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Monday, 23 December, 2024
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जलवायु परिवर्तन, पानी में खारापन, मासिक धर्म की समस्याएं: कैसे तमाम बाधाओं से जूझ रहीं हैं सुंदरवन की महिलाएं

पारिस्थितिक रूप से नाजुक सुंदरवन क्षेत्र पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना क्षेत्र में पड़ता है और इसे जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों में से एक कहा जाता है.

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सुंदरवन (पश्चिम बंगाल): जलवायु परिवर्तन ने पश्चिम बंगाल के सुंदरवन क्षेत्र में पानी को खारा कर दिया है, जिससे कृषि अव्यवहारिक हो गई है और लोगों को मछली पकड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. यहां दलदली भूमि क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के लिए, यह बदलाव न केवल आजीविका से संबंधित है, बल्कि वे अपने जीवन पर पड़ने वाले स्वास्थ्य प्रभावों से भी जूझ रही हैं.

खेतों के पोषण को लेकर अव्यवहारिक हो चले खारा पानी के कारण अब महिलाओं को अपनी आजीविका के लिए मछली पकड़ने के वास्ते कमर तक गहरे पानी में लंबे समय तक बिताना पड़ रहा है और इस दुष्चक्र में फंसी इन महिलाओं को मासिक धर्म की अनियमितता, मूत्र नलिका में संक्रमण और अन्य कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

सुंदरवन में काम करने वाले एनजीओ गोरानबोस ग्राम विकास केंद्र (जीजीबीके) के निदेशक निहार रंजन रप्तन ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘समुद्र के जलस्तर में वृद्धि के कारण पानी की लवणता में वृद्धि की वजह से कृषि अलाभकारी हो गई है और अधिकतर महिलाएं मछली पकड़ने पर निर्भर हो गई हैं. इसका मतलब है कि खारे पानी के कारण उनका जोखिम भी बढ़ रहा है.’

उन्होंने कहा कि अनियमित मासिक धर्म, योनि में संक्रमण, बार-बार यूटीआई और गर्भपात सुंदरवन की महिलाओं में आम बात हो गयी है.

पारिस्थितिक रूप से नाजुक सुंदरवन क्षेत्र पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना क्षेत्र में पड़ता है और इसे जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों में से एक कहा जाता है. देश के किसी भी अन्य स्थान की तुलना में यह क्षेत्र बार-बार आने वाले चक्रवातों से प्रभावित रहा है.

सुंदरवन के गोरान बोस गांव में दो दशक से अधिक समय से काम कर रही रेवती मंडल के अनुसार, पानी का खारापन लगातार बढ़ रहा है और महिलाओं का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है. आशा कार्यकर्ता ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में लगातार तूफान के साथ सुंदरवन के लगभग सभी क्षेत्रों में अधिकांश नदियों और तालाबों के पानी की लवणता बढ़ गई है.

मंडल ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘मैं हर दिन लगभग 25 घरों का दौरा करती हूं और इनमें से ज्यादातर घरों में ऐसी महिलाएं हैं, जिन्हें मासिक धर्म से जुड़ी कोई न कोई समस्या है.’ उन्होंने कहा, ‘इनमें से अधिकांश महिलाओं के पति प्रवासी श्रमिक हैं और कहीं और रह रहे हैं. महिलाएं अपने दैनिक खर्चों को झींगे और नदी से पकड़ी गई अन्य मछलियों को बेचकर पूरा करती हैं, जिसके लिए वे कमर तक गहरे पानी में चार-छह घंटे तक रहती हैं, जो उनके स्वास्थ्य के लिए खतरे का मुख्य कारण है.’

दक्षिण 24 परगना के होगलदुरी गांव की सोमा (परिवर्तिन नाम) दुखी हैं. इकत्तीस-वर्षीया सोमा को पिछले एक साल में कम से कम चार बार मूत्र नली में संक्रमण हुआ है. उन्होंने बताया कि वह हर रोज मछली पकड़ने जाती हैं और झींगे एवं छोटी मछलियां बेचकर अपना जीवनयापन करती हैं, यानी हर दिन करीब चार से छह घंटे कमर तक गहरे पानी में खड़े रहना पड़ता है.

उन्होंने कहा, ‘मैं अपने पति से अलग हो गई हूं और मुझे अपना और अपने दो बच्चों का पालन-पोषण करना है. पहले मुझे आशा कार्यकर्ताओं या डॉक्टरों के साथ अपनी मासिक धर्म की समस्याओं पर चर्चा करने में शर्म आती थी, लेकिन स्थिति असहनीय होने के बाद मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा था.’

बीस साल से पर्यावरण और कई लोगों की जिंदगियों पर पड़ने वाले प्रभाव की गवाह रहीं मंडल ने कहा कि मासिक धर्म से जुड़ी वर्जनाओं के कारण इस तरह के मुद्दों को छिपाने से स्थिति और खराब हो जाती है. उन्होंने कहा, ‘कई मामलों में ये महिलाएं डॉक्टरों को अपनी समस्या बताने से कतराती हैं. वे मेरे पास भी तभी आती हैं जब यह गंभीर हो जाता है और बहुत अधिक गहन उपचार की आवश्यकता होती है. कुछ महिलाओं ने बार-बार संक्रमण के कारण गर्भपात की भी जानकारी दी है.’

सोमा (परिवर्तित नाम) की तरह ही फैजा (परिवर्तित नाम) भी स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं से पीड़ित है.

बसंती गांव की 25 वर्षीया फैजा ने कहा कि उसके घर के पास के मीठे पानी के तालाब भी बार-बार आने वाले चक्रवातों के कारण खारे हो गए हैं. उन्होंने कहा, ‘ये तालाब ही अब हमारे पानी के प्राथमिक स्रोत हैं. ताजे पानी के अभाव में हम इन तालाबों के पानी को धोने और साफ करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. हम मासिक धर्म में जिन कपड़ों का इस्तेमाल करते हैं, वह भी इसी पानी में धोया जाता है. इससे सभी प्रकार के संक्रमण होते हैं.’

योनि की समस्याओं के अलावा, क्षेत्र की महिलाएं खारे पानी के लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण एक्जिमा और संक्रमित घावों जैसे त्वचा रोगों से भी जूझ रही हैं. गोरान बोस की 23 वर्षीय पियाली (परिवर्तित नाम) ने कहा, ‘यह सिर्फ बार-बार होने वाला संक्रमण नहीं है. मैं गर्भधारण करने में असमर्थ रही हूं और डॉक्टर इसका कारण मेरे खराब प्रजनन स्वास्थ्य को देते हैं.’

गाजियाबाद में मणिपाल अस्पताल में सलाहकार, प्रसूति एवं स्त्री रोग, विनीता दिवाकर ने बताया कि बार-बार होने वाले यूटीआई मासिक धर्म के स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरह से प्रभाव डाल सकते हैं.

दिवाकर ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘सीधे पेशाब के संक्रमण से योनि क्षेत्र, योनि में मौजूद जीवाणुओं पर असर पड़ेगा और इसमें परिवर्तन होगा जिससे योनि में संक्रमण होगा, जो बदले में अंडाशय के स्वास्थ्य को प्रभावित करेगा.’

उन्होंने कहा कि बार-बार होने वाले यूटीआई से गर्भपात हो सकता है या समय से पहले भी प्रसव हो सकता है. जीजीबीके के रप्तन ने कहा कि कोविड-19 ने पहले से ही खराब स्थिति को और बिगाड़ दिया है. उन्होंने कहा कि बेहतर नौकरियों की तलाश में पुरुषों के पलायन से क्षेत्र की महिलाएं अकेले जलवायु परिवर्तन की लड़ाई लड़ रही हैं.

(पहचान छिपाने के लिए नाम बदले गए हैं)

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.


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