानना चाहते हैं कि मोनेटाइजेशन किसका और डिमोनेटाइजेशन किसका?
डिमोनेटाइजेशन किसका हो रहा है किसानों का हो रहा है, मजदूरों का हो रहा है, छोटे दुकानदार और छोटे व्यापारियों का हो रहा है. एमएसएमईज का हो रहा है, वेतनभोगी क्लास का हो रहा है. सरकार के जो कर्मचारी हैं उनका हो रहा है और जो ईमानदार उद्योगपति हैं उनका हो रहा है.
अब मोनेटाइजेशन किसका हो रहा है? चार-पांच नरेंद्र मोदी जी के जो मित्र हैं उनका हो रहा है. ये इकोनॉमिक ट्रांसफर हो रहा है. बड़ी रोचक बात निकली है. मोदी जी कहते हैं जीडीपी बढ़ रही है, वित्तमंत्री कहती हैं कि देखिए जीडीपी का प्रोजेक्शन ऊपर की ओर है. राहुल ने कहा जीडीपी बढ़ने का मतलब- गैस, डीजल, पेट्रोल के दाम हैं. ये कन्फ्यूजन है.
यूपीए और मोदी सरकार के समय की गैस, तेल के दाम की तुलना
राहुल गांधी ने कहा कि 2014 में नरेंद्र मोदी जी ने कहा था कि डीजल पेट्रोल के दाम बढ़ते जा रहे हैं. 2014 में 410 रुपये सिलेंडर की कीमत थी. जब यूपीए ने ऑफिस छोड़ा. आज 885 रुपये सिलेंडर के दाम हैं. 116 प्रतिशत का इजाफा.
पेट्रोल के दाम 71.5 रुपये 2014 में और आज 101 रुपया. 42 प्रतिशत दाम बढ़े. 57 रुपये का डीजल तब था और 88 रुपये आज. इसमें 55 प्रतिशत की इजाफा हुआ है.
उन्होंने कहा कि मजेदार बात यह है कि कोई कह सकता है कि इंटरनेशनल बाजार में दाम बढ़ा है, इसलिए हिंदुस्तान की जनता को चोट लग रही है. जब यूपीए की सरकार थी 105 रुपये इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल का दाम था. आज 71 रुपये हैं. 32 प्रतिशत ज्यादा था दाम हमारे समय में थे. इंटरनेशनल मार्केट के पोट्रोल, डीजल, गैस के दाम गिर रहे हैं और हिंदुस्तान में बढ़ते जा रहे हैं. दूसरी तरफ हमारी संपत्ति को बेचा जा रहा है.
कांग्रेस नेता ने कहा कि 23 लाख करोड़ रुपये सरकार ने जीडीपी से कमाया है. जीडीपी मतलब गैस, डीजल, पेट्रोल. मेरा सवाल है कि ये 23 लाख करोड़ रुपये गये हैं. जनता को पूछना चाहिए कि आपकी जेब से जो पैसा छीना जा रहा है ये कहां जा रहा है. जो हिंदुस्ता की कंपनीज को बेचा जा रहा है. मोनेटाइजेशन किया जा रहा है, जीएसटी से पैसा लिया जा रहा है. किसानों के लिए तीन कानून बने हैं वहां से आपका पैसा छीना जा रहा है तो ये जा कहां रहा है.
लोगों में बढ़ रहा गुस्सा- राहुल
एक सवाल के जवाब में राहुल ने कहा लोगों में गुस्सा तो बढ़ रहा है, मगर दूसरी तरफ जो आवाज है उसको सिस्टमैटिकली दबाया जा रहा है. कोरोना का समय है तो हम भी नहीं चाहते कि लाखों लोग सड़क पर निकलें, क्योंकि हम जानते हैं कि उसके दूसरे नतीजे हो सकते हैं, लेकिन जनता में जबर्दस्त गुस्सा है. मीडिया इंस्टीट्यूशंस पर दबाव है. पार्लियामेंट में बात करने नहीं देते हैं.
ये गुस्सा बढ़ता जाएगा, फिर रिएक्शन बढ़ता जाएगा.
राहुल ने एक दूसरे सवाल के जवाब में कहा कि अगर इंटरनेशल दाम तेल के बढ़ रहे होते तो सवाल नहीं था लेकिन वे नहीं बढ़ रहे हैं. 23 लाख करोड़ भारत सरकार ने कमाया सवाल ये नहीं है. लेकिन 23 लाख करोड़ से जनता के लिए किया क्या जा रहा है, लोगों को इसे क्यों चुकाना पड़ रहा है. 23 लाख करोड़ रुपये जनता की जेब से ट्रांसफर किया जा रहा है.
राहुल गांधी ने कहा जो स्थिति 1991 में आई थी वही स्थिति आज आ रही है. आज समस्या साइकिलिकल नहीं, स्ट्रक्चरल है. बिना विजन बदले इससे बाहर नहीं निकला जा सकता है.
1991 के बाद कांग्रेस का आर्थिक विजन 2012 तक चला, अब नये विजन की जरूरत
काग्रेस ने 1991 में आर्थिक फेलियर आया तो एक नया विजन लेकर आई. वह 2012 तक काम किया उसके बाद वह विजन काम करना बंद कर दिया. वह कहते हैं कि हमारी इकोनॉमिक रणनीति 1991 से जो चली वह 2012 में चलना बंद कर दिया था. एक नये दृष्टिकोण की जरूरत है. फिर एक नये विजन की जरूरत थी. लेकिन सरकार का नया इंडिया का नारा खोखला है, यह नया अप्रोच नहीं है. उन्होंने मेक इन इंडिया पर सवाल किया कि क्या देश में कुछ बन रहा है.
लेकिन मोदी सरकर कर कुछ और रही है. नोटबंदी की उससे देश को कुछ मिला क्या, अब संपत्ति का मोनिटाइजेशन कर रहे हैं. वह पैनिक पैदा कर रहे हैं. देश की जीडीपी ढह हो चुकी है. वह डर गये हैं. उसी का नतीजा है मोनिटाइजेशन.
राहुल ने कहा कि 91 में आर्थिक फेलियर हुआ था तो कांग्रेस ने नया दृष्टिकोण दिया था. अब फिर प्रधानमंत्री को एक नया दृष्टिकोण देना चाहिए, वो नहीं दे रहे हैं. हम जानते हैं क्या करना है. वित्तमंत्री को समझ में ही नहीं आ रहा है. इनके जो थिंकटैंक है, नीति आयोग है उन्हें भी समझ नहीं आ रहा है. प्रधानमंत्री को भी समझ में नहीं आएगी.
लेकिन एस्पर्ट को समझ में आएगी. प्राइम मिनिस्टर को वित्तमंत्री को उन एक्सपर्ट्स से बात करनी चाहिए. अगर वह नहीं करना चाहते तो कांग्रेस पार्टी उन्हें एक्सपर्ट भेज देगी, समझा देगी. हमारे पास अनुभव है हम बता सकते हैं.
स्टॉक मार्केट का तमाशा केवल 40-50 कंपनियों का
गांधी ने कहा इस फेलियर के लक्षण जीडीपी का ढह जान है. उन्होंने कहा हिंदुस्तान की स्टाक मार्केट तेजी से आगे बढ़ रही है. लेकिन कितनी कंपनियां ग्रो कर रही हैं. ये स्टॉक मार्केट का जो तमाशा है केवल 50 कंपनियों का है लेकिन बाकी 300-400 कंपनी जो स्टॉक मार्केट में हैं वो खत्म हो रही हैं. अगर आपको भारत की इकॉनोमिक बेस बढ़ानी है तो फ्यूचर वो हैं, मतलब छोटी कंपनियां हैं. अभी जो 4-5 को लोगों को मजबूत किया जा रहा है, इनकी जगह है लेकिन ये चार पांच लोग पूरे हिंदुस्तान को रोजगार नहीं दे सकते.
रोजगार सेंकेंड लाइन, थर्ड लाइन वाले बिजनेसमैन देते हैं. मोदी जी के दिमाग इनकी जगह ही नहीं है. जो आपको दिख रहा है. यह स्ट्रक्चरल फेलियर का लक्षण है. नरेंद्र मोदी अगर सही प्रधानमंत्री होते तो कहते मैं समझ रहा हूं और अब मैं देश को एक नया दृष्टिकोण देने जा रहा हूं. यह बातचीत से निकलेगा. रेस कोर्स में बैठने से नहीं निकलेगा. किसानों, मजदूरों, छोटे व्यापारियों से बात करने से निकलेगा, फिर देश का विजन निकलेगा. हमने बातचीत की है. हम जानते हैं कि करना क्या है.