scorecardresearch
Friday, 3 May, 2024
होमदेशहमारी आपकी गलतियों से बढ़ रही है गर्मी, UK की हीटवेव के पीछे जलवायु परिवर्तन: WWA स्टडी

हमारी आपकी गलतियों से बढ़ रही है गर्मी, UK की हीटवेव के पीछे जलवायु परिवर्तन: WWA स्टडी

जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर कार्बन उत्सर्जन को कम नहीं किया गया तो जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम जानलेवा हो सकते हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: यूनाइटेड किंगडम (यूके) ने हाल ही में अपने इतिहास में सबसे ज्यादा गर्मी का प्रकोप झेला, जब 19 जुलाई को लंकाशायर में तापमान 40.3 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया. वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन से जुड़े जलवायु वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने एट्रिब्यूशन विश्लेषण से पता लगाया है कि मानव जनित जलवायु परिवर्तन ने जुलाई में यूके में आई हीटवेव की संभावना को 10 गुना बढ़ाया है.

इस स्टडी से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार पश्चिमी यूरोप में क्लाइमेट मॉडल्स सिमुलेशन के अनुमान से ज्यादा तेजी से तापमान में वृद्धि हो रही है. पाया गया कि 18 और 19 जुलाई को जो तापमान यूके में दर्ज किया गया उसका मौजूदा जलवायु स्थिति के अनुसार अब अगले 100 साल बाद आने की उम्मीद है.

15 जुलाई को यूके मेट ऑफिस ने पहली बार गर्मी से जुड़ी चेतावनी जारी की थी. जिसके बाद देशभर के 46 वेदर स्टेशन में रिकॉर्ड स्तर पर तापमान दर्ज किया गया.

हालांकि गर्मी से मरने वालों के सही-सही आंकड़े अभी तक उपलब्ध नहीं हैं लेकिन अनुमान के मुताबिक इससे सैकड़ों लोगों की मौत हुई है. यूके की हीटवेव ने वहां के लोगों के जीवन को काफी प्रभावित किया है. गर्मी के कारण सड़कों के पिघलने की घटनाएं सामने आईं वहीं स्कूलों को भी बंद किया गया.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

स्टडी के अनुसार इस तरह की भीषण गर्मी ने लोगों के स्वास्थ्य को जोखिम में डाल दिया है जो कि जानलेवा स्थिति तक पहुंच गया है. साथ ही जलवायु परिवर्तन के अलावा बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, बदलता सामाजिक ढांचा और तैयारी के स्तर ने इस जोखिम को और बढ़ा दिया है.

वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन की स्टडी में 18 और 19 जुलाई यानी की दो दिनों के तापमान का विश्लेषण किया गया है क्योंकि इन्हीं दो दिनों में वहां सबसे ज्यादा गर्मी महसूस की गई थी. स्टडी में यूके के सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों सेंट्रल इंग्लैंड और ईस्ट वेल्स के तापमान का विश्लेषण किया गया है जिसमें पाया गया कि इस तरह की घटना की रफ्तार को मानव जनित जलवायु परिवर्तन ने बढ़ाया है.

इस स्टडी को दुनियाभर के विश्वविद्यालयों और मौसम विभाग के 21 शोधार्थियों ने तैयार किया है जिनमें डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, दक्षिण अफ्रीका, यूके, यूएस और न्यूजीलैंड के शोधार्थी शामिल हैं.

दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन हीटवेव का कारण बन रहा है जिसकी वजह से गर्मी वाले दिनों की संख्या बढ़ी है. भारत में भी अप्रैल और मई में लगातार हीटवेव ने प्रभावित किया था. वहीं पाकिस्तान में भी तापमान 51 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था. वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन की स्टडी के अनुसार भारत और पाकिस्तान में जलवायु परिवर्तन ने समय से पहले हीटवेव का खतरा 30 गुना तक बढ़ा दिया.


यह भी पढ़ें: दोगुनी रफ्तार से मर रहे हैं उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के ट्रॉपिकल फॉरेस्ट, जलवायु परिवर्तन है बड़ा कारण


चिंताजनक स्थिति

जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर कार्बन उत्सर्जन को कम नहीं किया गया तो जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम जानलेवा हो सकते हैं.

यूके मेट ऑफिस के अनुसार जुलाई 2022 इंग्लैंड में 1911 के बाद सबसे ज्यादा ड्राई रहा है. 26 जुलाई तक इंग्लैंड में सिर्फ 15.8एमएम बारिश हुई जो कि जुलाई में अपेक्षित औसत का सिर्फ 24 प्रतिशत ही है.

यूरोप के कई देश हीटवेव का इन दिनों सामना कर रहे हैं. हाल ही में स्पेन ने अपने हीटवेव का नाम जोई रखा था जिसके कारण इन दिनों वहां 43 डिग्री सेल्सियल तक तापमान पहुंच गया है.

इंपीरियल कॉलेज लंदन के ग्रांथम इंस्टीट्यूट में जलवायु विज्ञान के वरिष्ठ लेक्चरर डॉ. फ्रेडरिक ओटो ने कहा, ‘यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों में हम रिकॉर्ड तोड़ हीटवेव देख रहे हैं जो तापमान बढ़ा रहा है वहीं क्लाइमेट मॉडल्स के अनुमान से भी ये ज्यादा है. यह काफी चिंताजनक स्थिति है.’

विशेषज्ञों का मानना है कि गर्मी से बचने के लिए ग्रीन कवर को बढ़ाना होगा और साथ ही अगर सरकार क्लाइमेट रीसाइलिएंट घरों को प्राथमिकता नहीं देती तो मार्केट को ऐसा करना चाहिए.

वहीं इंपीरियल कालेज लंदन में रिसर्च एसोसियट मरियम जकारिया का कहना है कि कंसर्वेटिव अनुमान के बावजूद हमने यूके की हीटवेव में जलवायु परिवर्तन की भूमिका को देखा है. वर्तमान जलवायु की स्थिति में जो कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से प्रभावित हो रही है, कई लोग अपने जिंदगी में इस तरह की घटनाओं का अनुभव कर रहे हैं जो कि पहले असंभव था. साथ ही नेट जीरो लक्ष्य को पाने में जितनी देरी होगी उतना ही हीटवेव की खराब स्थिति देखने को मिलेगी.

जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि समग्र एडेप्टेशन को अपनाए बिना और उत्सर्जन में कमी के बिना ये स्थिति और खराब होती जाएगी.


यह भी पढ़ें: भारत और पाकिस्तान में जलवायु परिवर्तन ने समय से पहले हीटवेव का खतरा 30 गुना बढ़ाया: WWA स्टडी


भारत में हीटवेव की स्थिति

भारत में 2011 के बाद इस साल हीटवेव के दिन काफी बढ़ गए हैं. हाल ही में भारत सरकार ने संसद में आंकड़े दिए हैं जिसके अनुसार देश में इस साल 203 हीटवेव दिन दर्ज किए गए हैं. 2012 में ये आंकड़ा 201 दिन था वहीं 2019 में 174 दिन.

साथ ही ये भी पता चला है कि पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड और हरियाणा में सबसे ज्यादा हीटवेव के दिन दर्ज हुए हैं.

लोकसभा में मानसून सत्र में दिए जवाब में सरकार ने बताया कि 2022 में दिल्ली में 17, हरियाणा में 24, झारखंड में 18, पंजाब में 24, राजस्थान में 26, उत्तराखंड में 28, उत्तर प्रदेश में 15 हीटवेव के दिन दर्ज किया गया है.


यह भी पढ़ें: कोविड के दौरान हर 30 घंटे में बना एक नया अरबपति, 2022 में गरीबी की गर्त में जा सकते हैं लाखों लोग


 

share & View comments