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Saturday, 4 May, 2024
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नागरिकता संशोधन विधेयक : असम के राज्य कर्मचारी 18 दिसंबर को काम रोक कर जताएंगे विरोध

कर्मचारियों ने 11 दिसंबर को प्रदर्शनकारी छात्रों का भी समर्थन किया था और राज्य सचिवालय में अपने कार्यालयों से बाहर निकलकर 'नो सीएबी' की तख्तियों के साथ प्रदर्शन किया था.

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गुवाहाटी : नागरिकता संशोधन विधेयक का आम नागरिकों, छात्रों के साथ वहां के सरकारी कर्मचारी भी विरोध कर रहे हैं. असम राजकीय कर्मचारी संघ ने नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ 18 दिसंबर को कार्यस्थगन की घोषणा की है.

सदोउ असम कर्मचारी परिषद एसएकेपी (SAKP) के अध्यक्ष बासब कलिता ने बताया कि असम भर में राज्य सरकार के सभी कर्मचारी 18 दिसंबर को कार्यालयों में नहीं जाएंगे.

उन्होंने कहा, ‘हमने बिल का शुरू से विरोध किया है और तब तक करते रहेंगे, जब तक एक्ट निरस्त नहीं हो जाता.’

कलिता ने कहा कि जब संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के सदस्य विधेयक पर असम के लोगों की राय लेने के लिए पिछले साल मई में राज्य में आए थे, तो एसएकेपी ने ज्ञापन प्रस्तुत किया था.

उन्होंने कहा, ‘हमने 16 दिसंबर से अपने तीन दिवसीय ‘सत्याग्रह’ में एएएसयू के लिए अपना समर्थन बढ़ाया है.’

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कर्मचारियों ने 11 दिसंबर को प्रदर्शनकारी छात्रों का भी समर्थन किया था और राज्य सचिवालय में अपने कार्यालयों से बाहर निकलकर ‘नो सीएबी’ की तख्तियों के साथ प्रदर्शन किया था.

वहीं पूर्वोत्तर में अशांति के मद्देनजर असम और मेघालय के उम्मीदवारों की नेट की परीक्षा स्थगित कर दी गई है.

असमी समुदाय का मुंबई में प्रदर्शन

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में रहने वाले असमी समुदाय के लोगों ने शनिवार को आजाद मैदान में संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन किया.

प्रदर्शन में शामिल लोगों के हाथों में तख्तियां थीं जिन पर ‘संशोधित नागरिकता कानून को नहीं कहो’, ‘हम संशोधित कानून का विरोध करते हैं’, ‘संशोधित नागरिकता कानून वापस लो’ और ‘असम को बचाओ’ जैसे नारे लिखे थे.

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद प्रभावी हुए कानून में धार्मिक प्रताड़ना की वजह से 31 दिसंबर 2014 तक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, ईसाई, बौद्ध, पारसी, जैन और सिख समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है.

प्रदर्शन में शामिल एक व्यक्ति ने कहा, ‘हम इस विदेशियों (असम में रहने वाले) के मुद्दे पर कई वर्षों से लड़ रहे हैं और अब इस कानून से स्थिति और खराब हो गई है. अगर हम और विदेशियों को शरण देंगे तो असमी नागरिकों को मुश्किल का सामना करना पड़ेगा.’

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